प्रखंड में पंचायत राज व्यवस्था हुई लचर, छोटे-छोटे पारिवारिक विवाद भी पहुंच रहे थाने
ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायत राज की न्यायिक व्यवस्था दिनों दिन कमजोर होती जा रही है। वह व्यवस्था जो कभी गांवों में न्याय का पहला सहारा और सामाजिक अनुशासन की रीढ़ मानी जाती थी, आज लगभग निष्प्रभावी होती दिख रही है। परिणामस्वरूप, पहले जिन छोटे छोटे विवादों का निपटारा गांव में बैठकी के माध्यम से आसानी से हो जाता था, वे अब सीधे थानों में पहुंच रहे हैं।
-- गांव देहात में कमजोर होती स्थानीय न्याय व्यवस्था पर उठ रहे सवाल
पीके बादल/केसठ
ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायत राज की न्यायिक व्यवस्था दिनों दिन कमजोर होती जा रही है। वह व्यवस्था जो कभी गांवों में न्याय का पहला सहारा और सामाजिक अनुशासन की रीढ़ मानी जाती थी, आज लगभग निष्प्रभावी होती दिख रही है। परिणामस्वरूप, पहले जिन छोटे छोटे विवादों का निपटारा गांव में बैठकी के माध्यम से आसानी से हो जाता था, वे अब सीधे थानों में पहुंच रहे हैं।प्रखंड के कई पंचायतों में स्थिति यह है कि जमीन विवाद, आपसी कहासुनी, परिवारिक तनाव, घरेलू झगड़े और मामूली टकराव भी पुलिस थानों तक पहुंच जा रहे हैं। इससे न सिर्फ थानों पर अनावश्यक बोझ बढ़ रहा है, बल्कि ग्रामीण समाज की वह पारंपरिक न्याय व्यवस्था भी टूटती जा रही है जो दशकों तक गांवों में सौहार्द बनाए रखने का आधार थी।

स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि पहले मुखिया और सरपंच के फैसले सर्वाेपरि माने जाते थे। उनके निर्णय पर गांव का हर वर्ग भरोसा करता था। पंचायत बैठकें नियमित रूप से होती थीं और बिना तनाव के अधिकांश मामलों का समाधान गांव की चौपाल पर ही कर दिया जाता था, लेकिन अब लोगों में पंचायत प्रतिनिधियों के प्रति वह सम्मान, भरोसा और अनुशासन नहीं दिखता जो पहले हुआ करता था। ग्रामीण कहते हैं कि आज के समय में पंचायत मुखिया और सरपंच से किसी को डर या संकोच नहीं रह गया है।ग्रामीणों का आरोप है कि आज के समय में मुखिया, सरपंच और अन्य जनप्रतिनिधि अपने वोट बैंक और राजनीतिक स्वार्थ के कारण विवादों में निष्पक्ष फैसला लेने से बचते हैं।

कई प्रतिनिधि केवल योजनाओं के क्रियान्वयन तक ही सीमित रहते हैं, जबकि सामाजिक और पारिवारिक विवादों में सक्रिय भूमिका नहीं निभाते। बुजुर्ग कहते है कि पंचायत प्रतिनिधियों की सक्रियता में कमी, राजनीतिक दखल और समूहबंदी, सामाजिक समरसता में गिरावट, गांव स्तर पर समझौता प्रक्रिया का कमजोर होना और बढ़ती कानूनी जागरूकता, पर स्थानीय न्याय प्रक्रिया का कमजोर क्रियान्वयन के कारण ही पंचायत न्यायिक व्यवस्था कमजोर हो रही है। प्रखंड के सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि यदि पंचायतें फिर से सक्रिय हों और न्यायिक अधिकारों के प्रभावी प्रयोग की दिशा में कदम उठाया जाए, तो थानों पर अनावश्यक भार कम होगा और गांवों में सौहार्दपूर्ण वातावरण भी वापस लौटेगा।
गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि पहले पंचायत राज की बैठकों में ग्राम कचहरी एक मजबूत स्तंभ की तरह काम करती थी। लोग संभल जाते थे और पंचायत के सामने कोई भी खुलकर गलत करने का साहस नहीं करता था। अब वह अनुशासन खत्म सा होता नजर आ रहा है। पुलिस भी मानती है कि घरेलू और छोटे विवादों में वृद्धि हुई है। अधिकारियों का कहना है कि यदि पंचायत स्तर पर विवाद निपटान मजबूत हो, तो पुलिस गंभीर मामलों पर अधिक ध्यान दे सकेगी।ग्रामीणों ने प्रशासन से भी अपेक्षा जताई है कि ग्राम कचहरी को मजबूत करने, प्रतिनिधियों की जिम्मेदारी तय करने और पंचायत न्यायिक बैठकों को नियमित करने की दिशा में पहल की जाए।

