सासाराम के इस गांव में आजतक वोट मांगने नहीं आया कोई प्रत्याशी, फिर भी इस कारण देते हैं वोट

चुनावी मौसम में उम्मीदवारों को मतदाताओं का इंतजार रहता है, लेकिन रोहतास जिले के तिलौथू के फुलवरिया गांव की स्थिति ठीक उलट है। करीब 72 साल के चुनावी इतिहास में आज तक एक भी प्रत्याशी ने इस गांव का रुख नहीं किया। गांव के मतदाताओं को हर चुनाव में अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए आठ से नौ किलोमीटर पैदल पहाड़ से उतरकर चुरेशर गांव जाना पड़ता है।

सासाराम के इस गांव में आजतक वोट मांगने नहीं आया कोई प्रत्याशी, फिर भी इस कारण देते हैं वोट
केटी न्यूज़, रोहतास (तिलौथू)। लोकसभा चुनाव को लेकर प्रत्याशी वोटरों को आकर्षित करने के लिए सक्रिय हो गए हैं। वोट के लिए प्रत्याशियों ने शहर के साथ ही ग्रामीण एवं पहाड़ी क्षेत्रों में भी भाग दौड़ शुरू कर दी है। इनमें प्रखंड का एक गांव ऐसा भी है, जहां 1952 के पहले आम चुनाव से लेकर आज तक कोई वोट मांगने के लिए नहीं पहुंचा है। हैरानी की बात तो यह कि इस गांव के कई बुजुर्गों ने आज तक किसी सांसद या विधायक तक को नहीं देखा है। चुनावी मौसम में उम्मीदवारों को मतदाताओं का इंतजार रहता है, लेकिन रोहतास जिले के फुलवरिया गांव की स्थिति ठीक उलट है। करीब 72 साल के चुनावी इतिहास में आज तक एक भी प्रत्याशी ने इस गांव का रुख नहीं किया। 
आठ से नौ किमी दूर जाकर मतदान की मजबूरी
गांव के मतदाताओं को हर चुनाव में अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए आठ से नौ किलोमीटर पैदल पहाड़ से उतरकर चुरेशर गांव जाना पड़ता है। फुलवरिया गांव निवासी के अनुसार उनके गांव में चुनाव को लेकर कोई हलचल दिखाई नहीं पड़ती। आजादी से लेकर आज तक कोई भी प्रत्याशी चाहे वह किसी भी पार्टी का हो, गांव में वोट मांगने नहीं आया। वोट डालने के लिए बहुत जद्दोजहद करनी पड़ती है। इस डर से मतदान करते हैं कि कहीं वोटर लिस्ट से नाम न कट जाए। गांव में लोगों के लिए मूलभूत सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं हैं। 
एक वर्ष पूर्व पहली बार फुलवरिया पहुंचे थे बीडीओ 
मुखिया के अनुसार इस गांव में पहली बार पूर्व पैक्स अध्यक्ष रामजी के आग्रह पर गत वर्ष बीडीओ संजय कुमार पहुंचे थे। उनकी अनुशंसा पर गांव में 15वीं वित्त आयोग द्वारा ईंट सोलिंग कर गली बनवाया गया था। उसके बाद कोई भी नहीं आया। लगभग 100 घरों के इस गांव के ग्रामीण मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। किसी व्यक्ति के बीमार होने पर उसे खाट पर लेटाकर आठ से नौ किलोमीटर की दूरी तय कर सड़क तक पहुंचाना पड़ता है। समय पर इलाज नहीं मिलने के चलते कई बार मरीज जान तक गंवा बैठते हैं। गांव में सरकारी सुविधा के नाम पर सिर्फ एक प्राथमिक विद्यालय है।