शिक्षा विभाग में बड़ा खेल: राजकीय बुनियादी विद्यालय सरेंजा का फर्जी शिक्षक, बना डीईओ कार्यालय में कंप्यूटर ऑपरेटर

बक्सर का जिला शिक्षा कार्यालय मानो फर्जीवाडे़ व विवादों का अड्डा बन चुका है। हर दिन यहां से कोई न कोई नया कारनामा उजागर होता रहता है। जिससे न सिर्फ नियमों को ताक पर रखने की जानकारी मिलती है बल्कि कानून की नजर में अपराधी को ताज भी पहना दिया जाता है।

शिक्षा विभाग में बड़ा खेल: राजकीय बुनियादी विद्यालय सरेंजा का फर्जी शिक्षक, बना डीईओ कार्यालय में कंप्यूटर ऑपरेटर

-- फर्जी शिक्षकों का मजबूत है नेटवर्क, डीईओ कार्यालय में जमी पैठ

-- 2013 से चल रहा फर्जीवाड़ा अब फिर सुर्खियों में, विक्रमादित्य प्रकरण ने खोला नया पन्ना

केटी न्यूज/बक्सर

बक्सर का जिला शिक्षा कार्यालय मानो फर्जीवाडे़ व विवादों का अड्डा बन चुका है। हर दिन यहां से कोई न कोई नया कारनामा उजागर होता रहता है। जिससे न सिर्फ नियमों को ताक पर रखने की जानकारी मिलती है बल्कि कानून की नजर में अपराधी को ताज भी पहना दिया जाता है।

ताज़ा मामला डीईओ कार्यालय में कंप्यूटर ऑपरेटर बनने वाले आदित्य रंजन का सामने आया है। चौसा प्रखंड के राजकीय बुनियादी विद्यालय सरेंजा में फर्जी तरीके से शिक्षक की नौकरी करता था तथा वर्ष 2013 में डीईओ के निर्देश पर चौसा प्रखंड के तत्कालीन बीईओ ने उस पर फर्जीवाड़े का एफआईआर भी दर्ज कराया था, लेकिन वह विभागीय सांट-गाठ से साक्ष्य को छिपा डीईओ कार्यालय में कंप्यूटर ऑपरेटर बन बैठा है। इससे शिक्षा विभाग की गोपनीयता तार-तार होने से इंकार नहीं किया जा सकता है। यहां बता दें कि शिक्षा विभाग में सक्रिय तथाकथित माफिया भी ऐसे ही कर्मियों के सहारे अधिकारियों तक पर रौब गांठते है।

जानकारों का कहना है कि यह अकेले आदित्य रंजन का मामला नहीं है, बल्कि राजकीय बुनियादी विद्यालय सरेंजा में जिन दो दर्जन के करीब शिक्षकों पर फर्जीवाड़ा करने का आरोप लगा एफआईआर दर्ज कराया गया था, उनमें कई के सगे संबंधी शिक्षा विभाग में जमें है। जिनके सहारे विभाग में लंबे समय से फर्जीवाड़ा का खेल जारी है। वहीं, जानकार बताते है कि उनकी मजबूत पैठ के आगे विभागीय अधिकारी जानते हुए भी मौन साधे रहते है। 

-- विक्रमादित्य प्रकरण ने खोला राज

बता दें कि राजकीय बुनियादी विद्यालय सरेंजा के सहायक शिक्षक विक्रमादित्य उर्फ विक्रमा राय के वेतन भुगतान विवाद के मामले ने कई पुराने पन्नों को खोलकर रख दिया है। कंप्यूटर ऑपरेटर आदित्य रंजन का मामला भी विक्रमादित्य प्रकरण के बाद ही सामने आया है। अब संदेह जताया जा रहा है कि इससे जुड़े कई और राज़ भी उजागर होंगे, जिससे शिक्षा विभाग में वर्षों से चल रहा भ्रष्टाचार और फर्जीवाड़ा सामने आ सकता है।

