समाजसेवी को पितृशोक, लोगों ने जताया शोक

पीड़ियां गांव में उस वक्त शोक और संवेदना का माहौल व्याप्त हो गया, जब क्षेत्र के जाने-माने युवा समाजसेवी शशि भूषण ओझा और मुकेश ओझा के पिता रामाशंकर ओझा उर्फ खखनु ओझा का आकस्मिक निधन हो गया। उनके निधन की खबर मिलते ही गांव सहित आसपास के इलाकों में शोक की लहर दौड़ गई। रमाशंकर ओझा अपने सरल स्वभाव, मिलनसार व्यक्तित्व और सामाजिक सरोकारों के लिए जाने जाते थे।

समाजसेवी को पितृशोक, लोगों ने जताया शोक

केटी न्यूज/डुमरांव

पीड़ियां गांव में उस वक्त शोक और संवेदना का माहौल व्याप्त हो गया, जब क्षेत्र के जाने-माने युवा समाजसेवी शशि भूषण ओझा और मुकेश ओझा के पिता रामाशंकर ओझा उर्फ खखनु ओझा का आकस्मिक निधन हो गया। उनके निधन की खबर मिलते ही गांव सहित आसपास के इलाकों में शोक की लहर दौड़ गई। रमाशंकर ओझा अपने सरल स्वभाव, मिलनसार व्यक्तित्व और सामाजिक सरोकारों के लिए जाने जाते थे।प्राप्त जानकारी के अनुसार बीते कुछ दिनों से उनकी तबीयत लगातार खराब चल रही थी। प्रारंभिक इलाज डुमरांव में कराया गया, लेकिन स्वास्थ्य में सुधार नहीं होने पर उन्हें वाराणसी स्थित बीएचयू अस्पताल रेफर किया गया।

वहां इलाज के दौरान उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन से परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है, वहीं क्षेत्र ने एक ऐसे व्यक्ति को खो दिया है, जो हमेशा लोगों के सुख-दुख में साथ खड़े रहते थे।दुखद समाचार के बाद समाजसेवी शशि भूषण ओझा के आवास पर शोक व्यक्त करने वालों का तांता लग गया। वरिष्ठ समाजसेवियों, जनप्रतिनिधियों और स्थानीय लोगों ने पहुंचकर परिजनों को ढांढस बंधाया और दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की। इस अवसर पर रवि सिन्हा, मुखिया सिंह कुशवाहा, संजय यादव, मधुसूदन पाठक, हरख तिवारी, करिया पांडेय, पवन शुक्ला, मंटू तिवारी, सचिन कश्यप, मंटू सिंह, भोला पाठक, बिट्टू ओझा, भरत तिवारी, रामकुमार उपाध्याय सहित अनेक गणमान्य लोग उपस्थित रहे।

गौरतलब है कि शशि भूषण ओझा अपने पिता से मिली सामाजिक सेवा की प्रेरणा को आगे बढ़ाते हुए वर्षों से जनसेवा में सक्रिय हैं। छपरा मस्तीचक अस्पताल से जुड़कर उन्होंने अब तक सैकड़ों जरूरतमंद लोगों की आंखों का मुफ्त ऑपरेशन करवाया है और चश्मा भी उपलब्ध कराया है। हर महीने शिविर लगाकर वे लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं दिलाने का प्रयास कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि रमाशंकर ओझा भले ही आज हमारे बीच नहीं रहे, लेकिन उनके संस्कार और सेवा की भावना उनके पुत्र के माध्यम से समाज में जीवित रहेंगी।