डुमरांव रियासत के पूर्व महाराजा कमल सिंह दो बार निर्दलीय जीतकर बने थे सांसद, उसके बाद कुछ ऐसा हुआ कि...

देश की आजादी के बाद जब देसी रियासतों का विलय होने लगा, तो डुमरांव रियासत भी भारतीय संघ के अंतर्गत चली गई। रियासत के तत्कालीन महाराज ने इससे जुड़े दस्तावेज शाहाबाद के तत्कालीन जिलाधिकारी को सुपुर्द कर दिए। लेकिन इसके बाद उन्होंने लोकतांत्रिक तरीके से सरकार में रहने का तरीका चुना।

डुमरांव रियासत के पूर्व महाराजा कमल सिंह दो बार निर्दलीय जीतकर बने थे सांसद, उसके बाद कुछ ऐसा हुआ कि...
केटी न्यूज़, दिल्ली: कभी डुमरांव राज से पुराने शाहाबाद क्षेत्र की राजनीति तय होती थी। देश की आजादी के बाद जब पहली बार हुए लोकसभा चुनाव हुए, तो पूरे देश में कांग्रेस का परचम लहराया था। लेकिन डुमरांव इससे अछूता रहा था। देश की आजादी के बाद जब देसी रियासतों का विलय होने लगा, तो डुमरांव रियासत भी भारतीय संघ के अंतर्गत चली गई। रियासत के तत्कालीन महाराज ने इससे जुड़े दस्तावेज शाहाबाद के तत्कालीन जिलाधिकारी को सुपुर्द कर दिए। लेकिन इसके बाद उन्होंने लोकतांत्रिक तरीके से सरकार में रहने का तरीका चुना। 
वर्ष 1952 एवं 1957 के लोकसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में डुमरांव रियासत के पूर्व महाराजा कमल सिंह ने जीत दर्ज की। वर्ष 1962 के चुनाव में मिली हार के बाद वह प्रत्यक्ष तौर पर चुनावी राजनीति से अलग हो गए। हालांकि अलग-अलग प्रत्याशी उनका समर्थन चुनाव में हासिल करते रहे। उनके चुनावी महासमर से प्रत्यक्ष तौर पर दूरी बना लेने के बाद इस क्षेत्र से कांग्रेस का रास्ता आसान हो गया। बाद में वाम पंथ (सीपीआइ) से राजनीतिक दूरी रखने वाला डुमरांव राजघराना अप्रत्यक्ष तौर पर कांग्रेस के प्रत्याशी को समर्थन देने लगा। 
कांग्रेस को इसका बेहतर परिणाम भी मिला। 
वर्ष 1980 एवं वर्ष 1984 के लोकसभा चुनाव के दौरान इनके सहयोग व समर्थन से प्रो. केके तिवारी ने चुनावी बाजी मार ली। बाद में किसी बात को लेकर कमल सिंह, तिवारी पर नाराज हो गए। इसका असर लोकसभा के चुनाव परिणाम पर भी पड़ा। भाजपा के  पूर्व जिलाध्यक्ष सच्चिदानंद भगत बताते हैं कि जनता पार्टी के टूट जाने के बाद भाजपा के वरिष्ठ नेता कैलाश पति मिश्रा के आग्रह पर कमल सिंह एक बार फिर चुनावी राजनीति में लौटे और बक्सर सीट से भाजपा के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़े। यह चुनाव तो वे हार गए, लेकिन पहली बार भाजपा के लिए बक्सर में राजनीतिक जमीन तैयार हो गई। 
वर्ष 1989 के चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी प्रो. के.के. तिवारी चुनाव हार गए और भाकपा के तेज नारायण सिंह को संसद जाने का मौका मिला। 1991 के चुनाव में भाजपा ने  लालमुनि चौबे को उतारा, पर इस बार भी तेज नारायण को जीत मिली। वर्ष 1996 के चुनाव में पहली बार लाल मुनि चौबे के रूप में बक्सर से भाजपा का सांसद चुना गया। इसके बाद वह लगातार चार बार सांसद चुने गए। उनकी चुनावी नैया पार कराने में भी कमल सिंह की महत्वपूर्ण भूमिका रही। उनके निधन के बाद क्षेत्र में राजनीतिक समीकरण बदले और साथ ही उनके परिवार की राजनीतिक हैसियत भी बदली।