रंगमंच समाजिक कुरितियों को दूर करने का सशक्त माध्यम है - सुरेश संगम

रंगमंच समाजिक कुरितियों को दूर करने का सशक्त माध्यम है - सुरेश संगम

- डाब के तत्वावधान में मनाई गई हिंदी रंगमंच की 155वीं वर्षगांठ

केटी न्यूज/बक्सर

डिस्ट्रिक्ट आर्टिस्ट एसोसिएशन ऑफ़ बक्सर ’डाब’ के तत्वावधान में रविवार को स्थानीय रेड क्रॉस भवन में हिंदी रंगमंच की 155 वीं वर्षगांठ हर्षाेल्लास मनाई गई। जिसके तहत रंगमंच दशा व दिशा विषय पर सेमिनार का आयोजन सह सम्मान समारोह रखा गया था। वही हिन्दी साहित्य, रंगकर्म व समाजिक कार्य के क्षेत्र मे उल्लेखनीय योगदान के लिए बक्सर एसडीएम श्री धीरेंद्र मिश्रा, नगर चेयर मैन कैमरून निशा, डा सी एम सिंह,  डा महेंद्र प्रसाद, भोजपुरी साहित्य मंडल के अध्यक्ष अनिल त्रिवेदी, प्रख्यात समाज सेवि रामस्वरूप अग्रवाल, साई मंदिर के सचिव श्री चंदन गुप्ता को शाल, मोमेंटो  व प्रशस्तिपत्र से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता बक्सर के चर्चित व प्रख्यात रंगकर्मी सह अधिवतका सुरेश संगम तथा संचालन रेडक्रास सचिव डा श्रवण कुमार तिवारी ने की। कार्यक्रम का उद्घाटन बक्सर नगर की चेयरमैन श्रीमती कैमरून निशा व प्रख्यात गायक व नायक गोपाल राय ने संयुक्त रूप से की। 

डाब के अध्यक्ष सुरेश संगम ने सेमिनार  को संबोधित करते हुए बताया कि भारतेंदु हरिश्चंद्र के दोस्त ईश्वर नारायण सिंह के प्रयास से हिंदी में प्रथम नाट्य प्रस्तुति  कार्यक्रम की गई। अध्यक्षता व संचालन बक्सर के चर्चित व प्रख्यात रंगकर्मी सुरेश संगम ने किया। कार्यक्रम का उद्घाटन  भारतीय मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रख्यात सर्जन डॉ महेंद्र प्रसाद व सचिव डा श्रवण तिवारी ने संयुक्त रूप से की। डाब के अध्यक्ष सुरेश संगम ने सेमिनार को संबोधित करते हुए बताया कि भारतेंदु हरिश्चंद्र के दोस्त ईश्वर नारायण सिंह के प्रयास से हिंदी में प्रथम नाट्î प्रस्तुति जानकी मंगल पंडित शीतला प्रसाद त्रिपाठी द्वारा बनारस थिएटर में 3 अप्रैल 1868 को संपन्न हुई थी।

इसके बाद एक सिलसिला चल निकला जिसमें रणधीर प्रेम मोहनी एवं सत्य हरिशचंद्र जैसे नाटकों का मंचन हुआ। हिंदी के इस प्रथम नाट्î मंचन के साथ 3 अप्रैल को हिंदी रंगमंच दिवस के रूप में अमृतलाल नागर ने इसे लोकप्रिय करने एवं मनाने पर जोर दिया, तब से यह परंपरा चल पड़ी। उन्होंने कहा कि भारत में आजकल रंगमंच की दशा संतोषजनक नहीं है। जबकि स्वतंत्रता आंदोलन में भारतीय रंगमंच का बहुत बड़ा योगदान रहा है। आदि काल से रंगमंच समाजिक कुरीतियों को दूर करने मे महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इसके अलावे कई अन्य वक्ताओं ने भी अपने विचार रखे। सेमिनार में महासचिव हरिशंकर गुप्ता, रवि शर्मा, रामस्वरूप अग्रवाल, डा ओमप्रकाश केशरी, पवननंदन, वरिष्ठ पत्रकार डा शशांक शेखर,  प्रदीप जायसवाल, गायक पंकज सिंह, प्रशान्त कुमार, तनिशा राय, अनिशा राय, डा जी कुमारी, आर्यन जायसवाल, एम आलम बुलबुल, रमेश कुमार, निर्मल सिंह आदि मौजूद थे।