केसठ के ईंट भट्टों में छाई रौनक, मजदूरों के हाथों में लौटी रौनक, ईंट निर्माण में बढ़ी रफ्तार
ठंड के आगमन के साथ ही केसठ प्रखंड के विभिन्न इलाकों में स्थित ईंट भट्टों में फिर से रौनक लौट आई है। इन दिनों सुबह की हल्की धूप और शाम की गुलाबी ठंडक के बीच मजदूरों के हाथों में तेजी आ गई है। एक बार फिर ईंट निर्माण का सिलसिला शुरू हो गया है और भट्टों पर काम की रफ्तार बढ़ने लगी है। खेतों से निकल चुकी फसल के बाद अब ग्रामीण मजदूरों का रुख रोजी रोटी के लिए ईंट भट्टों की ओर हो गया है। कुलमनपुर, बैजनाथपुर, रामपुर और आसपास के इलाकों में दर्जनों छोटे-बड़े भट्टों पर काम जोरों पर है। सुबह होते ही मजदूरों की टोली मिट्टी गूंथने, सांचा भरने और कच्ची ईंटों को धूप में सुखाने में लग जाती है। महिलाएं और पुरुष दोनों मिलकर मेहनत की मिसाल पेश कर रहे हैं। बच्चे भी छोटे मोटे कामों में हाथ बंटाते नजर आ रहे हैं।

पीके बादल/केसठ
ठंड के आगमन के साथ ही केसठ प्रखंड के विभिन्न इलाकों में स्थित ईंट भट्टों में फिर से रौनक लौट आई है। इन दिनों सुबह की हल्की धूप और शाम की गुलाबी ठंडक के बीच मजदूरों के हाथों में तेजी आ गई है। एक बार फिर ईंट निर्माण का सिलसिला शुरू हो गया है और भट्टों पर काम की रफ्तार बढ़ने लगी है। खेतों से निकल चुकी फसल के बाद अब ग्रामीण मजदूरों का रुख रोजी रोटी के लिए ईंट भट्टों की ओर हो गया है। कुलमनपुर, बैजनाथपुर, रामपुर और आसपास के इलाकों में दर्जनों छोटे-बड़े भट्टों पर काम जोरों पर है। सुबह होते ही मजदूरों की टोली मिट्टी गूंथने, सांचा भरने और कच्ची ईंटों को धूप में सुखाने में लग जाती है। महिलाएं और पुरुष दोनों मिलकर मेहनत की मिसाल पेश कर रहे हैं। बच्चे भी छोटे मोटे कामों में हाथ बंटाते नजर आ रहे हैं।
ईंट भट्टा संचालको ने बताया कि इस बार मौसम समय पर बदलने से ईंट निर्माण कार्य सुचारू रूप से शुरू हो गया है। पिछले साल बारिश और मिट्टी की कमी के कारण काफी दिक्कतें आई थीं, लेकिन इस बार उम्मीद है कि बेहतर रहेगा। उन्होंने कहा कि स्थानीय मजदूरों को प्राथमिकता दी जा रही है ताकि गांव के लोगों को रोजगार मिल सके।

वहीं मजदूरों का कहना है कि ईंट भट्टे उनके लिए सर्दी के दिनों में आजीविका का मुख्य जरिया बन जाते हैं। मजदूरो ने बताया कि दिनभर की मेहनत के बाद जब ईंटों की कतारें भट्ठे में तैयार होती हैं, तो दिल को सुकून मिलता है। हालांकि बढ़ती महंगाई और मजदूरी दर में मामूली वृद्धि अब भी चिंता का विषय है।ग्रामीण अर्थव्यवस्था में इन भट्टों की अहम भूमिका है। कृषि कार्य समाप्त होने के बाद यही भट्टे सैकड़ों परिवारों के जीवन का सहारा बन जाते हैं। दिनभर के परिश्रम के बीच मिट्टी से सोना गढ़ने की यह परंपरा केसठ के गांवों में वर्षों से चली आ रही है।ईंट भट्टों पर जलती भट्ठियों की लाल आंच और मेहनतकश मजदूरों के पसीने से अब एक बार फिर गांव में जीवन की चहल पहल लौट आई है। ठंडी हवा और धुएं के बीच मेहनत की यह गर्माहट केसठ की मिट्टी में रची बसी जीवंत कहानी सुना रही हैं।
