तीसरे दिन होती है 'माँ चन्द्रघन्टा' की पूजा,जाने मां की कथा
चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है।इन्हें पापों की विनाशिनी कहा जाता है।
केटी न्यूज़/दिल्ली
चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है।इन्हें पापों की विनाशिनी कहा जाता है।मान्यता है कि चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की उपासना से साहसी और पराक्रमी बनने का वरदान मिलता है।
मां चंद्रघंटा की कथा
प्रचलित कथा के मुताबिक, माता दुर्गा ने मां चंद्रघंटा का अवतार तब लिया था जब दैत्यों का आतंक बढ़ने लगा था।उस समय महिषासुर का भयंकर युद्ध देवताओं से चल रहा था।महिषासुर देवराज इंद्र का सिंहासन प्राप्त करना चाहता था। वह स्वर्ग लोक पर राज करने की इच्छा पूरी करने के लिए यह युद्ध कर रहा था।जब देवताओं को उसकी इस इच्छा का पता चला तो वे परेशान हो गए।सभी देवता भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के सामने पहुंचे।त्रिदेव ने देवताओं की बात सुनी तो उन्हें क्रोध आया।उस क्रोध के आने पर उन तीनों के मुख से एक ऊर्जा निकली। उस ऊर्जा से एक देवी अवतरित हुईं। उस देवी को भगवान शंकर ने अपना त्रिशूल, भगवान विष्णु ने अपना चक्र, इंद्र ने अपना घंटा, सूर्य ने अपना तेज और तलवार और सिंह प्रदान किया। इसके बाद मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का वध कर देवताओं की रक्षा की।
मां का मंत्र
1-पिण्डजप्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकेर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता॥
2-या देवी सर्वभूतेषु माँ चन्द्रघण्टा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहारूढा चन्द्रघण्टा यशस्विनीम्॥
मां चंद्रघंटा की पूजा विधि
माता को पूजा शुरू करने से पहले केसर और केवड़ा जल से स्नान कराना जरूरी है ।उसके बाद मां को सुनहरे रंग के वस्त्र पहना कर कमल और पीले गुलाब के फूल अर्पण करें और साथ ही माला भी चढ़ाएं। आप पंचामृत, मिश्री और मिठाई आदि से भोग लगाकर उनके मंत्रों का जाप करें।मां से अपने सुखी समृद्ध जीवन की प्रार्थना करें।