केटी न्यूज़, पटना : लोकसभा चुनाव का दौर है। ऐसे में हर कोई टिकट के चक्कर में लगा है। बक्सर से अश्विनी चौबे का टिकट कटने की बात तो पहले से ही हो रही थी। उसके पहले से ही कई लोग बक्सर से चुनाव लड़ना छह रहे थे। एक बड़े दल के प्रत्याशी जनसंपर्क में निकले थे। मुलाकात के दौरान किसी ने कहा- आनंद है न? जवाब मिला- आनंद नहीं, प्रफुल्लित हूं। दरअसल, यह पूरा मामला भारतीय पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारी आनंद मिश्रा से जुड़ा है, जो बीते जनवरी महीने में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर राजनीति के मैदान में उतरे थे। वह बक्सर संसदीय सीट से भाजपा के टिकट की उम्मीद लगाए हुए थे। पर यह हो नहीं सका। अब वह निर्दलीय चुनाव लड़ने के लिए ताल ठोंक रहे हैं।
यहां आखिरी चरण यानी 1जून को वोटिंग होनेवाली है। अपने-अपने समीकरणों को ध्यान में रखते हुए एनडीए और महागठबंधन ने अपने-अपने उम्मीदवार भी तय कर दिए हैं, लेकिन पूर्व आईपीएस आनंद मिश्रा की एंट्री ने बक्सर में होनेवाले बैटल के तमाम समीकरण बिगाड़कर रख दिए हैं।
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने भी छोड़ी थी नौकरी
केरल उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश उदय प्रताप सिंह ने भी बक्सर से चुनाव लड़ने के लिए नौकरी छोड़ दी थी। उन्हें बक्सर से राष्ट्रीय जनता दल का टिकट भी मिल गया था। हालांकि वह भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार लाल मुनि चौबे से चुनाव हार गए थे। उनके लिए खुद लालू प्रसाद यादव चुनाव प्रचार करने आए थे। लेकिन इसका फायदा नहीं हो सका।
क्या उनका हाल पूर्व डीजीपी का होगा
अब लोगों के मन में यह सवाल है कि क्या उनका हाल पूर्व डीजीपी और अब कथा वाचक गुप्तेश्वर पांडेय की तरह ही होगा? जब वे स्वैच्छिक सेवानिवृति के लिए आवेदन देने की तैयारी में थे, तब लोग उन्हें राज्य के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय का किस्सा सुनाते थे। पांडेय भी बक्सर से चुनाव लड़ना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने दो दफे कोशिश भी की। पहली बार संसदीय चुनाव में भाजपा के टिकट के लिए तो दूसरी बार विधानसभा चुनाव में जदयू से। विधानसभा में वह बक्सर के अलावा भोजपुर जिले की शाहपुर सीट से भी चुनाव लड़ने के लिए तैयार दिख रहे थे। लेकिन उन्हें टिकट ही नहीं मिल सका। पांडेय अब गेरुआ वस्त्र धारण कर संत की भूमिका में आ गए हैं। वह देश-विदेश में भावगत और रामकथा कहते हैं।
आनंद असम-मेघालय में कर चुके हैं नौकरी
मूल रूप से भोजपुर जिले के शाहपुर थाना के परसौड़ा गांव के रहने वाले आनंद का परिवार अब कोलकाता में रहता है। इनके पिता का बोकारो में भी व्यवसाय है। खुद आनंद कोलकाता से पढ़े-लिखे हैं। भारतीय पुलिस सेवा के 2011 बैच में उनका चयन असम-मेघालय कैडर के लिए हुआ था। वह असम के अलग-अलग जिलों में एसपी रह चुके हैं। नौकरी के आखिरी दिनों में उन्हें मणिपुर हिंसा की जांच से जुड़ी एसआइटी में जोड़ा गया था। बीते करीब एक साल पहले वह एक गैर सरकारी संगठन परम फाउंडेशन के जरिए बक्सर में सक्रिय हुए। करीब छह महीने पहले उनकी राजनीतिक मंशा लोगों के सामने आने लगी। हालांकि औपचारिक मंचों पर खासकर पत्रकारों के सामने वह इस बारे में सीधी बात करने से बचते रहे।