इइस गांव में आज भी नही मूलभूत सुविधाएं,महिलाओं को प्रसव के दौरान खटिया पर टांगकर कर सड़क पर लेकर जाया जाता है,इस कदर बदतर है हालात

इस गांव के आदिवासी लोगों को आज़ादी के बाद से एक अरसे से पक्की सड़क और मूलभूत सुविधाएं भी मुकम्मल नहीं है।

इइस गांव में आज भी नही मूलभूत सुविधाएं,महिलाओं को प्रसव के दौरान खटिया पर टांगकर कर सड़क पर लेकर जाया जाता है,इस कदर बदतर है हालात
Village

केटी न्यूज़/भागलपुर

देश आज 21वीं सदी में जी रहा है।विकास ने भारत की तस्वीर बदल दी है।21वीं सदी के बावजूद अभी भी कई गांव और कस्बे ऐसे है जिन्होंने विकास देखा ही नही।उनकी ज़िंदगी वही पुरानी ढैय्या पर चल रही है।ऐसा ही एक गांव है भागलपुर में,भागलपुर जिले के सीमावर्ती इलाके में रह रहे 'वीर शहीद तिलकामांझी' के क्षेत्र के आदिवासी लोगों को आज़ादी के बाद से एक अरसे से पक्की सड़क और मूलभूत सुविधाएं भी मुकम्मल नहीं है।

भारत सरकार ने जिस समाज को संविधान की पांचवी अनुसूची में "अनुसूचित जनजाति" के रूप में मान्यता दी है। आदिवासी समाज जिसे हिंदुस्तान का मूलनिवासी भी बताया जाता है। देश की प्रथम नागरिक राष्ट्रपति आदिवासी समाज से हैं, लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि यहां के लोगों को एक दशक से पगडंडियों के सहारे जिंदगी गुजर रही है।ज़फ़रा गांव के लोगों को एक पक्की सड़क तक की सुविधा नहीं मिल सकी है लिहाजा आवागमन का एक मात्र जरिया खेत की पगडंडी ही है। वो पगडंडी जिसपर चलना मुश्किल है। यदि कोई बीमार हो गया या महिलाओं को प्रसव के दौरान खटिया पर टांगकर सड़क तक ले जाना पड़ता है।

सैकड़ों की आबादी बदतर हाल में हैं लेकिन इनका हाल जानने वाला कोई नहीं है। ग्रामीणों ने अपना तकलीफों को बयां किया है। ग्रामीण महिलाओं ने बताया कि शादी से पहले सोचा भी नहीं था कि ऐसी सड़क होगी मायके में सड़क अच्छी थी। जो पैसा पानी की टंकी और नाल लगाने के लिए मिला वह मुखिया ने खा लिया। हम लोगों को गांव तक आने और यहां से मुख्य सड़क तक जाने में पगडंडियों का सहारा लेना पड़ता है। आजादी के बाद से आज तक हम लोगों को सरकार से कोई लाभ नहीं मिला।

भागलपुर मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर कहलगांव अंतर्गत जफरा में मुख्य सड़क से गांव की दूरी डेढ़ से दो किलोमीटर है।उस 2 किलोमीटर की  दूरी तय कर गांव तक पहुंचने या गांव से मुख्य सड़क तक जाने में काफी परेशानियां का सामना करना पड़ता है।इतना ही नहीं सीएम नीतीश द्वारा चलाई गई सात निश्चय योजना के तहत नल जल योजना का लाभ भी लोगों को ठीक तरीके से नहीं मिल सका है। पानी टंकी लगाने के लिए दो साल पहले स्ट्रक्चर बनाया गया था, लेकिन वो हाथी के दांत के तरह दिखावटी रह गया।