डुमरांव के राज हाईस्कूल में देशरत्न डॉ राजेंद्र बाबू ने 13 दिनों तक छात्रों को दी थी शिक्षा
- राष्ट्रपति बनने पर दोबारा पहुंचे थे डुमरांव, गौरवान्वित हुए थे शहरवासी
अमरनाथ केशरी/डुमरांव
देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद का डुमरांव के प्रति काफी स्नेह था। उनकी यादें आज भी शहरवासियों को गौरवान्वित करती है। तीन दिसंबर को उनकी जयंती है। यह जयंती डुमरांव के लिए खास है। राजेंद्र बाबू को शिक्षा के प्रति काफी लगाव था। उनके बड़े भाई महेंद्र प्रसाद उन दिनों राज हाइस्कूल में शिक्षक के पद पर कार्यरत थे। डुमरांव अनुमंडल में यह विद्यालय उस वक्त राज बहुद्देश्यीय विद्यालय के रूप में चर्चित था। शिक्षक बड़े भाई बीमार होने के बाद अवकाश पर चले गये। छात्रों की पढ़ाई प्रभावित ना हो
इसके लेकर अपने भाई के जगह राजेंद्र बाबू ने इस विद्यालय में 13 दिनों तक छात्रों को तामील दिया। उस समय राजेंद्र बाबू राष्ट्रीय आंदोलन के सक्रिय सिपाही थे। आजादी के बाद भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में शुमार थे और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में प्रमुख भूमिका निभाई। भारत के प्रथम राष्ट्रपति बनने के बाद राजेंद्र बाबू तीन
अक्टूबर 1959 को दोबारा डुमरांव की धरती पर कदम रखे और राज अस्पताल एक्स-रे का उद्घाटन किया। बुजुर्गों की माने तो वे डुमरांव के कई लोगों को नाम से पुकारते थे। शहरवासियों को आज भी मलाल है कि देशरत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद की सिर्फ यादें रह गयी है। उनकी जयंती को ना कोई याद करता है और ना ही यहां कार्यक्रम आयोजित होते है। जबकि डुमरांव के प्रति वे अपने लगाव को कई बार जाहिर भी किए थे। वही राज हाई स्कूल में उन्होंने शिक्षण कार्य किया था। लिहाजा
राज हाई स्कूल में उनकी प्रतिमा होना लाजिमी भी था। स्थानीय समाजसेवी प्रदीप शरण, पवन कुमार, मनीष जायसवाल का कहना है कि राजेंद्र बाबू के प्रतिमा या प्रतीक चिन्ह यहां होता तो शायद आने वाली पीढ़ी इनके बारे में जानकर अपने शहर पर गर्व महसूस करती। समाजसेवियों ने राज्य सरकार व जिला प्रशासन से राज हाई स्कूल परिसर में देश के प्रथम राष्ट्रपति की प्रतिमा स्थापित करने की मांग की है।