डॉक्टर की लापरवाही से सिमरी सीएचसी में ठप पड़ा परिवार नियोजन कार्यक्रम
सिमरी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में परिवार नियोजन कार्यक्रम पूरी तरह ठप हो गया है। वजह है, जिले से ड्îूटी पर लगाए गए सर्जन का आदेश मानने से साफ इंकार करना। जिला प्रशासन और सिविल सर्जन के निर्देश पर हर बुधवार यहां सेवाएं देने की जिम्मेदारी डॉ. लोकेश कुमार को दी गई थी। उन्हें पुरुष नसबंदी और महिला बंध्याकरण की सुविधा उपलब्ध करानी थी, लेकिन उन्होंने पूरे अगस्त माह में केवल एक दिन 21 अगस्त को ही ड्îूटी की। इसके बाद वे दोबारा अस्पताल नहीं लौटे। अब उन्होंने खुलेआम सिमरी सीएचसी में ड्यूटी करने से मना कर दिया है।

केटी न्यूज/सिमरी
सिमरी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में परिवार नियोजन कार्यक्रम पूरी तरह ठप हो गया है। वजह है, जिले से ड्îूटी पर लगाए गए सर्जन का आदेश मानने से साफ इंकार करना। जिला प्रशासन और सिविल सर्जन के निर्देश पर हर बुधवार यहां सेवाएं देने की जिम्मेदारी डॉ. लोकेश कुमार को दी गई थी। उन्हें पुरुष नसबंदी और महिला बंध्याकरण की सुविधा उपलब्ध करानी थी, लेकिन उन्होंने पूरे अगस्त माह में केवल एक दिन 21 अगस्त को ही ड्îूटी की। इसके बाद वे दोबारा अस्पताल नहीं लौटे। अब उन्होंने खुलेआम सिमरी सीएचसी में ड्यूटी करने से मना कर दिया है।
स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि सिमरी सीएचसी के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. संतोष कुमार ने 9 सितंबर को पत्र संख्या 505 के जरिए सिविल सर्जन को शिकायत भेजी। उन्होंने साफ लिखा कि डॉक्टर की अनुपस्थिति में परिवार कल्याण कार्यक्रम का संचालन असंभव हो गया है। जबकि जिला स्तर से 29 जुलाई को आदेश जारी हुआ था कि जहां विशेषज्ञ उपलब्ध नहीं हैं, वहां अन्य अस्पतालों में पदस्थापित चिकित्सकों से सेवाएं दिलाई जाएं। इसी आधार पर जिले के 12 अस्पतालों में विशेषज्ञों की ड्यूटी लगाई गई थी।
दरअसल, सिमरी सीएचसी में पहले से ही परिवार नियोजन सेवाओं के लिए स्थायी सर्जन नहीं था। कमी पूरी करने के लिए पीपीपी मोड में सेवाएं दी जा रही थीं। लेकिन लक्ष्य के अनुरूप सफलता न मिलने पर जिला प्रशासन ने बाहर से विशेषज्ञ बुलाकर जिम्मेदारी सौंपी थी। डॉ. लोकेश के इंकार ने साबित कर दिया कि जिले की यह रणनीति महज कागजों में सिमटकर रह गई।
-- गरीब मरीजों की बढ़ी मुश्किलें
डॉक्टर की गैरहाजिरी का सीधा खामियाजा गरीब ग्रामीण दंपत्तियों को उठाना पड़ रहा है। गांव-देहात से आने वाले मरीज जब परिवार नियोजन सेवाओं के लिए सिमरी अस्पताल पहुंचते हैं, तो वहां सर्जन नदारद मिलता है। मजबूरी में उन्हें या तो खाली हाथ लौटना पड़ता है या निजी अस्पतालों का सहारा लेना पड़ता है, जहां भारी रकम वसूली जाती है। सरकार जहां मुफ्त सेवाओं का दावा करती है, वहीं जमीनी हकीकत बिल्कुल उलट है।
यह मामला महज एक डॉक्टर की मनमानी का नहीं, बल्कि पूरे स्वास्थ्य महकमे की लापरवाह व्यवस्था का आईना है। सवाल उठता है कि क्या परिवार नियोजन जैसा संवेदनशील विषय डॉक्टरों की मर्जी पर छोड़ा जा सकता है, क्या मुख्यमंत्री का ड्रीम प्रॉजेक्ट इसी तरह ठप होता रहेगा।
अगर एक डॉक्टर खुलेआम विभागीय व जिलाधिकारी के निर्देश को ठुकरा देता है और प्रशासन चुप रहता है, तो यह जनता के साथ सीधा धोखा है। यदि ऐसे चिकित्सकों पर कार्रवाई नहीं की गई तो आने वाले दिनों में और डॉक्टर आदेशों को दरकिनार कर देंगे। नतीजा यह होगा कि न तो परिवार नियोजन कार्यक्रम का लक्ष्य पूरा होगा और न ही सरकार की योजनाएं गरीब जनता तक पहुंच पाएंगी।
सिमरी सीएचसी का यह मामला केवल एक अस्पताल का नहीं, बल्कि पूरे जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोलता है। जब तक डॉक्टर अपनी जिम्मेदारी को समझकर ईमानदारी से सेवाएं नहीं देंगे, तब तक ग्रामीण जनता को सरकारी योजनाओं का लाभ मिलना नामुमकिन है।