अभी भी सक्रिय है कई अवैध नर्सिंग होम, प्रशासनिक कार्रवाई को नाकाफी बता रहे लोग
दो दिन पूर्व डीएम अंशुल अग्रवाल के निर्देश पर जिलेभर में अवैध नर्सिंग होम के खिलाफ कार्रवाई की गई। जिला प्रशासन ने छापेमारी करने वाली टीम को पहले ही जिले के विभिन्न स्थानों पर संचालित कुल 55 नर्सिंग होमों की सूची थमाई थी, जिनपर संदेह था कि वे अवैध तरीके से संचालित हो रहे है।
- शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों में कुकुरमुत्ते की तरह संचालित हो रहे है अवैध अस्पताल, कुछ चिन्हत नर्सिंग होमो तक सिमटी छापेमारी की कार्रवाई
केटी न्यूज/डुमरांव
दो दिन पूर्व डीएम अंशुल अग्रवाल के निर्देश पर जिलेभर में अवैध नर्सिंग होम के खिलाफ कार्रवाई की गई। जिला प्रशासन ने छापेमारी करने वाली टीम को पहले ही जिले के विभिन्न स्थानों पर संचालित कुल 55 नर्सिंग होमों की सूची थमाई थी, जिनपर संदेह था कि वे अवैध तरीके से संचालित हो रहे है।
इन 55 नर्सिंगहोमो में 29 सील किए जा चुके है, लेकिन प्रशासन की इस कार्रवाई के बाद भी अवैध तरीके से नर्सिंग होम संचालन पर पूरी तरह से रोक नहीं लग पाई है। जानकारों का कहना है कि अकेले डुमरांव अनुमंडल इलाके में कई बड़े नर्सिंग होम या अस्पताल है जिनका निबंधन भी नहीं है। जबकि जिले में ऐसे अस्पतालों की संख्या दर्जनों में है।
जानकारों का कहना है कि कोरानसराय व चौगाईं में जिन अस्पतालों में छापेमारी किया है उनसे बड़े अस्पताल भी वहां संचालित हो रहे है, लेकिन ताज्जूब कि उनकी सूची प्रशासन के पास नहीं थी। जबकि छापेमारी के समय इन अस्पतालों में दर्जनों की संख्या में मरीज भी थे। इसी तरह डुमरांव में भी कई अस्पताल ऐसे है, जिनका नाम प्रशासन की सूची में नहीं था। लिहाजा वे इस कार्रवाई की जद में आने से बच गए। जबकि बक्सर, सिमरी, राजपुर, इटाढ़ी, नावानगर, ब्रह्मपुर, सदर प्रखंड जैसे अन्य प्रखंडो में भी बड़े पैमाने में अवैध नर्सिंग होम संचालित हो रहे है। जिन पर प्रशासन की नजर नहीं पड़ पाई है।
मरीजों के जान के साथ खिलवाड़ कर रहे है अवैध नर्सिंग होम संचालक
जानकारों का कहना है कि अवैध नर्सिंग होम संचालक न सिर्फ मरीजों का आर्थिक दोहन कर रहे है बल्कि उनके जान के साथ खिलवाड़ भी कर रहे है। अभी पिछले महीने ही डुमरांव रेलवे स्टेशन के पास संचालित एक अस्पताल में प्रसूता का आपरेशन के बाद तबीयत खराब हो गई थी तथा कुछ दिनों के बाद ही जच्चा बच्चा की मौत हो गई। इस मामले में जब परिजन कानून का सहारा लिए तबतक अस्पताल संचालक ताला जड़ फरार हो चुके थे। इसके अलावे भी कई ऐसी घटनाएं अनुमंडल इलाके में देखने को मिली है।
कानूनी पेंच में फंस जाती है कार्रवाई
बता दें कि जब भी किसी नर्सिंग होम या अस्पताल पर इलाज में लापरवाही का आरोप लगता है तो एफआईआर दर्ज करने से पहले उसकी जांच करवाई जाती है। यह जांच स्वास्थ्य विभाग द्वारा किया जाता है। जबतक जांच रिपोर्ट आता तब तक अस्पताल संचालक या तो पीड़ित के साथ समझौता कर लेते है या फिर फरार हो जाते है। जिस कारण उन पर शिकंजा नहीं कस पाता है। डुमरांव के अलावे बक्सर में भी यह देखने को मिला है।
सरकारी अस्पताल कर्मियों से रहती है सांटगाठ
जानकार बताते है कि अवैध नर्सिंग होम संचालक बड़ी चालाकी से मरीजों को अपने जाल में फंसाते है। इसके लिए वे एंबुलेंस चालक, आशाकर्मी व सरकारी अस्पताल के अन्य कर्मियों यहां तक कि डॉक्टरों से सांट गाठ भी रखते है। जानकार बताते है कि सरकारी अस्पताल से रेफर होने से लेकर निजी अस्पताल में पहुंचाने तक कमीशन का खेल होता है। हाल ही में बक्सर के एक निजी अस्पताल द्वारा मरीज को मोटी रकम का बिल थमाए जाने के बाद यह बात सामने आई थी कि उसे सदर अस्पताल से रेफर किया गया था, लेकिन एंबुलेंस चालक उसे चालाकी से लेकर पास के एक निजी अस्पताल में चला गया था। जहां, आधे घंटे में ही सिजेरियन कर प्रसव करा दिया गया था। जबकि सदर अस्पताल में सिजेरियन की व्यवस्था व डॉक्टर भी मौजूद है। वही विभागीय सूत्रों का कहना है कि छापेमारी के दौरान भी कई अस्पतालों के संचालन में सरकारी डॉक्टरों की भूमिका सामने आई है।
कहते है सीएस
प्रशासन द्वारा जिन नर्सिंग होमो की सूची थमाई गई थी, उनकी जांच पड़ताल पूरी की जा चुकी है। अभी भी जिले में अवैध नर्सिंग होम संचालन की सूचना मिल रही है। जल्दी ही उन अस्पतालों पर भी छापेमारी की जाएगी। - डॉ. अरूण कुमार श्रीवास्तव, सीएस, बक्सर