डुमरांव के दुलरूआ विधायक राहुल सिंह को कैबिनेट में जगह नहीं मिलने पर बोले समर्थक “योग्यता की हुई अनदेखी”

डुमरांव विधानसभा में इस बार का चुनाव परिणाम जितना रोमांचक रहा, उतना ही रोमांच अब कैबिनेट गठन के बाद देखा जा रहा है। पहली बार विधायक बने राहुल कुमार सिंह को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नई टीम में जगह नहीं मिलने के बाद स्थानीय एनडीए कार्यकर्ताओं में निराशा खुलकर सामने आने लगी है। डुमरांव की गलियों से लेकर राजनीतिक मंचों तक एक ही सवाल गूंज रहा है कि “इतने योग्य चेहरे को आखिर क्यों नहीं मिली कैबिनेट में जगह”।

डुमरांव के दुलरूआ विधायक राहुल सिंह को कैबिनेट में जगह नहीं मिलने पर बोले समर्थक “योग्यता की हुई अनदेखी”

-- समर्थकों ने कैबिनेट विस्तार में मंत्री बनाए जाने की मांग की

केटी न्यूज/डुमरांव

डुमरांव विधानसभा में इस बार का चुनाव परिणाम जितना रोमांचक रहा, उतना ही रोमांच अब कैबिनेट गठन के बाद देखा जा रहा है। पहली बार विधायक बने राहुल कुमार सिंह को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की नई टीम में जगह नहीं मिलने के बाद स्थानीय एनडीए कार्यकर्ताओं में निराशा खुलकर सामने आने लगी है। डुमरांव की गलियों से लेकर राजनीतिक मंचों तक एक ही सवाल गूंज रहा है कि “इतने योग्य चेहरे को आखिर क्यों नहीं मिली कैबिनेट में जगह”।

बता दें कि राहुल सिंह ने हालिया चुनाव में महागठबंधन के प्रत्याशी डॉ. अजीत कुमार सिंह को 2105 वोटों से हराकर एंट्री तो दमदार की, लेकिन सत्ता के गलियारे में उनकी यह एंट्री मंत्रिमंडल तक नहीं पहुंच सकी। जबकि कार्यकर्ताओं को भरोसा था कि उनका प्रभावशाली प्रदर्शन, मजबूत शैक्षणिक पृष्ठभूमि और प्रशासनिक अनुभव मंत्री पद के लिए उन्हें मजबूत दावेदार बनाता है। समर्थकों का तर्क है कि डुमरांव राजनीतिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण क्षेत्र है और यहां से उभरने वाले प्रतिनिधि को सरकार में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिलनी चाहिए।

इसी बीच संविधान का 91वां संशोधन भी चर्चा में है, जिसके तहत किसी राज्य में मंत्री बनने वालों की संख्या विधानसभा के कुल सदस्यों के 15 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती। बिहार के लिए यह सीमा अधिकतम 36 मंत्रियों की है। मौजूदा कैबिनेट में 26 मंत्रियों के शपथ लेने के बाद विस्तार की संभावना जताई जा रही है और समर्थकों ने इसी पर उम्मीदें टिकाई हुई हैं।

राहुल सिंह की योग्यता भी उनके पक्ष में बड़ा तर्क मानी जा रही है। यूपीएससी क्वालीफाई करने के बाद अधिकारी के रूप में सेवा, फिर सुप्रीम कोर्ट में अधिवक्ता की भूमिका, ऐसा करियर शायद ही किसी नए विधायक के हिस्से में आता हो। इसी वजह से एनडीए कार्यकर्ताओं को विश्वास था कि प्रदेश के विकास मॉडल में राहुल की प्रशासनिक समझ एक बड़ा योगदान दे सकती थी। उनके कई दिग्गज नेताओं, मसलन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जदयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा और पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा से हुई मुलाकातों ने भी सियासी कयासों की आग को और तेज किया था।

लेकिन गुरुवार को जैसे ही शपथ ग्रहण में उनका नाम नहीं आया, डुमरांव में मायूसी की लहर दौड़ गई। समर्थकों का मानना है कि क्षेत्र के विकास के लिए यह एक सुनहरा मौका था, जो फिलहाल हाथ से निकल गया।हालांकि इस पूरे विवाद के बीच राहुल सिंह ने अपनी सधी हुई छवि बरकरार रखी है। शांत, संयमित और सियासत के शोर से दूर, उन्होंने साफ कहा कि “मुझे किसी पद का मोह नहीं है। डुमरांव की जनता ने मुझे सेवा का अवसर दिया है, यही मेरे लिए सबसे बड़ा सम्मान है। मैं पूरी निष्ठा से अपने दायित्वों का पालन करूंगा।”

जहां कार्यकर्ताओं की नजरें संभावित कैबिनेट विस्तार पर टिकी हैं, वहीं राहुल सिंह का यह बयान राजनीतिक परिपक्वता का संदेश देता है। डुमरांव की जनता भी अब इंतजार में है कि क्या अगली सूची में उनके विधायक को जगह मिलेगी या यह कहानी यहीं थम जाएगी।