मंदिर केवल ईंट-पत्थर की इमारत नहीं, आस्था का आधार और समाज को जोड़ने वाली डोर है - पन्ना लाल जायसवाल

बक्सर जिले के डुमरांव में जन्मे पन्ना लाल जायसवाल ने जो काम किया, वह असाधारण है। उन्होंने अपनी मेहनत की कमाई और जीवन की ऊर्जा मंदिरों के पुनर्निर्माण और धार्मिक संरक्षण में समर्पित कर दी। आज वे न सिर्फ एक श्रद्धालु व्यक्ति हैं बल्कि सादगी, समर्पण और सेवा के प्रतीक बन चुके हैं।

मंदिर केवल ईंट-पत्थर की इमारत नहीं, आस्था का आधार और समाज को जोड़ने वाली डोर है - पन्ना लाल जायसवाल

 रजनीकांत दूबे/डुमरांव    

बक्सर जिले के डुमरांव में जन्मे पन्ना लाल जायसवाल ने जो काम किया, वह असाधारण है। उन्होंने अपनी मेहनत की कमाई और जीवन की ऊर्जा मंदिरों के पुनर्निर्माण और धार्मिक संरक्षण में समर्पित कर दी। आज वे न सिर्फ एक श्रद्धालु व्यक्ति हैं बल्कि सादगी, समर्पण और सेवा के प्रतीक बन चुके हैं।

पन्ना लाल जायसवाल का जीवन किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं। गांव की मिट्टी में पले-बढ़े पन्ना ने हमेशा “सेवा ही सच्ची पूजा माना है” का संस्कार पाया। जीवन के आरंभिक दौर से ही उन्होंने कभी अपने भीतर की आस्था को मंद नहीं पड़ने दिया। जब अधिकांश लोग निजी सुविधाओं और आधुनिकता की ओर भाग रहे थे।

पन्ना लाल जायसवाल ने तय किया कि वे धार्मिक धरोहरों को संवारेंगे, ताकि आने वाली पीढ़ियां अपनी जड़ों से जुड़ी रहें। उन्होंने सबसे पहले डुमरांव स्टेशन रोड स्थित अंजान ब्रह्मबाबा के मंदिर का जीर्णाेद्घार किया। उसके बाद वर्ष 1982 में डुमरांव राजजगढ़ स्थित हनुमान जी के मंदिर का जीर्णाेद्धार किया। यह कदम यहीं नहीं रुके और नगर पंचित काली मंदिर जो शहर से दूर हुआ करता था। काव नदी पार करने में लोगों को कठिनाई होती थी। उस मंदिर में जाने के लिए अपने पुल बनवाने से लेकर मंदिर को इतना भव्य स्वरुप प्रदान किया इन्होंने कि आज वो मंदिर कई धार्मिक आयोजनों, शादी, छेंका जैसे आयोजनों का केंद्र बन गया है।

इसके बाद उन्होंने रुख किया डुमरांव राजगढ़ चौक स्थित काली मंदिर की ओर। पहले काफी छोटा मंदिर हुआ करता था लेकिन अपने परिवार की भूमि को दान में देकर 125 फूट ऊंची मंदिर का निर्माण करा दिया, जिसे दूर-दूर से लोग देखने के लिए और दर्शन के लिए आते हैं। मंदिरों के पुनर्निर्माण का कार्य अपने निजी प्रयास और सहयोग से इन्होंने किया है।पन्ना लाल जायसवाल से पूछे जाने पर कहते हैं ’’मंदिर केवल ईंट-पत्थर की इमारत नहीं, बल्कि आस्था का आधार और समाज को जोड़ने वाली डोर हैं’’। बिना किसी सरकारी सहायता या प्रचार की इच्छा के उन्होंने स्थानीय लोगों को जोड़ा, चंदा नहीं बल्कि विश्वास एकत्रित किया।

पन्ना लाल जायसवाल अपनी सादगी और संयमित जीवन के लिए जाने जाते हैं। वे महंगे वस्त्र या विशेष आडंबर से दूर रहते हैं और अपने अधिकतर समय को समाजसेवा में लगाते हैं। जो कुछ कमाते हैं, उसका बड़ा हिस्सा वे मंदिरों के पुनर्निर्माण पर खर्च कर देते हैं। लोग कहते हैं कि जब भी किसी मंदिर में दीप जलता है, उसके पीछे कहीं न कहीं पन्ना जी की निःस्वार्थ भावना काम करती है।उनके कार्यों से न सिर्फ मंदिरों की मरम्मत हुई बल्कि समाज में एकता और आध्यात्मिकता की नई चेतना जागी।

विभिन्न जातियों और वर्गों के लोग एक साथ श्रमदान और भंडारा आयोजन में जुटते हैं। यहां धर्म नहीं, मानवीयता का उत्सव मनाया जाता है और यही है पन्ना जायसवाल की सबसे बड़ी उपलब्धि है।पन्ना जायसवाल ने यह सिद्ध कर दिया कि सच्ची भक्ति ईश्वर के सामने सिर झुकाने में नहीं, बल्कि समाज के लिए कुछ करने में है। उन्होंने बिना शोर-शराबे के, बिना किसी पद या पुरस्कार की चाह के, श्रद्धा को कर्म में बदला। आज वे न केवल मंदिरों के पुनर्निर्माता हैं बल्कि लोगों के दिलों में विश्वास और सादगी के पुजारी बन चुके हैं।