जांच के बीच 40 लाख का भुगतान: हाउसकीपिंग एजेंसी ‘फर्स्ट आइडिया’ पर बक्सर में फिर घिरा शिक्षा विभाग
जिले के सरकारी विद्यालयों में हाउसकीपिंग कार्य के नाम पर करोड़ों के खेल की परतें एक बार फिर खुलती नजर आ रही हैं। जांच प्रक्रियाधीन रहने के बावजूद चयनित एजेंसी फर्स्ट आइडिया को लगभग 40 लाख रुपये का भुगतान किए जाने का मामला अब जिला प्रशासन के रडार पर आ गया है। इस पूरे प्रकरण में शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली और तत्कालीन स्थापना डीपीओ विष्णुकांत राय की भूमिका को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
-- डीएम के निर्देश पर शिक्षा विभाग से मांगा गया जवाब, स्थापना डीपीओ की भूमिका पर उठे गंभीर सवाल
केटी न्यूज/बक्सर।
जिले के सरकारी विद्यालयों में हाउसकीपिंग कार्य के नाम पर करोड़ों के खेल की परतें एक बार फिर खुलती नजर आ रही हैं। जांच प्रक्रियाधीन रहने के बावजूद चयनित एजेंसी फर्स्ट आइडिया को लगभग 40 लाख रुपये का भुगतान किए जाने का मामला अब जिला प्रशासन के रडार पर आ गया है। इस पूरे प्रकरण में शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली और तत्कालीन स्थापना डीपीओ विष्णुकांत राय की भूमिका को लेकर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।

-- पूर्व विधायक की शिकायत से गरमाया मामला
पूरा विवाद तब गहराया जब डुमरांव विधानसभा के पूर्व विधायक डॉ. अजीत कुमार सिंह ने जिलाधिकारी को पत्र लिखकर नावानगर, डुमरांव और इटाढ़ी प्रखंड के सरकारी विद्यालयों में हाउसकीपिंग एजेंसी के चयन और भुगतान में भारी अनियमितता का आरोप लगाया था। पूर्व विधायक ने साफ तौर पर यह आरोप लगाया कि एजेंसी को निजी हित में लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से, जांच के दौरान ही भुगतान कर दिया गया है।
-- प्रशासन ने मांगा तीन बिंदुओं पर जवाब
इसी कड़ी में वरीय उप समाहर्ता सह प्रभारी पदाधिकारी, जिला विकास शाखा, बक्सर गौरव सिंह (बीएएस) ने जिला शिक्षा पदाधिकारी को कड़ा पत्र जारी करते हुए भुगतान से जुड़े अहम सवालों पर स्पष्ट और तथ्यात्मक जवाब मांगा है। पत्र में पूछा गया है कि क्या भुगतान से पहले सभी विद्यालयों से संतोषजनक सेवा संचालन प्रमाण पत्र लिया गया था। जब एजेंसी चयन की जांच चल रही थी, तब भुगतान करने की क्या विधिक बाध्यता थी तथा क्या हाउसकीपिंग एजेंसियों के चयन को लेकर जिलाधिकारी का अनुमोदन लिया गया था या नहीं।

-- जांच के दौरान ‘पहले भुगतान’ पर बवाल
सबसे अहम और चौंकाने वाला तथ्य यह है कि जांच की आंच तेज होने के बावजूद सबसे पहले फर्स्ट आइडिया एजेंसी को भुगतान कर दिया गया था। सूत्रों के मुताबिक, यह भुगतान तत्कालीन स्थापना डीपीओ विष्णुकांत राय के अंतरराश (अंतरिम व्यवस्था) के माध्यम से किया गया था। उस वक्त ही यह सवाल उठा था कि क्या स्थापना डीपीओ पर कथित शिक्षा माफिया अजय सिंह और अरविंद सिंह का दबाव था, जिसके चलते जिस एजेंसी के अवैध तरीके से चयन की जांच चल रही हो उसे जानबूझकर लाभ पहुंचाया गया।
-- तब कार्रवाई नहीं, अब जवाबदेही तय होगी
हैरानी की बात यह है कि उस समय शिक्षा विभाग के किसी भी अधिकारी द्वारा स्थापना डीपीओ या संबंधित अफसरों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। लेकिन अब, जब फर्स्ट आइडिया एजेंसी का चयन ही रद्द कर दिया गया है और भुगतान को लेकर जिला प्रशासन ने औपचारिक रूप से शिक्षा विभाग से जवाब तलब किया है, तो एक बार फिर पुराना मामला सुर्खियों में आ गया है।

-- अब निगाहें कार्रवाई पर
प्रशासनिक गलियारों में चर्चा है कि यह मामला सिर्फ प्रक्रिया की चूक नहीं, बल्कि सोची-समझी साटगांठ का भी हो सकता है। ऐसे में यह देखना बेहद दिलचस्प होगा कि क्या जांच के दौरान गलत तरीके से भुगतान करने वाले तत्कालीन स्थापना डीपीओ विष्णुकांत राय के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई होती है या फिर यह मामला भी फाइलों में दबकर रह जाएगा।फिलहाल, जिला प्रशासन के सख्त रुख के बाद शिक्षा विभाग की मुश्किलें बढ़ती दिख रही हैं। दिशा की बैठक से पहले मांगे गए जवाब इस पूरे प्रकरण की दिशा तय करेंगे और यह भी कि शिक्षा व्यवस्था में व्याप्त कथित माफिया तंत्र पर कोई वास्तविक चोट होगी या नहीं।
