प्रखंड के एक ऐसा गांव जहां अब भी ज़िंदा है प्राचीन सभ्यता
आधुनिकता की तेज़ रफ्तार के बीच जहां गांवों में परंपरागत जीवनशैली तेजी से विलुप्त होती जा रही है, वहीं केसठ प्रखंड का रामपुर गांव आज भी अपनी प्राचीन संस्कृति और विरासत को संजोए हुए है। इस गांव में 60 वर्षीय पदमावती देवी आज भी परंपरागत ढेका का उपयोग कर धान कुटाई, चूड़ा कुटाई, तीसी कुटाई समेत कई घरेलू कार्य करती हैं। यह दृश्य किसी जीवंत संग्रहालय, किसी लोक संस्कृति के जीवित उदाहरण जैसा प्रतीत होता है।
-- रामपुर की पदमावती देवी ढेका पर कुटती हैं धान, चूड़ा और तीसी की भी करती है कुटाई
पीके बादल/केसठ
आधुनिकता की तेज़ रफ्तार के बीच जहां गांवों में परंपरागत जीवनशैली तेजी से विलुप्त होती जा रही है, वहीं केसठ प्रखंड का रामपुर गांव आज भी अपनी प्राचीन संस्कृति और विरासत को संजोए हुए है। इस गांव में 60 वर्षीय पदमावती देवी आज भी परंपरागत ढेका का उपयोग कर धान कुटाई, चूड़ा कुटाई, तीसी कुटाई समेत कई घरेलू कार्य करती हैं। यह दृश्य किसी जीवंत संग्रहालय, किसी लोक संस्कृति के जीवित उदाहरण जैसा प्रतीत होता है।

पदमावती देवी बताती हैं कि जब वह इस घर में ब्याह कर आई थीं, तभी से उन्होंने ढेका का उपयोग होते देखा है। उनके अनुसार, यह ढेका लगभग 150 वर्षों से उनके परिवार की विरासत का हिस्सा रहा है। वह गर्व के साथ कहती हैं, मुझे खुशी है कि मैं अपने पूर्वजों के संस्कार और परंपरा को आज भी संभाल कर रखी हूं। समय बदल गया, साधन बदल गए, लेकिन ढेका की आवाज़ आज भी हमारे आंगन में गूंजती है।
गांव की बुजुर्ग महिलाओं के लिए भी पदमावती देवी का आंगन किसी सांस्कृतिक केंद्र से कम नहीं है। आस पास की पड़ोस की महिलाएं अक्सर उनके घर आती हैं और ढेका का उपयोग करती हैं। लीलावती देवी, जो गांव की बुजुर्ग महिलाओं में से एक हैं, बताती हैं, हमारे क्षेत्र में अब ढेका कहीं नहीं बचा है। केवल पदमावती देवी के घर ही यह विरासत जिंदा है। यह सिर्फ एक लकड़ी का औजार नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति की पहचान है।

ढेका, जो प्राचीन समय से धान, दाल, तीसी, और चूड़ा कुटाई का प्रमुख साधन रहा है, आज मशीनों और मिक्सर ग्राइंडरों के दौर में पूरी तरह से गायब होता जा रहा है। गांव के वरिष्ठ लोग बताते हैं कि शुरुआती समय में हर घर के आंगन में ढेका हुआ करता था। महिलाएं सामूहिक रूप से बैठकर कुटाई करती थीं, जिससे आपसी मेल-जोल, सामुदायिकता और परंपरा कायम रहती थी। लेकिन बदलते समय में यह धरोहर घरों से गायब होती चली गई। आज यह केवल कुछ ही परिवारों में देखने को मिलता है।
पदमावती देवी के पुत्र सोनू तिवारी, जो प्रखंड में युवा किसान और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में जाने जाते हैं, कहते हैं, आज दुनिया आधुनिक संसाधनों की ओर बढ़ चुकी है, लेकिन मेरी मां ने जिस तरह इस परंपरा को संभाला है, वह प्रेरणादायक है। मेरा भी पूरा प्रयास रहेगा कि इस ढेका को आगे की पीढ़ियों तक सुरक्षित रख सकूं।

सोनू तिवारी बताते हैं कि कई लोग उनके घर आकर ढेका देखकर आश्चर्य करते हैं। कुछ तो इसे पहली बार देखते हैं और इसके उपयोग के तरीके जानने के लिए उत्सुक रहते हैं। उनका कहना है कि यदि इस तरह की प्राचीन घरेलू तकनीकें संरक्षित की जाएं, तो यह आने वाली पीढ़ियों को अपनी संस्कृति से जोड़ने का काम कर सकती हैं।
गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि ढेका केवल एक औजार नहीं है यह समय की वह आवाज है, जिसमें परंपरा, मेहनत, संस्कृति और ग्रामीण जीवन का संगीत मिला हुआ है। आज जब ग्रामीण परिवेश तेजी से बदल रहा है, ऐसे में रामपुर गांव की यह धरोहर समाज के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश देती है कि आधुनिकता अपनाते हुए भी सांस्कृतिक जड़ों को बचाकर रखा जा सकता है। पदमावती देवी और उनके घर का यह ढेका आज भी इस इलाके में प्राचीन सभ्यता की सांसें संजोए हुए है एक ऐसी विरासत जिसे देखकर गांव वाले गर्व महसूस करते हैं।
