गंगा जमुनी तहजीब के प्रतीक थे उस्ताद - मुरली मनोहर श्रीवास्तव
- उस्ताद बिस्मिल्लाह खां महोत्सव में शामिल हुए उनके जीवन पर किताब लिखने वाले साहित्यकार मुरली मनोहर श्रीवास्तव
केटी न्यूज/डुमरांव
डुमरांव में शहनाई नवाज भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां समारोह का आयोजन हुआ। इसमें बिस्मिल्लाह खां पर शोधपरक पुस्तक लिखने वाले और पिछले 30 वर्षों से उस्ताद की स्मृतिंयो को स्थापित करने के लिए लगातार काम करने वाले लेखक मुरली मनोहर श्रीवास्तव ने मंच संबोधित करते हुए बिस्मिल्लाह खां साहब के साथ गुजारे अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि उस्ताद गंगा-जमुनी के प्रतीक थे।
उन्होंने बताया कि उस्ताद का नाम आखिर बिस्मिल्लाह खां कैसे पड़ा। उनके अपने सौतेले भाई पंचकौड़ी मियां ने डुमरांव नहीं छोड़ा तो उस्ताद ने हिंदुस्तान में रहकर पांच समय के नमाजी मंदिरों में सुबह शाम शहनाई वादन किया करते थे। बिस्मिल्लाह खां साहब का नाम बिस्मिल्लाह खां कैसे पड़ा इसकी एक मात्र वजह है कि एक समय ऐसा भी आया कि जीविकोपार्जन के लिए कमरुद्दीन और शम्सुद्दीन यानि दोनों भाईयों को बिस्मिल्लाह एंड पार्टी खोलनी पड़ी।
जब आगे कदम बढ़े 1962 में गुंज उठी शहनाई में म्यूजिक डायरेक्शन देने का मौका मिला कमरुद्दीन जिनके भाई शम्सुद्दीन थे का निधन पहले ही हो चुका था। फिर क्या उस्ताद ने फिल्म में नाम बिस्मिल्लाह खां ही रखवा दिया, जिससे दोनों भाई अमर हो गए और वही आगे चलकर शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां होकर रह गए। बक्सर जिले की पहली फ़िल्म बाजे शहनाई हमार अंगना में बतौर म्यूजिक डायरेक्टर और फ़िल्म की मुहूर्त के लिए डुमरांव में 1979 में डॉ शशि भूषण श्रीवास्तव लेकर आये थे।
बिस्मिल्लाह खां की स्मृति को स्थापित करने के लिए मुरली ने अनेक काम किये, यही वजह रही कि वर्ष 2022 में उस्ताद पर काम करने के लिए उनका नाम इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज कर लिया गया। मुरली ने इस आयोजन के लिए जिला प्रशासन को धन्यवाद दिया और कहा कि इसी बहाने उस्ताद के अब्बाई वतन के लोगों के जेहन में फिर से उनका नाम ताजा हो
गया है। उन्होंने डुमरांव में उस्ताद के नाम पर संगीत महाविद्यालय व म्यूजियम खोलने की मांग बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से की। मुरली ने कहा कि उस्ताद जैसी शख्सियत सदियों में एक बार पैदा होती है।