-- बीईओ ने 2013 में कराया था मुकदमा दर्ज

बता दें कि वर्ष 2013 में तत्कालीन जिला शिक्षा पदाधिकारी के आदेश पर चौसा प्रखंड के बीईओ अजय कुमार सिंह ने राजपुर थाना में आवेदन दिया था। इस आवेदन में आदित्य रंजन उर्फ सोनू सहित बीस फर्जी सहायक शिक्षकों और आदेशपाल पर जालसाजी व धोखाधड़ी का आरोप लगाया गया था। बीईओ के आवेदन में स्पष्ट उल्लेख था कि इन लोगों ने फर्जी तरीके से सरकारी नौकरी हासिल की और राजकीय विद्यालयों में वर्षों तक सहायक शिक्षक व आदेशपाल बने रहे। तत्कालीन डीईओ ने प्राथमिकी दर्ज कराने का आदेश जारी किया था, जिसके आलोक में मामला दर्ज हुआ।

-- फर्जी से ‘डाटा ऑपरेटर’ तक का सफर

कार्रवाई तेज हुई तो आरोपितों में से कई गायब हो गए, लेकिन हैरानी की बात यह रही कि मुख्य आरोपितों में शामिल आदित्य रंजन उर्फ सोनू एक बार फिर से जिला शिक्षा कार्यालय में ही आ धमके। जानकारी के अनुसार, वे डीईओ कार्यालय में संविदा के आधार पर डाटा ऑपरेटर की नौकरी कर रहे हैं। विभागीय सूत्रों का कहना है कि कार्यालय में आने वाले अधिकतर पत्र और फाइलों पर उनकी सीधी नज़र रहती है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजमी है कि जिस पर गंभीर आरोप थे, वही अब शिक्षा कार्यालय की नब्ज थामे बैठा है।

-- रिश्तेदार भी जमे हैं अहम पदों पर

सूत्र बताते हैं कि जिन बीस फर्जी सहायक शिक्षकों पर मुकदमा दर्ज हुआ था, उनमें से कई के रिश्तेदार आज भी जिला शिक्षा कार्यालय में महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत हैं। यह पूरा नेटवर्क वर्षों से दफ्तर में जमे हुए हैं और फाइलों को दबाने या केस का रुख बदलने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। इन्हीं रिश्तेदारों और अंदरूनी पैठ के कारण यह पूरा मामला धीरे-धीरे दफन होता चला गया। लेकिन विक्रमादित्य उर्फ विक्रमा राय के वेतन विवाद ने इसे एक बार फिर सतह पर ला दिया है।

-- विक्रमादित्य प्रकरण ने जगाई उम्मीद

विक्रमादित्य मामले में जब वेतन भुगतान पर सवाल उठा, तो अधिकारियों को पुराने केस की याद आई। अब यह संभावना जताई जा रही है कि यदि इस प्रकरण की गहन जांच हुई तो शिक्षा विभाग के भीतर गहराई तक फैले फर्जीवाड़े का सच सामने आ सकता है। विभागीय सूत्रों का मानना है कि यह सिर्फ एक-दो लोगों का खेल नहीं, बल्कि एक संगठित गिरोह की तरह वर्षों से शिक्षा कार्यालय को अपनी गिरफ्त में लिए हुए है।

-- भ्रष्टाचार की परतें खुलने की आस

जिला शिक्षा कार्यालय से जुड़े इन मामलों ने यह साफ कर दिया है कि शिक्षा विभाग में न केवल फर्जी नियुक्तियां हुईं, बल्कि उन्हें संरक्षण भी मिला। आरोपितों पर कार्रवाई के बजाय उन्हें कार्यालय में संविदा पर काम करने का अवसर मिला। वहीं, उनके रिश्तेदारों ने विभाग में पैठ बनाकर जांच और कार्रवाई को कमजोर किया। अब सवाल यह है कि क्या विक्रमादित्य प्रकरण इस गहरी जड़ें जमा चुके भ्रष्टाचार की परतें पूरी तरह उधेड़ पाएगा या यह मामला भी धीरे-धीरे दफन कर दिया जाएगा और विभाग में भ्रष्टाचार का खेल यूं ही चलते रहेगा।

बयान

अभी तक मुझे इस मामले की जानकारी नहीं थी। मीडिया के माध्यम से जानकारी मिली है। मामले की जांच पूरी गंभीरता से कराई जाएगी। शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार को बढ़ावा नहीं दिया जाएगा। ऐसे फर्जी लोगों को संरक्षण देने वालों की भी जांच होगी तथा उनपर सख्त कार्रवाई की जाएगी। - संदीप रंजन, डीईओ, बक्सर