जाने भगवान जगन्नाथ की मौसी के बारे में,देवी गुंडिचा से कैसे जुड़ी है रथयात्रा
भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ तीन रथों पर सवार होकर जगन्नाथ मंदिर से अपनी मौसी के घर ‘गुंडिचा मंदिर’ पहुंचे
केटी न्यूज़/दिल्ली
रविवार 7 जुलाई, 2024 से ओडिशा स्थित पुरी के जगन्नाथ मंदिर की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा शुरू चुकी है।10 दिन की यह रथयात्रा हर साल आषाढ़ महीने की शुक्ल पक्ष के द्वितीया तिथि से आरंभ होकर एकादशी तिथि तक आयोजित होती है।अब महाप्रभु भगवान जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ तीन रथों पर सवार होकर जगन्नाथ मंदिर से अपनी मौसी के घर ‘गुंडिचा मंदिर’ पहुंच चुके हैं।चलिए जानते हैं जगन्नाथ जी की मौसी के बारे में और वे गुंडिचा मंदिर क्यों जाते हैं?
रथयात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा लगभग 3 किलोमीटर की दूरी तय कर गुंडिचा मंदिर पहुंचते हैं। यह मंदिर देवी गुंडिचा को समर्पित है। कहते हैं, जगन्नाथ मंदिर के लिए तीनों मूर्तियों का निर्माण राजा इंद्रधनुष की रानी गुंडिचा के कहने पर पर देवशिल्पी विश्वकर्मा ने यहीं पर किया था। इसलिए भगवान जगन्नाथ देवी गुंडिचा को अपनी मौसी मानते हैं। पुरी में रथयात्रा की शुरुआत भी रानी गुंडिचा के आग्रह पर शुरू हुआ था। रानी गुंडिचा ने इसके लिए भगवान जगन्नाथ को निमंत्रण भेजा था, जिसे महाप्रभु ने स्वीकार कर गुंडिचा मंदिर की यात्रा की थी और यहां 9 दिनों तक ठहरे थे।
अपनी मौसी के घर 9 दिन तक रहने के बाद महाप्रभु जगन्नाथ वापस जगन्नाथ मंदिर लौट आते हैं। फिर तीनों रथों को खींच कर वापस लाया जाता है। रथयात्रा की वापसी यात्रा को ‘बहुड़ा यात्रा’ कहते हैं। यह रस्म आषाढ़ माह की दशमी तिथि को मनाई जाती है। जगन्नाथ मंदिर पहुंचने के बाद भी भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा को एक दिन रथों में रहना पड़ता है। एकादशी तिथि को जगन्नाथ मंदिर के पट खुलने के बाद वे मंदिर में प्रवेश करते हैं।
भगवान जगन्नाथ का स्वागत मौसी के घर बहुत धूमधाम से किया जाता है। यहां उन्हें कई प्रकार के स्वादिष्ट पकवानों के भोग चढ़ाए जाते हैं। उनकी मौसी गुंडिचा उन्हें ‘पादोपीठा’ नामक विशेष व्यंजन और रसगुल्ले खिलाती हैं। जगन्नाथ भगवान, बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की खूब सेवा की जाती है। कहते हैं, मौसी के आव-भगत और खानपान से भगवान जगन्नाथ का पेट भी खराब हो जाता है, जिसके लिए उन्हें विशेष पथ्य और औषधियां भी दी जाती हैं।जिस जगह गुंडिचा मंदिर जहां स्थित है, उस स्थान को ‘सुंदराचल’ कहा जाता है, जिसकी तुलना वृन्दावन से की गयी है।इन सब रस्मों के बाद इस रथयात्रा उत्सव का समापन मंगलवार 17 जुलाई को होगा।