पूण्यतिथि विशेष:अनपढ़ होकर भी बनीं शिक्षा की अलख जगाने वाली ममतामयी मां

शाहाबाद की धरती ने कई ऐतिहासिक व्यक्तित्व दिए हैं, लेकिन दान, करुणा और शिक्षा के क्षेत्र में धरिक्षणा कुंअरि का नाम आज भी एक जीवंत प्रेरणा की तरह चमकता है। 19 दिसंबर की पुण्यतिथि की पूर्व संध्या पर ममतामयी मां धरिक्षणा कुंअरि को याद करना इसलिए जरूरी हो जाता है, क्योंकि उन्होंने खुद अनपढ़ होने के बावजूद पूरे क्षेत्र में शिक्षा की मशाल जलाई और समाज को दिशा दी।

पूण्यतिथि विशेष:अनपढ़ होकर भी बनीं शिक्षा की अलख जगाने वाली ममतामयी मां

-- धरिक्षणा कुंअरि, जिनके दान से रोशन हुआ शाहाबाद का भविष्य

 रजनीकांत दूबे/डुमरांव।

शाहाबाद की धरती ने कई ऐतिहासिक व्यक्तित्व दिए हैं, लेकिन दान, करुणा और शिक्षा के क्षेत्र में धरिक्षणा कुंअरि का नाम आज भी एक जीवंत प्रेरणा की तरह चमकता है। 19 दिसंबर की पुण्यतिथि की पूर्व संध्या पर ममतामयी मां धरिक्षणा कुंअरि को याद करना इसलिए जरूरी हो जाता है, क्योंकि उन्होंने खुद अनपढ़ होने के बावजूद पूरे क्षेत्र में शिक्षा की मशाल जलाई और समाज को दिशा दी।

-- दानवीरता, जिसने इतिहास रच दिया

धरिक्षणा कुंअरि को यूं ही ‘ममतामयी मां’ नहीं कहा जाता। उनकी दानशीलता की मिसालें पुराने शाहाबाद जिले, आज के बक्सर, भोजपुर, रोहतास और कैमूर से लेकर पटना और वाराणसी तक फैली हुई हैं। देशभक्ति उनके व्यक्तित्व का अभिन्न हिस्सा थी। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान जब महात्मा गांधी बक्सर आए, तो उन्होंने अपने हाथों से सोने के कंगन और आभूषण उतारकर आजादी की लड़ाई के लिए दान कर दिए।इतिहास गवाह है कि 1932 में गांधीजी उनके डुमरी स्थित आवास पर भी पहुंचे थे। उस समय एक विधवा महिला का इस तरह राष्ट्र के लिए अपना सर्वस्व अर्पित करना, समाज के लिए एक बड़ा संदेश था।

-- शिक्षा के लिए जीवन समर्पण

धरिक्षणा कुंअरि का सबसे बड़ा सपना था, समाज को शिक्षित देखना। वर्ष 1936 में उन्होंने बक्सर अनुमंडल मुख्यालय में एक मध्य विद्यालय की स्थापना कर शिक्षा के क्षेत्र में ऐतिहासिक कदम उठाया। इसके बाद 1956 में धरिक्षणा कुंवरि महाविद्यालय (डी.के. कॉलेज) की स्थापना कर उन्होंने उच्च शिक्षा का रास्ता भी खोला।इतना ही नहीं, अपनी ससुराल डुमरी गांव में डी.के. मेमोरियल कॉलेज, बक्सर में पति श्रीकृष्ण प्रसाद की स्मृति में विद्यालय, यात्रियों के लिए धर्मशाला, और भोजपुर के कोईलवर में टीबी सेनेटोरियम की स्थापना कर उन्होंने सेवा के नए आयाम गढ़े। आज वही सेनेटोरियम मानसिक आरोग्यशाला के रूप में समाज की सेवा कर रहा है।

-- बिहार से काशी तक सेवा की छाप

पटना की सब्जी मंडी के पास धर्मशाला हो या काशी हिंदू विश्वविद्यालय में छात्र कल्याण कोष, धरिक्षणा कुंअरि के दान आज भी सैकड़ों लोगों के जीवन को दिशा दे रहे हैं। इन संस्थानों से आज भी हर वर्ष समाज लाभान्वित हो रहा है।

-- दुखों से टूटी नहीं, और मजबूत बनीं

इटाढ़ी प्रखंड के लोहंदी गांव में जन्मी धरिक्षणा कुंअरि का जीवन संघर्षों से भरा रहा। विवाह के कुछ वर्षों बाद पति और फिर इकलौते पुत्र का निधन हो गया। बावजूद इसके, उन्होंने दुख को कभी अपने उद्देश्य के आड़े नहीं आने दिया। पुत्र के निधन के बाद भी उन्होंने कोईलवर में टीबी सेनेटोरियम की स्थापना कर समाज को नया जीवन दिया।

-- भूलती जा रही है नई पीढ़ी

वरिष्ठ नागरिकों और अधिवक्ताओं का कहना है कि धरिक्षणा कुंअरि ने इतिहास के पन्नों में अमिट स्थान बनाया है। उनके वंशज पवन कुमार साह का कहना है कि दुर्भाग्यवश सरकार और समाज उनकी स्मृतियों को संजो नहीं सका। परिणामस्वरूप, नई पीढ़ी इस महान व्यक्तित्व को धीरे-धीरे भूलती जा रही है।धरिक्षणा कुंअरि सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि त्याग, शिक्षा और सेवा की वह मशाल हैं, जिसकी रोशनी आज भी समाज को रास्ता दिखा रही है।