मिनी काशी बक्सर में आस्था का महाकुंभ, पंचकोशी मेला संपन्न, एकता और परंपरा का बना प्रतीक

गंगा की लहरों से उठती भक्ति ध्वनि, मिट्टी के उपलों पर सिकती लिट्टी की महक, मंदिरों की घंटियों का कंपन और श्रद्धालुओं की जयघोष ने बक्सर को एक जीवंत तीर्थ में बदल दिया। यह नजारा गुरूवार को मिनी काशी से नाम से मशहूर बक्सर का था, जहां पंचकोशी परिक्रमा के अंतिम दिन श्रद्धालुओं लिट्टी चोखा बनाकर प्रसाद ग्रहण कर त्रेता युग से चली आ रही परंपरा का निवर्हन किया।

मिनी काशी बक्सर में आस्था का महाकुंभ, पंचकोशी मेला संपन्न, एकता और परंपरा का बना प्रतीक

-- गंगा तट से किला मैदान तक लिट्टी-चोखा का प्रसाद, देश-विदेश से उमड़े श्रद्धालु 

केटी न्यूज/बक्सर

गंगा की लहरों से उठती भक्ति ध्वनि, मिट्टी के उपलों पर सिकती लिट्टी की महक, मंदिरों की घंटियों का कंपन और श्रद्धालुओं की जयघोष ने बक्सर को एक जीवंत तीर्थ में बदल दिया। यह नजारा गुरूवार को मिनी काशी से नाम से मशहूर बक्सर का था, जहां पंचकोशी परिक्रमा के अंतिम दिन श्रद्धालुओं लिट्टी चोखा बनाकर प्रसाद ग्रहण कर त्रेता युग से चली आ रही परंपरा का निवर्हन किया।

मिनी काशी ( बक्सर ) ने एक बार फिर अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का भव्य प्रदर्शन किया। नौ नवंबर से प्रारंभ हुई विश्व प्रसिद्ध पंचकोशी परिक्रमा यात्रा गुरुवार, 13 दिसंबर को चरित्रवन पहुंचकर पूर्ण हुई। पूरे शहर में भक्ति, भोग और भाईचारे की ऐसी लहर उमड़ी कि हर गली-मोहल्ला प्रसाद वितरण केंद्र में बदल गया।पंचकोशी मेला के अंतिम दिन चरित्रवन, किला मैदान और गंगा तट श्रद्धालुओं से खचाखच भरे रहे। बुधवार की रात से ही दूर-दराज़ के राज्यों उत्तर प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान यहां तक कि पड़ोसी देश नेपाल से भी श्रद्धालु पहुंचने लगे थे।

भोर में गंगा स्नान और पूजा-अर्चना के बाद लिट्टी-चोखा प्रसाद का दौर शुरू हुआ। हर ओर धुएं से भरा आसमान, भक्ति में लीन चेहरों की चमक और मिट्टी के उपलों पर सिकती लिट्टी की सुगंध वातावरण को अलौकिक बना रही थी। श्रद्धालु स्वयं उपले लेकर लिट्टी लगाते और उसे प्रसाद के रूप में ग्रहण करते दिखे।

-- स्वामी अच्युत प्रपन्नाचार्य ने दिया भक्ति का संदेश

चरित्रवन श्रीनिवास मंदिर परिसर में पंचकोशी परिक्रमा समिति के अध्यक्ष पूज्य स्वामी अच्युत प्रपन्नाचार्य जी महाराज द्वारा विशाल प्रसाद वितरण की व्यवस्था की गई। यहां श्रद्धालुओं की लंबी कतारें भक्ति और अनुशासन का अद्भुत उदाहरण पेश कर रही थीं। शहर के विभिन्न मठों और आश्रमों के महंतों ने भी प्रसाद वितरण में सहयोग किया।स्वामी जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि पंचकोशी केवल परिक्रमा नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और लोककल्याण की साधना है। यह मेला बक्सर की आध्यात्मिक पहचान और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है।

-- नेताओं ने भी निभाई सेवा की परंपरा

इस अवसर पर सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र से भी लोगों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। निवर्तमान सदर विधायक संजय कुमार तिवारी उर्फ मुन्ना तिवारी ने कलेक्ट्रेट रोड पर विशाल लिट्टी-चोखा भोज का आयोजन किया, जहां हजारों श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण किया।वहीं पूर्व आईपीएस सह भाजपा प्रत्याशी आनंद मिश्रा ने गोयल धर्मशाला में श्रद्धालुओं के बीच प्रसाद वितरण किया। इन आयोजनों में सभी समुदायों के लोग, प्रशासनिक अधिकारी और आमजन समान रूप से शामिल हुए। इस दृश्य ने बक्सर को सामाजिक एकता के अद्भुत उदाहरण के रूप में स्थापित कर दिया।

-- कम्हरिया धाम से नौलखा मंदिर तक गूंजा भक्ति संगीत

कम्हरिया धाम के स्वामी गंगापुत्र लक्ष्मीनारायण जी महाराज ने नौलखा मंदिर के सामने श्रद्धालुओं के लिए भव्य प्रसाद और ठहरने की व्यवस्था की। उन्होंने कहा कि यह परंपरा त्रेतायुग से चली आ रही है। जब भगवान श्रीराम ने ताड़का वध के बाद पंचऋषियों से आशीर्वाद लिया और विभिन्न स्थानों पर प्रसाद ग्रहण किया था, तभी से पंचकोशी यात्रा का आरंभ माना जाता है। उनके प्रवचनों में रामायण और वेदांत की झलक ने श्रद्धालुओं को भक्ति भाव से भर दिया।

-- बक्सर, धर्म, संस्कृति और पर्यटन का संगम

धर्मशास्त्री डॉ. रामनाथ ओझा ने कहा कि बक्सर वह भूमि है, जहां से सृष्टि की शुरुआत मानी जाती है। पंचकोशी परिक्रमा आत्मा की शुद्धि और जीवन के लक्ष्य की प्राप्ति का मार्ग है।उन्होंने यह भी आग्रह किया कि जनप्रतिनिधि और प्रशासन बक्सर के धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए ठोस कदम उठाएं, ताकि यह क्षेत्र विश्व स्तर पर अपनी पहचान और मजबूत कर सके।

-- आस्था, एकता और आनंद का पर्व

पंचकोशी परिक्रमा अब केवल धार्मिक यात्रा नहीं रही, यह लोक-जीवन का उत्सव बन चुकी है। इसमें शामिल हर व्यक्ति चाहे वह साधु हो या आम जन, स्थानीय व्यापारी हो या प्रशासनिक अधिकारी, सब भक्ति और सेवा की भावना से एक सूत्र में बंधे नजर आए।बक्सर की पंचकोशी परिक्रमा ने इस बार भी यह साबित कर दिया कि जब आस्था और एकता एक साथ चलें, तो पूरा शहर मंदिर बन जाता है। मिनी काशी का यह मेला न केवल धार्मिक उत्सव है, बल्कि भारत की जीवंत संस्कृति, सामूहिक सद्भाव और भक्ति के अनोखे संगम का प्रतीक बन चुका है।