भक्तों की मुरादें पूरी करती है मां डुमरेजनी, वार्षिकोत्सव आज, तैयारी पूरी

दक्षिणी पूर्वी छोर पर कांव नदी के किनारे स्थित मां डुमरेजनी के दरबार में पूरे सावन माह भक्तों की भीड़ उमड़ती है। मनौतियों के साथ मां के दरबार में हाजिरी लगाने वाले भक्तों की ना सिर्फ झोली भरती है बल्कि माता आज भी नारी शक्ति की रक्षा करने का संदेश देती है।

भक्तों की मुरादें पूरी करती है मां डुमरेजनी, वार्षिकोत्सव आज, तैयारी पूरी

-  नगर देवी के रूप में विख्यात है मां डुमरेजनी, श्राप से हुआ था चेरो वंश का नाश

केटी न्यूज/डुमरांव

दक्षिणी पूर्वी छोर पर कांव नदी के किनारे स्थित मां डुमरेजनी के दरबार में पूरे सावन माह भक्तों की भीड़ उमड़ती है। मनौतियों के साथ मां के दरबार में हाजिरी लगाने वाले भक्तों की ना सिर्फ झोली भरती है बल्कि माता आज भी नारी शक्ति की रक्षा करने का संदेश देती है। यहां मां के मिट्टी की पिंडी की लोग आराधना करते हैं। सावन के पूर्णिमा 19 अगस्त को नगर देवी मां डुमरेजनी का वार्षिकोत्सव मनाया जाता है।

जिसकी तैयारी समिति के सदस्यों द्वारा शुरू कर दी गयी है। समिति के अध्यक्ष वृज कुमार राय ने बताया कि इस बार मां का दरबार आकर्षण ढंग से सजाने को लेकर मंथन शुरू कर दिया गया है। दरबार के पिछले हिस्से में श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए साज-सज्जा के साथ कमरे और मंडप तैयार किये गये है। जयपुरिया पत्थर से मां का दरबार का निर्माण किया गया। जिस वजह से यह दरबार पहले से भी आकर्षक बना है।

वार्षिकोत्सव के दौरान भक्तों की अपार भीड़ जुटती है। ऐसी मान्यता है कि यदि कोई दिल से माता से कुछ मांगे, तो उसकी मुरादें पूरी होती हैं। आज भी मंदिर घने पेड़ों से घिरा है और आबादी से अलग है। फिर भी हर दिन लोग यहां पूजा अर्चना के लिए आते है। बुजुर्गों की माने तो लगभग पांच सौ वर्ष पहले डुमरांव घने जंगलों से घिरा हुआ था। उस वक्त सड़कें नहीं थी। कांव नदी और जंगलों के बीच से रास्ता भोजपुर घाट होते हुए उतरप्रदेश को जोड़ता था।

इसी रास्ते पर चेरो जाति का किला था। चेरों का इस इलाके में आतंक था। लूटमार उनका पेशा था। डुमरांव प्रखंड के अरैला गांव के कौशिक गोत्रीय ब्रह्मण परिवार में डुमरेजनी का जन्म हुआ था। उनकी शादी यूपी के द्रोणवार ब्रह्मण से हुई थी। विदाई कराकर वह घोडे़ पर सवार होकर इसी रास्ते से गुजर रहे थे। पीछे डुमरेजनी की डोली चल रही थी। जैसे ही चेरो के इलाके में पहुंचे, चेरों ने लूट की नीयत से हमला बोल दिया।

पति के साथ डुमरेजनी भी चंडी का रुप धारण कर भिड़ गयी। पति के गिरते ही डुमरेजनी का हौंसला जवाब देने लगा। डुमरेजनी अस्तित्व की रक्षा के लिए अपने आप को भस्म कर लिया। नारी शक्ति का यह रुप लोगों के बीच चर्चा का केंद्र बन गया।

’ समय के साथ दिखने लगा प्रभाव

कुछ समय बाद माता का प्रभाव इलाके में दिखने लगा। चेरो का साम्राज्य भी माता की कुदृष्टि के कारण खत्म हो गया। 19 वीं सदी के उतरार्द्ध में दक्षिण टोला के कुछ लोगों के प्रयास से पूजा अर्चना शुरू हुई। पहले माता का छोटा मंदिर बना। लोगों का मंदिर में आना-जाना शुरू हुआ। लोगों में माता के प्रति आस्था बढ़ती गयी।

माता की कृपा से रीवा नरेश रमण सिंह को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। संतान के रुप में मनौती पूरा होने पर महारानी ने भव्य मंदिर का निर्माण करवाया था। उसके बाद से आस्था का जनसैलाब उमड़ने लगा और उसका कदमताल आज भी जारी है।

’ पुलिस-प्रशासन की रहती है मुस्तैदी

मां डुमरेजनी के वार्षिकोत्सव पूजन पर मेला का आयोजन होता हैं। जहां दूर-दराज से भक्तों की टोली पहुंचती हैं। मेले में झूला चरखी के साथ सैकड़ो व्यंजनों की दुकानें सजती हैं। श्रद्धालुओं की सुरक्षा को लेकर पुलिस-प्रशासन की मुस्तैदी बनी रहती हैं। साथ ही समिति के सदस्य श्रद्धालुओं की सुरक्षा के साथ उनकी सेवा करते हैं। इस दौरान दंडाधिकारी के साथ महिला व पुरुष बल के जवान भी तैनात रहते हैं।