कांवड़ से जुड़ी यह कहानियां नही जानते होंगे आप
पुराणों में बताया गया है कि कांवड़ यात्रा भगवान शिव को प्रसन्न करने का सबसे सहज रास्ता है। आइए जानते हैं कैसे शुरू हुई कांवड़ यात्रा की परंपरा
केटी न्यूज़/दिल्ली
सावन का महीना 22 जुलाई से शुरू हो गया है और इसकी के साथ कांवड़ यात्रा भी शुरू हो चुकी है। सावन माह में शिव भक्त गंगातट पर कलश में गंगाजल भरते हैं और उसको कांवड़ पर बांध कर कंधों पर लटका कर अपने अपने इलाके के शिवालय में लाते हैं और शिवलिंग पर गंगाजल अर्पित करते हैं। कांवड़ यात्रा को लेकर शिवभक्तों में खासा उत्साह देखने को मिलता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कांवड़ यात्रा करने से भगवान शिव सभी भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं और जीवन के सभी संकटों को दूर करते हैं। पुराणों में बताया गया है कि कांवड़ यात्रा भगवान शिव को प्रसन्न करने का सबसे सहज रास्ता है। आइए जानते हैं कैसे शुरू हुई कांवड़ यात्रा की परंपरा
कहते हैं भगवान परशुराम ने सबसे पहले कांवड़ यात्रा की शुरुआत की थी। परशुराम गढ़मुक्तेश्वर धाम से गंगाजल लेकर आए थे और यूपी के बागपत के पास स्थित 'पुरा महादेव' का गंगाजल से अभिषेक किया था। उस समय सावन मास ही चल रहा था, इसी के बाद से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई। आज भी इस परंपरा का पालन किया जा रहा है। लाखों भक्त गढ़मुक्तेश्वर धाम से गंगाजल लेकर जाते हैं और पुरा महादेव पर जल अर्पित करते हैं।
प्राचीन ग्रंथों में रावण को पहला कांवड़िया बताया है। समुद्र मंथन के दौरान जब भगवान शिव ने हलाहल विष का पान किया था, तब भगवान शिव का कंठ नीला हो गया था और वे तभी से नीलकंठ कहलाए थे। लेकिन हलाहल विष के पान करने के बाद नकारात्मक शक्तियों ने भगवान नीलकंठ को घेर लिया था। तब रावण ने महादेव को नकारात्मक शक्तियों से मुक्त के लिए रावन ने ध्यान किया और गंगाजल भरकर 'पुरा महादेव' का अभिषेक किया, जिससे महादेव नकारात्मक ऊर्जाओं से मुक्त हो गए थे। तभी से कांवड़ यात्रा की परंपरा भी प्रारंभ हो गई।
वहीं आनंद रामायण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि भगवान राम पहले कांवड़िया थे। भगवान राम ने बिहार के सुल्तानगंज से गंगाजल भरकर देवघर स्थित बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का अभिषेक किया था। उस समय सावन मास चल रहा था।
कुछ विद्वान का मानना है कि श्रवण कुमार के माता पिता ने हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा प्रकट की थी, माता पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए श्रवण कुमार कांवड़ में ही हरिद्वार ले गए और उनको गंगा स्नान करवाया। वापसी में वे गंगाजल भी साथ लेकर आए थे। बताया जाता है कि तभी से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हुई थी।सबसे पहले त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने पहली बार कांवड़ यात्रा शुरू की थी।
मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान जब महादेव ने हलाहल विष का पान कर लिया था, तब विष के प्रभावों को दूर करने के लिए भगवान शिव पर पवित्र नदियों का जल चढ़ाया गया था। ताकि विष के प्रभाव को जल्दी से जल्दी कम किया जा सके। सभी देवता मिलकर गंगाजल से जल लेकर आए और भगवान शिव पर अर्पित कर दिया। उस समय सावन मास चल रहा था। कहते है कि तभी से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हो गई थी।