पुत्र के दीर्घायु के लिए माताओं ने रखा जिउतिया व्रत, गंगा स्नान को उमड़ी व्रती महिलाओं की भीड़
पुत्र के दीर्घायु के लिए माताओं ने रखा जिउतिया व्रत, गंगा स्नान को उमड़ी व्रती महिलाओं की भीड़
- व्रती महिलाओं को देखते हुए भीड़ नियंत्रण के लिए जगह जगह तैनात थी पुलिस
केटी न्यूज/बक्सर
जिउतिया पर्व को लेकर शनिवार को नगर के प्रमुख रामरेखा घाट के अलावा विभिन्न घाटों पर व्रती महिलाओं की भीड़ उमड़ पड़ी। घाट पर स्नान, दान करने के साथ ही बेटे की दीर्घायु के लिए माताओं ने विशेष पूजा अर्चना भी किया। गंगा स्नान के बाद रामरेखा घाट पर जगह-जगह बैठे पंडितों द्वारा माताओं को व्रत की कथा सुनाई गई। महिलाओं की भारी भीड़ को देखते हुए प्रशासन द्वारा घाट के अलावा विभिन्न चौक-चौराहों पर दंडाधिकारी के नेतृत्व में पुलिस के जवान तैनात रहे। बावजूद पूरे दिन जाम की स्थिति बनी रही। दोपहर 12 बजे के बाद महिला व्रतियों की भीड़ गंगा घाटों पर जुटनी शुरू हो गई थी। विभिन्न साधनों से व्रती महिलाएं गंगा
स्नान के लिए पहुंची। जाम को देखते हुए व्रती महिलाओं के वाहनों को किला मैदान में ही खड़ा कर दिया गया। वहां से पैदल ही महिला गंगा घाट तक पहुंची। इसके अलावा बक्सर के नाथ बाबा घाट, बंगला घाट, सती घाट आदि जगहों पर महिलाओं की भीड़ को बांटा गया। हालांकि प्रशासन की ओर से वीर कुंवर सिंह चौक, ज्योति प्रकाश चौक, अम्बेडकर चौक, किला के पास समेत अन्य स्थानों पर पुलिस की तैनाती की गई थी। यह पूजा-अर्चना का क्रम देर शाम तक चलता रहेगा।
व्रती महिलाएं रविवार को प्रसाद खाकर व्रत का पारण करेंगी। पंडित लाला बाबा ने बताया कि इस व्रत में महिलाएं निर्जला उपवास रहकर पुत्र की प्राप्ति या उसकी दीर्घायु की कामना करती हैं। जीवित पुत्रिका व्रत बहुत कठिन व्रत माना जाता है। यह व्रत 24 घंटे से भी ज्यादा समय तक रखा जाता है, इस दौरान पानी तक ग्रहण नहीं किया जाता है। मान्यता है कि यह परंपरात महाभारत काल से चली आ रही है।
मंदिरों में भी आयोजित हुआ कथा3
गंगा तट के अलावे बक्सर व डुमरांव के साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों के विभिन्न मंदिरों में भी जिउतिया कथा का आयोजन किया गया था। जहां व्रती महिलाओं ने विधि पूर्वक पूजा अर्चना कर कथामृत का श्रवण किया। इस दौरान व्रती महिलाओं द्वारा अपने सामर्थ्य के अनुसार दान पूण्य भी किया गया। बता दें कि इस बार जिले में दो दिन तक जीउतिया का त्योहार मनाया गया। कुछ व्रती शुक्रवार को ही व्रत की थी जबकि अधिकांश ने शनिवार को व्रत रखा हैं। मंदिरों के अलावे व्रती महिलाएं अपने घरों में जीउतियां की कथा सुनते देखी गई। इसके पहले पूर्व संध्या पर घरों में कई तरह के पकवान बनाए गए थे।