राजद को कहीं मदन साह की श्राप तो नहीं लग गई, सियासी गलियारों में उठने लगा सवाल

राजद की वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए स्थानीय सियासी गलियारों में एक बार फिर चर्चा तेज हो गई है, क्या सचमुच पार्टी पर मदन साह का “श्राप” भारी पड़ रहा है? हालांकि यह राजनीतिक प्रतीकवाद है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से राजद का जनाधार कई क्षेत्रों में खिसका है, उससे यह सवाल आम लोगों की जुबान पर चढ़ता जा रहा है। जानकार बताते हैं कि पूर्वी चंपारण के मधुबन विधानसभा के मदन साह की राजनीतिक सक्रियता के दौर में यह इलाका राजद का मजबूत गढ़ माना जाता था

राजद को कहीं मदन साह की श्राप तो नहीं लग गई, सियासी गलियारों में उठने लगा सवाल

वरूण कुमार/नावानगर 

राजद की वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए स्थानीय सियासी गलियारों में एक बार फिर चर्चा तेज हो गई है, क्या सचमुच पार्टी पर मदन साह का “श्राप” भारी पड़ रहा है? हालांकि यह राजनीतिक प्रतीकवाद है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से राजद का जनाधार कई क्षेत्रों में खिसका है, उससे यह सवाल आम लोगों की जुबान पर चढ़ता जा रहा है। जानकार बताते हैं कि पूर्वी चंपारण के मधुबन विधानसभा के मदन साह की राजनीतिक सक्रियता के दौर में यह इलाका राजद का मजबूत गढ़ माना जाता था।

लेकिन उनके साथ हुए विवादित घटनाक्रम और उसके बाद कई नेताओं के पार्टी से दुराव ने संगठन को भीतर से कमजोर किया। स्थानीय स्तर पर नेताओं के बीच खींचतान, टिकट बंटवारे को लेकर असंतोष और लगातार बदलते समीकरणों ने भी राजद की स्थिति को चुनौतीपूर्ण बना दिया है। हालिया समय में कई वरिष्ठ नेता पार्टी छोड़कर अन्य दलों का रुख कर चुके हैं। इससे कार्यकर्ताओं का मनोबल भी प्रभावित हुआ है। वहीं विपक्ष लगातार यह मुद्दा उछाल रहा है कि राजद आज जिस स्थिति में है, वह “अनहोनियों की लंबी कड़ी” का परिणाम है। इसी संदर्भ में मदन साह का नाम फिर से उभर रहा है और लोग इसे प्रतीकात्मक “श्राप” से जोड़कर चर्चा कर रहे हैं। हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि किसी भी दल की मज़बूती या कमजोरी नेतृत्व की रणनीति, संगठन की एकजुटता और जनता के विश्वास से तय होती है। “श्राप” जैसी बातें सिर्फ जनभावनाओं और मिथकीय अंदाजों से उपजी होती हैं। फिर भी, यह साफ है कि राजद को बक्सर और आसपास के क्षेत्रों में खुद को पुनर्गठित करने के लिए बड़ी रणनीतिक पहल की जरूरत है। फिलहाल, जनता के बीच ये चर्चाएं जरूर गरमा गई हैं कि क्या वाकई राजद का संघर्ष किसी प्रतीकात्मक श्राप का परिणाम है, या फिर यह महज राजनीतिक असंतुलन का असर है।