रोचक राजनीति: वकालत के मिथ्य को तोड़ पायेंगे डुमरांव विधानसभा में जेडीयू प्रत्याशी राहुल सिंह
जेडीयू ने जब-जब वकालत की शिक्षा प्राप्त उम्मीदवारों का डुमरांव विधानसभा से चुनावी मैदान में उतारा है। तब तब उसे हार का सामना करना पड़ा है। ऐसे में वर्तमान प्रत्याशी राहुल पर सभी की निगाहें टिकी है कि क्या इस मिथ्य को वह तोड़ पायेंगे।
- वकालत के प्रत्याशियों को करना पड़ा है हार का सामना
केटी न्यूज/डुमरांव।
जेडीयू ने जब-जब वकालत की शिक्षा प्राप्त उम्मीदवारों का डुमरांव विधानसभा से चुनावी मैदान में उतारा है। तब तब उसे हार का सामना करना पड़ा है। ऐसे में वर्तमान प्रत्याशी राहुल पर सभी की निगाहें टिकी है कि क्या इस मिथ्य को वह तोड़ पायेंगे। जबकि वकालत के अतिरिक्त अन्य प्रत्याशी को मैदान में उतारा है। तब रिकार्ड जीत दर्ज की है। वर्ष 2010 में डॉ. दाउद अली को उतरा गया। उन्होंने डुमरांव विधानसभा से जेडीयू का पहली बार खाता खोला था और विधानसभा में गए थे। उन्होंने करीब 20 हजार वोट से चुनाव जीते थे। वर्ष 2015 में शिक्षक की नौकरी छोड़कर राजनीति में आये ददन यादव को प्रत्याशी बनाया था।

उन्होंने करीब 30 हजार वोट से जीत दर्ज की थी। बता दें कि वर्ष 1994 में जॉर्ज फर्नांडीस और नीतीश कुमार ने समता पार्टी की नींव रखी थी। जो आगे चलकर जेडीयू बनी। 1995 में समता पार्टी के टिकट पर रामबिहारी सिंह डुमरांव विधानसभा में पहली बार चुनावी मैदान में उतरें थे। दमदार उपस्थित दिखाई। हालांकि चौथे स्थान पर रहे। नवंबर 2005 तक वह जेडीयू के प्रत्याशी बने रहे। लेकिन, जीत नसीब नहीं हो पायी थी। रामबिहारी सिंह ने पटना विश्वविद्यालय से वर्ष 1981 में एलएलबी की डिग्री हासिल की थी। वर्ष 2020 में अंजुम आरा को प्रत्याशी बनाया गया था। उन्होंने वर्ष 2009 में पटना विश्वविद्यालय से एलएलएम की डिग्री हासिल की थी। अंजूम आरा को भी हार का सामना करना पड़ा था। रामबिहारी सिंह व अंजुम आरा छात्र जीवन से राजनीति में रही।

वहीं वर्तमान प्रत्याशी राहुल ने 2012 में दिल्ली विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री हासिल की है। सोशल मिडिया पर जो वीडियो दिखाई पड़ रहा है उससे लग रहा है कि यह भी छात्र जीवन में ही राजनीति में आ गए थे। अब ऐसे में यह देखना है कि इस मिथ्य को तोड़ने में प्रत्याशी राहुल सिंह कितने कामयाब हो पाते है।

