डुमरांव विस में इस बार होगी परंपरा बनाम परिवर्तन की जंग

इस बार का विधानसभा चुनाव डुमरांव में सिर्फ सत्ता की लड़ाई नहीं, बल्कि साख और संघर्ष का भी इम्तिहान बन गया है। यहां एक ओर चार बार विधायक रह चुके पुराने खिलाड़ी हैं, तो दूसरी ओर नए चेहरे अपने जनसरोकार और विकास के दावों के साथ मैदान में हैं। यह चुनाव हर उम्मीदवार के लिए चेतावनी और चुनौती दोनों लेकर आया है। विधानसभा चुनाव 2025 में इस बार डुमरांव की सियासत का रंग पहले से कहीं ज्यादा गर्म है। चार बार के पूर्व विधायक, मौजूदा विधायक और एनडीए के उम्मीदवार तीनों ने इस ऐतिहासिक सीट को राज्य के सबसे दिलचस्प मुकाबलों में शामिल कर दिया है। मुकाबला अब त्रिकोणीय हो गया है, और हर उम्मीदवार जनता के दिल में जगह बनाने की जद्दोजहद में जुटा है। सीपीआईएमएल से मौजूदा विधायक डॉ. अजीत कुशवाहा दोबारा जनता के बीच विकास और जनसंघर्ष के मुद्दे लेकर पहुंचे हैं। पिछली बार अपने जनसंपर्क, संघर्षशील छवि और ग्रामीण वर्ग के समर्थन से जीतने वाले डॉ. कुशवाहा इस बार भी आत्मविश्वास के साथ कह रहे हैं जनता विकास देख चुकी है, इस बार भी भरोसा कायम रहेगा।

डुमरांव विस में इस बार होगी परंपरा बनाम परिवर्तन की जंग

-- डुमरांव की जंग हुई दिलचस्प, तीन दावेदारों में तगड़ा मुकाबला जनता किस पर करेगी भरोसा

पीके बादल/केसठ

इस बार का विधानसभा चुनाव डुमरांव में सिर्फ सत्ता की लड़ाई नहीं, बल्कि साख और संघर्ष का भी इम्तिहान बन गया है। यहां एक ओर चार बार विधायक रह चुके पुराने खिलाड़ी हैं, तो दूसरी ओर नए चेहरे अपने जनसरोकार और विकास के दावों के साथ मैदान में हैं। यह चुनाव हर उम्मीदवार के लिए चेतावनी और चुनौती दोनों लेकर आया है। विधानसभा चुनाव 2025 में इस बार डुमरांव की सियासत का रंग पहले से कहीं ज्यादा गर्म है। चार बार के पूर्व विधायक, मौजूदा विधायक और एनडीए के उम्मीदवार तीनों ने इस ऐतिहासिक सीट को राज्य के सबसे दिलचस्प मुकाबलों में शामिल कर दिया है। मुकाबला अब त्रिकोणीय हो गया है, और हर उम्मीदवार जनता के दिल में जगह बनाने की जद्दोजहद में जुटा है।

सीपीआईएमएल से मौजूदा विधायक डॉ. अजीत कुशवाहा दोबारा जनता के बीच विकास और जनसंघर्ष के मुद्दे लेकर पहुंचे हैं। पिछली बार अपने जनसंपर्क, संघर्षशील छवि और ग्रामीण वर्ग के समर्थन से जीतने वाले डॉ. कुशवाहा इस बार भी आत्मविश्वास के साथ कह रहे हैं जनता विकास देख चुकी है, इस बार भी भरोसा कायम रहेगा। 

वहीं, चार बार विधायक रह चुके ददन यादव उर्फ ददन पहलवान भी इस बार फिर मैदान में हैं। उनका कहना है कि डुमरांव की असली पहचान मेहनतकश जनता है, जिसे सिर्फ अनुभव ही समझ सकता है। यादव समुदाय में उनकी लोकप्रियता अब भी काफी मजबूत है, जो उन्हें इस चुनाव में निर्णायक बढ़त दे सकती है। उनकी जमीनी पकड़ और जनता से सीधा जुड़ाव कई क्षेत्रों में अब भी स्पष्ट दिखता है।

उधर, एनडीए की ओर से जेडीयू उम्मीदवार राहुल सिंह पूरे दमखम के साथ मैदान में हैं। वे लगातार जनसभाओं में दावा कर रहे हैं कि इस बार लड़ाई में कोई नहीं है, जनता ने मन बना लिया है, डुमरांव में एनडीए की जीत तय है। राहुल सिंह के आने से सियासी समीकरणों में बड़ा बदलाव आया है और अब त्रिकोणीय टक्कर बन गई है। डुमरांव विधानसभा में विकास, बेरोजगारी, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, युवाओं का पलायन और शिक्षा व्यवस्था जैसे मुद्दे इस बार मतदाताओं के बीच सबसे अहम हैं। जनता अब वादों से ज्यादा काम पर भरोसा करना चाहती है।

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, डुमरांव की यह लड़ाई बिहार की सबसे रोचक सीटों में शामिल हो चुकी है। यहां अनुभव, संघर्ष और संगठन शक्ति के बीच सीधी टक्कर है। विश्लेषकों का कहना है कि यह सीट पूरे बक्सर जिले की सियासी दिशा तय करेगी। एक ओर पुराना जनाधार और अनुभव है, तो दूसरी ओर संगठन और रणनीति। किस पर जनता भरोसा जताती है, यह तय करेगा कि डुमरांव परंपरा को चुनेगा या परिवर्तन को। इस बार का चुनाव निश्चित रूप से चेतावनी भी है और अवसर भी हर उम्मीदवार के लिए, हर मतदाता के लिए। परिणाम जो भी हो, लेकिन मुकाबला इस बार बेहद दिलचस्प और संघर्षपूर्ण होने वाला है। डुमरांव का मैदान इस बार परंपरा बनाम परिवर्तन की ऐतिहासिक जंग होने वाली है।