आज होती है स्कंदमाता की पूजा
चैत्र नवरात्रि के पांचवें दिन माता रानी के पंचम स्वरूप मां स्कंदमाता की पूजा का विधान है।
केटी न्यूज़/दिल्ली
चैत्र नवरात्रि के पांचवें दिन माता रानी के पंचम स्वरूप मां स्कंदमाता की पूजा का विधान है। भगवान स्कंद यानी की कार्तिकेय की माता होने के कारण देवी के इस पांचवें स्वरूप को 'स्कंदमाता' के नाम से जाना जाता है।
स्कंदमाता की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, तारकासुर नाम का एक राक्षस था, जिसका आतंक बहुत बढ़ गया था।तारकासुर का अंत कोई नहीं कर सकता था,क्योंकि भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय के हाथों की उसका अंत संभव था। ऐसे में मां पार्वती ने अपने पुत्र स्कंद यानी कार्तिकेय को युद्ध के लिए प्रशिक्षित करने के लिए स्कंदमाता का रूप धारण किया।स्कंदमाता से युद्ध का प्रशिक्षण लेने के बाद कार्तिकेय ने तारकासुर का अंत किया।यह भी कहा जाता है कि, कालिदास द्वारा रचित रघुवंशम महाकाव्य और मेघदूक रचनाएं देवी स्कंदमाता की कृपा से ही संभव हुई
मां स्कंदमाता पूजा मंत्र
1-महाबले महोत्साहे महाभय विनाशिनी।त्राहिमाम स्कन्दमाते शत्रुनाम भयवर्धिनि
2-सिंहासनगता नित्यं पद्माञ्चित करद्वया।शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
मां स्कंदमाता का प्रिय भोग
मां स्कंदमाता को केला प्रिय है, इसलिए पूजा के समय मां स्कंदमाता को केले का भोग लगाना चाहिए। केला न हो तो आप बताशे का भी भोग लगा सकते हैं।मां स्कंदमाता को लाल रंग वाले फूल प्रिय हैं। आप माता को गुड़हल या लाल गुलाब का फूल अर्पित करें।इससे आपकी मनोकामना पूरी होगी।
मां की पूजा का महत्व
सिंह पर सवार मां स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं।वो अपनी ऊपर वाली दांयी भुजा में बाल कार्तिकेय को गोद में उठाए उठाए हुए हैं, नीचे वाली दांयी भुजा में कमल पुष्प लिए हुए हैं, ऊपर वाली बाईं भुजा से माता रानी ने जगत तारण वरद मुद्रा बना रखी है व नीचे वाली बाईं भुजा में कमल पुष्प है। उनके इस रूप को देखकर काफी शांति मिलती है।ऐसा कहा जाता है कि, संतान संबंधी कष्टों को दूर करने के लिए माता स्कंदमाता की पूजा की जाती है। इसके साथ ही मां स्कंदमाता की पूजा करने से ज्ञान और बुद्दि की भी प्राप्ति होती है। मां स्कंदमाता की पूजा करने से दुख दूर होते हैं और पापों से मुक्ति मिलती है.