गांव देहात में कमजोर होती पंचायत राज न्याय व्यवस्था चिंता का विषय बन चुकी है। यदि समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया, तो सामाजिक विवादों में और वृद्धि देखने को मिल सकती है।ग्रामीणों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने प्रशासन से मांग की है कि ग्राम कचहरी को फिर से सशक्त किया जाए, पंचायत प्रतिनिधियों की जिम्मेदारी तय हो, न्यायिक बैठकों को नियमित किया जाए और प्रतिनिधियों को सामाजिक विवादों में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए बाध्य किया जाए।
-- सरकार की पहल पर भी पंचायत स्तर पर न्यायिक व्यवस्था कमजोर
ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायत राज की न्यायिक व्यवस्था को मजबूत करने के उद्देश्य से राज्य सरकार द्वारा पंचायत स्तर पर पंचायत सरकार भवन, ग्राम कचहरी भवन जैसे स्थायी ढांचे का निर्माण कराया जा रहा है। इसके साथ ही विवादों के निपटारे के लिए पंच, सरपंच और अन्य जनप्रतिनिधियों का विधिवत निर्वाचन किया गया है। सरकार ने ग्राम कचहरी सचिव की भी नियुक्ति की है, ताकि पंचायत स्तर पर आने वाले छोटे बड़े सामाजिक, पारिवारिक और जमीन विवादों का समय पर समाधान किया जा सके और लोगों को थानों के चक्कर न लगाने पड़ें। सरकार की मंशा है कि गांवों में ही न्याय सुलभ हो और सामाजिक सौहार्द बना रहे।

लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि इन व्यवस्थाओं के बावजूद पंचायतों की न्यायिक भूमिका अपेक्षित रूप से प्रभावी नहीं हो पा रही है। भवन और पद तो मौजूद हैं, पर सक्रियता और निष्पक्ष निर्णय की कमी के कारण पंचायत स्तर पर विवाद निपटान कमजोर पड़ता नजर आ रहा है। यदि इन संसाधनों का सही उपयोग हो, तो गांवों में न्याय व्यवस्था फिर से मजबूत हो सकती है। ग्राम कचहरी में बैठने वाले सरपंच और पंच अधिकांश समय निष्क्रिय नजर आते हैं। विवादों की सुनवाई न के बराबर होती है, जिसके कारण लोग मजबूर होकर थानों का रुख कर रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि यदि करोड़ों की लागत से बनी इन व्यवस्थाओं का सही उपयोग होता, तो गांवों में छोटे छोटे मामलों के लिए पुलिस की जरूरत ही नहीं पड़ती।
-- प्रमाणीकरण तक सिमट गई जनप्रतिनिधियों की भूमिका
पंचायत स्तर पर मुखिया और सरपंच की भूमिका अब केवल वंशावली, जन्म मृत्यु प्रमाण पत्र और अन्य कागजी प्रमाणीकरण तक ही सीमित रह गई है। सामाजिक, पारिवारिक और आपसी विवादों के निपटारे में उनकी सक्रियता लगभग खत्म हो चुकी है। ग्राम कचहरी होने के बावजूद सरपंच और पंच विवादों की सुनवाई में रुचि नहीं लेते, जिससे लोगों को मजबूरन थानों का सहारा लेना पड़ रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि यदि जनप्रतिनिधि केवल दस्तखत और प्रमाण पत्र जारी करने तक सीमित रहेंगे, तो पंचायत राज की मूल भावना और गांव स्तर की न्याय व्यवस्था दोनों ही कमजोर होती चली जाएंगी।
