दो दशक से लंबित प्रोन्नति पर न्यायिक कर्मियों का फूटा गुस्सा, अब आर-पार की तैयारी

राज्य की अधीनस्थ अदालतों के न्यायिक कर्मचारियों में प्रोन्नति, वेतनमान और पदनाम परिवर्तन जैसे मूल अधिकारों को लेकर गहरा आक्रोश फैल गया है। सर्वाेच्च न्यायालय के निर्देश और राज्य सरकार की वर्ष 2008 की अधिसूचना के बावजूद पिछले दो दशकों से न्यायिक कर्मियों की सेवा-संबंधी फाइलें ठंडे बस्ते में पड़ी हैं। इससे कर्मचारियों में हताशा, असंतोष और धोखे का भाव तेजी से बढ़ रहा है।

दो दशक से लंबित प्रोन्नति पर न्यायिक कर्मियों का फूटा गुस्सा, अब आर-पार की तैयारी

-- सुप्रीम कोर्ट के आदेश व सरकारी अधिसूचनाएं धरी रह गईं, 26 दिसंबर को पटना में महा-सभा, बड़े आंदोलन के संकेत

केटी न्यूज/बक्सर

राज्य की अधीनस्थ अदालतों के न्यायिक कर्मचारियों में प्रोन्नति, वेतनमान और पदनाम परिवर्तन जैसे मूल अधिकारों को लेकर गहरा आक्रोश फैल गया है। सर्वाेच्च न्यायालय के निर्देश और राज्य सरकार की वर्ष 2008 की अधिसूचना के बावजूद पिछले दो दशकों से न्यायिक कर्मियों की सेवा-संबंधी फाइलें ठंडे बस्ते में पड़ी हैं। इससे कर्मचारियों में हताशा, असंतोष और धोखे का भाव तेजी से बढ़ रहा है।इस मुद्दे पर बिहार राज्य व्यवहार न्यायालय कर्मचारी संघ की राज्य स्तरीय आभासी बैठक में पदाधिकारियों और जिला इकाइयों ने एकमत होकर कहा कि पटना उच्च न्यायालय ने जनवरी 2025 में हुए आंदोलन के दौरान एक महीने के भीतर प्रोन्नति व वेतन विसंगति पर निर्णय लेने का आश्वासन दिया था, लेकिन पूरा साल बीतने के बाद भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।

संघ के अध्यक्ष राजेश्वर तिवारी ने कहा कि बिहार सरकार के लगभग सभी विभागों के कर्मचारियों को समय पर प्रोन्नति मिल चुकी है, लेकिन न्यायालय कर्मचारी आज भी मूल वर्ग के पद पर सेवा करते-करते सेवानिवृत्ति तक पहुंच जा रहे हैं। यह न्याय नहीं, अन्याय है।पदाधिकारियों का यह भी आरोप है कि जब अन्य विभागों में प्रोन्नति रोकने पर अधिकारी तक दंडित कर दिए जाते हैं, वहीं अधीनस्थ न्यायालयों के कर्मचारियों का मामला वर्षों से अंधकार में पड़ा है। हड़ताल के दौरान बनाई गई कमेटी भी कागजी साबित हुई। न तो वेतन विसंगति दूर हुई, न पदोन्नति, न ही अनुकंपा नियुक्ति और न ही लंबित पदनाम परिवर्तन पर कोई निर्णय आया।

बैठक में कई सदस्यों ने कटाक्ष किया कि हम न्यायालय कर्मचारी उच्च न्यायालय और राज्य सरकार के दो पाटों में पिस रहे हैं। राज्य सरकार का कहना है कि मामला हाई कोर्ट के विवेकाधिकार में है, जबकि हाई कोर्ट का मत है कि निर्णय सरकार ले। इस पर कर्मचारियों ने कहा कि यह ’जिम्मेदारी टालो’ खेल उनके भविष्य पर सीधा प्रहार है।कुछ पदाधिकारियों ने आक्रोश व्यक्त करते हुए यहां तक कहा कि यदि मांगों पर सुनवाई नहीं हो रही है, तो अवकाश वाले दिनों में रिमांड कार्य रोकने जैसे कठोर कदमों पर भी विचार किया जाना चाहिए, ताकि सरकार के लॉ एंड ऑर्डर पर सीधा प्रभाव पड़े।

हालांकि इस पर अंतिम निर्णय 26 दिसंबर को पटना में होने वाली आमसभा में लिया जाएगा, जहां राज्यभर के न्यायालय कर्मचारी जुटेंगे।बैठक में यह भी निर्णय हुआ कि दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई और सुप्रीम कोर्ट के आदेश (2009 से लंबित) की अवमानना के मुद्दे पर माननीय सर्वाेच्च न्यायालय से पुनः संज्ञान लेने की प्रार्थना की जाएगी। न्यायिक कर्मचारियों का कहना है कि अब धैर्य की सीमा समाप्त हो चुकी है और यदि इस बार भी ठोस समाधान नहीं मिला, तो आंदोलन का स्वरूप और व्यापक तथा तीखा होगा।