जांच के दौरान फर्स्ट आइडिया को भुगतान पर मचा बवाल, डीएम ने डीईओ से मांगा स्पष्ट प्रतिवेदन
बक्सर के शिक्षा विभाग में कथित माफियागिरी, भ्रष्टाचार तथा सरकारी धन के बंदरबाट तथा नावानगर, डुमरांव व इटाढ़ी प्रखंडो के लिए गलत तरीके से चयनित हाउस कीपिंग एजेंसी फर्स्ट आइडिया डिजीटल एप्लीकेशन प्राइवेट लिमिटेड का विवादों से पीछा छूटता नजर नहीं आ रहा है।

-- 31 जुलाई को किया गया है फर्स्ट आइडिया को 40 लाख रूपए से अधिक का भुगतान
-- डुमरांव विधायक ने डीएम को पत्र भेज जांच के दौरान फर्स्ट आइडिया को भुगतान पर उठाई है आपत्ति
केटी न्यूज/बक्सर
बक्सर के शिक्षा विभाग में कथित माफियागिरी, भ्रष्टाचार तथा सरकारी धन के बंदरबाट तथा नावानगर, डुमरांव व इटाढ़ी प्रखंडो के लिए गलत तरीके से चयनित हाउस कीपिंग एजेंसी फर्स्ट आइडिया डिजीटल एप्लीकेशन प्राइवेट लिमिटेड का विवादों से पीछा छूटता नजर नहीं आ रहा है।
अब इस मामले में डुमरांव विधायक डॉ. अजित कुमार सिंह द्वारा बक्सर डीएम को भेजे पत्र से बवाल मच गया है। इस पत्र के बाद डीएम डॉ. विद्यानंद सिंह ने बक्सर के जिला शिक्षा पदाधिकारी से जांच अवधि में हाउस कीपिंग एजेंसी फर्स्ट आइडिया को 31 जुलाई को किए गए 40 लाख, एक हजार 622 रूपए के भुगतान पर 24 घंटे में जबाव मांगा है। डीएम ने यह भी पूछा है कि जब फर्स्ट आइडिया के चयन पर अपर समाहर्ता ( विभागीय जांच ) गिरिजेश कुमार के नेतृत्व में जांच चल रहा था तो जांच अवधि में उक्त एजेंसी को भुगतान क्यो किया गया।
यहां बता दें कि डुमरांव विधायक ने अपने पत्र में आरोप लगाया है कि निजी हित में लाभ पहुंचाने के उदेश्य से ही जांच के दौरान उक्त एजेंसी को भुगतान किया गया है। जबकि अधिकारियों के जांच प्रतिवेदन में भी उक्त एजेंसी पर लगाए गए आरोपों की पुष्टि हो गई है। अपर समाहर्ता ( विभागीय जांच ) के नेतृत्व में गठित जांच टीम ने फर्स्ट आइडिया के चयन को दोषपूर्ण मान लिया है। ऐसे में जांच अवधि में उक्त एजेंसी को भुगतान करने से शिक्षा विभाग के अधिकारियों की मुश्किलें बढ़ गई है।
विभागीय सूत्रों का कहना है कि तथाकथित शिक्षा माफिया अजय सिंह व अरविंद सिंह के दबाव में ही स्थापना डीपीओ विष्णुकांत राय द्वारा जांच अवधि में उक्त एजेंसी को भुगतान किया गया है। इससे साफ हो रहा है कि मामले में सिर्फ हाउस कीपिंग एजेंसी ही नहीं बल्कि शिक्षा विभाग के अधिकारी भी घेरे में है।
डुमरांव विधायक के पत्र के बाद जिलाधिकारी द्वारा जिला शिक्षा पदाधिकारी से इस मामले में स्पष्ट प्रतिवेदन मांगने तथा अपर समाहर्ता ( विभागीय जांच ) की नेतृत्व वाली जांच समिति द्वारा अपने जांच में हाउस कीपिंग एजेंसी फर्स्ट आइडिया के चयन को दोषी मानने की यदि कड़ियो को जोड़कर देखा जाए तो इस मामले में जांच अवधि में भुगतान के जिम्मेवार शिक्षा विभाग के अधिकारियों पर गाज गिरनी तय है।
लेकिन, बड़ा सवाल अब यह हो गया है कि क्या जांच में दोषपूर्ण चयन सिद्ध होने के बाद फर्स्ट आइडिया का चयन रद्द होगा तथा उसे भुगतान की गई राशि की रिकवरी ली जाएगी। वहीं, अब शिक्षा विभाग से जुड़े लोगों में जिलाधिकारी के कार्रवाई के प्रति दिलचस्पी बढ़ गई है कि जिलाधिकारी क्या कार्रवाई करते है तथा इसकी गाज सिर्फ हाउस कीपिंग एजेंसी तक ही सीमित रहेगी या फिर हाउस कीपिंग एजेंसी फर्स्ट आइडिया के चयन तथा जांच अवधि में अवैध तरीके से भुगतान के जिम्मेवार शिक्षा विभाग के अधिकारियों पर कार्रवाई होगी या फिर यह मामला भी धीरे-धीरे ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा।
बता दें कि अक्सर विवादों व अनियमितताओं के कारण सुर्खियों में रहने वाले बक्सर के शिक्षा विभाग में यह पहला मौका है जब जांच के दौरान ही दोषी एजेंसी को 40 लाख रूपए से अधिक का भुगतान कर दिया गया है। यह भुगतान इस बात का प्रमाण बन गया है कि शिक्षा विभाग में तथाकथित माफियाओं का वर्चस्व किस कदर हावी है तथा विभागीय अधिकारी तथाकथित माफियाओं के शिकंजे में इस कदर जकड़ चुके है कि नियमों व प्रशासनिक अधिकारियों तक की परवाह नहीं करते है।
गौरतलब हो कि इसके पूर्व तथाकथित माफिया अजय सिंह की पत्नी के निलंबन टूटते ही उनके समस्त बकाए के भुगतान में भी स्थापना डीपीओ ने दिलेरी दिखाई थी। ये वही स्थापना डीपीओ है जो नियम विरूद्ध एक करोड़ से अधिक रूपए की राशि संवेदकों के बदले अपने सरकारी खाते में पार्क कर लिए। ऐसे में इनके द्वारा जांच अवधि में भुगतान से विभागीय जानकार आश्चर्य नहीं जता रहे है, लेकिन निगाहे जिलाधिकारी के कार्रवाई पर जरूर टिकी है क्यांेकि पहली बार उन्होंने शिक्षा विभाग को छोड़ प्रशासनिक अधिकारियों के जांच की परवाह किए बिना दोषी एजेंसी को भुगतान कर दिया है।