नारी शक्ति की रक्षा का संदेश देती है नगर देवी मां डुमरेजनी

नारी शक्ति की रक्षा का संदेश देती है नगर देवी मां डुमरेजनी
नगर देवी मां डुमरेजनी

नारी शक्ति की रक्षा का संदेश देती है नगर देवी मां डुमरेजनी

- नवरात्र में भक्तो की रहती है भीड़, होती है मुरादें पूरी

केटी न्यूज/डुमरांव

शारदीय नवरात्र में डुमरांव के प्राचीनतम मंदिरों की महत्ता बढ़ जाती है। इन मंदिरों में सबसे अग्रणी है नगर देवी मां डुमरेजनी का मंदिर, जहां पूरे नवरात्र शहरवासी श्रद्धा, आस्था और सच्चे मन से नगर देवी मां डुमरेजनी की पूजा-अर्चना करते है। उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है और उन्हें मां मनवांछित फल देती है। नगर के दक्षिणी पूर्वी छोर पर कांव नदी के किनारे है मां डुमरेजनी का दरबार। मनौतियों के साथ मां के दरबार में हाजिरी लगाने वाले भक्तों की न सिर्फ झोली भरती है, बल्कि माता आज भी नारी शक्ति की रक्षा करने का संदेश देती हैं। वैसे तो वर्ष भर मां के दरबार मे भक्तों का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन शारदीय नवरात्र के दौरान भक्तों की अपार श्रद्धा बढ़ जाती है। ऐसी मान्यता है कि यदि कोई दिल से माता से कुछ मांगे तो उसकी मुरादें पूरी होती हैं।

आज भी मंदिर घने पेड़ों से घिरा है और आबादी से अलग है। फिर भी हर दिन सैकड़ो की तादात में लोग लोग यहां पूजा अर्चना के लिए आते हैं। सावन माह के पूर्णिमा के दिन मां का वार्षिकोत्सव पूजन धूम-धाम से मनाया जाता है। जानकारों की माने तो लगभग पांच सौ वर्ष पहले डुमरांव घने जंगलों से घिरा हुआ था। उस वक्त सड़कें नहीं थी, कांव नदी और जंगलों के बीच से रास्ता भोजपुर होते हुए उतरप्रदेश को जोड़ता था। इसी रास्ते पर चेरो जाति का किला था। चेरों का इस इलाके में आतंक था। लूटमार उनका पेशा था। शादी के बाद मां डुमरेजनी अपने पति तथा बरातियों के साथ विदाई करा इसी रास्ते अपने सुसराल जा रही थी।

जैसे ही चेरो के इलाके में डोली पहुंचा जंगली चेरों ने लूट की नीयत से हमला बोल दिया। पति के साथ डुमरेजनी भी चंडी का रुप धारण कर भिड़ गयी। पति के गिरते ही डुमरेजनी का हौंसला जवाब देने लगा। डुमरेजनी सतीतत्व की रक्षा के लिए अपने आप को भस्म कर लिया। कुछ समय बाद माता का प्रभाव इलाके में दिखने लगा। चेरो का सम्राज्य भी माता के कोप के कारण खत्म हो गया। दक्षिण टोला में बसे कुछ लोगों के प्रयास से पूजा अर्चना शुरू हुई। पहले माता का छोटा मंदिर बना। माता की कृपा से रीवा नरेश रमण सिंह को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। संतान के रुप में मनौती पूरा होने पर 1898 में महारानी ने भव्य मंदिर का निर्माण करवाया था। उसके बाद से इस मंदिर के प्रति दूर दराज के लोगों में भी आस्था बढ़ी। चेरो जाति के लोगों के किले का अवशेष भी मंदिर के समीप है। अब घने जंगल नहीं है लेकिन घने पेड़ों के कारण जंगल होने का अहसास होता है।