पंचकोशी परिक्रमा का दूसरा पड़ाव नदांव श्रद्धा, भक्ति और अनुशासन का अद्भुत संगम

विश्व प्रसिद्ध पंचकोशी परिक्रमा मेला का दूसरा दिन सोमवार को पूरी तरह श्रद्धा और भक्ति के रंग में डूबा रहा। भगवान श्रीराम की तपोभूमि बक्सर की यह दिव्य यात्रा जब दूसरे पड़ाव नदांव (नारद आश्रम) पहुंची, तो वहां का वातावरण “हर-हर महादेव” और “जय श्रीराम” के गगनभेदी नारों से गुंजायमान हो उठा। हजारों श्रद्धालु नारद सरोवर में स्नान कर नर्वदेश्वर महादेव की आराधना में लीन नजर आए।

पंचकोशी परिक्रमा का दूसरा पड़ाव नदांव श्रद्धा, भक्ति और अनुशासन का अद्भुत संगम

-- नारद सरोवर में आस्था की डुबकी, हर-हर महादेव के जयघोष से गुंजा नदांव आश्रम

केटी न्यूज/बक्सर

विश्व प्रसिद्ध पंचकोशी परिक्रमा मेला का दूसरा दिन सोमवार को पूरी तरह श्रद्धा और भक्ति के रंग में डूबा रहा। भगवान श्रीराम की तपोभूमि बक्सर की यह दिव्य यात्रा जब दूसरे पड़ाव नदांव (नारद आश्रम) पहुंची, तो वहां का वातावरण “हर-हर महादेव” और “जय श्रीराम” के गगनभेदी नारों से गुंजायमान हो उठा। हजारों श्रद्धालु नारद सरोवर में स्नान कर नर्वदेश्वर महादेव की आराधना में लीन नजर आए।

-- नारद सरोवर में श्रद्धालुओं की आस्था का सैलाब

सुबह से ही श्रद्धालुओं के जत्थे अहिरौली से नदांव पहुंचने लगे। रास्ते भर भजन, कीर्तन और “राम नाम जयकारे” की स्वर लहरियां वातावरण को भक्तिमय करती रहीं। नदांव पहुंचने के बाद श्रद्धालुओं ने नारद सरोवर में डुबकी लगाई, जिसे मोक्षदायी स्नान माना जाता है। सरोवर के तट पर भगवान शिव के नर्वदेश्वर रूप की पूजा-अर्चना की गई और भक्तों ने खिचड़ी का प्रसाद ग्रहण कर दिव्य संतोष का अनुभव किया।

समिति के अध्यक्ष एवं बसांव पीठाधीश्वर अच्युत प्रपन्नाचार्य जी महाराज ने बताया कि त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने महर्षि विश्वामित्र का यज्ञ पूर्ण होने के बाद पांच महर्षियों का दर्शन करने का संकल्प लिया था। उसी परंपरा में भगवान श्रीराम दूसरे दिन नारद मुनि के आश्रम, नदांव आए थे। यहां उन्होंने स्नान कर भगवान नर्वदेश्वर महादेव की आराधना की और खिचड़ी का प्रसाद ग्रहण किया था। आज भी वही परंपरा अटूट रूप से चली आ रही है।

-- भक्ति के साथ अनुशासन की मिसाल

नारद सरोवर के चारों ओर सोमवार को अद्भुत दृश्य देखने को मिला। एक ओर साधु-संतों का प्रवचन, दूसरी ओर श्रद्धालुओं के बीच भक्ति की लहरें। हर ओर दीपों की रोशनी और भजनों की गूंज से वातावरण अलौकिक हो उठा। सैकड़ों श्रद्धालुओं ने नारद सरोवर की परिक्रमा की, जिसका नेतृत्व स्वयं अच्युत प्रपन्नाचार्य जी महाराज ने किया।

परिक्रमा समिति की ओर से श्रद्धालुओं के लिए भोजन, जल, ठहरने और सुरक्षा की उत्कृष्ट व्यवस्था की गई थी। हजारों श्रद्धालुओं ने खिचड़ी का प्रसाद ग्रहण किया और रातभर भजन-कीर्तन में लीन रहे। भक्ति और अनुशासन का ऐसा संगम शायद ही कहीं और देखने को मिलता है। -- प्रवचनों में झलका आध्यात्मिक संदेश

नारद आश्रम के प्रांगण में प्रसिद्ध प्रवचनकार सुदर्शनाचार्य उर्फ भोला बाबा ने कहा कि पंचकोशी यात्रा केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि जीवन में संयम, त्याग और आस्था का प्रतीक है। उन्होंने बताया कि इस यात्रा का उद्देश्य आत्मशुद्धि और लोकमंगल है।संतों ने अपने प्रवचनों में पंचकोशी क्षेत्र के धार्मिक, ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व को विस्तार से बताया। श्रद्धालु भक्तिभाव में इतने मग्न थे कि दोपहर बाद तक नदांव में दर्शनार्थियों की लंबी कतारें लगी रहीं।

-- दीपों की रोशनी में झूमता नारद आश्रम

जैसे-जैसे शाम ढली, नारद आश्रम का दृश्य और भी मोहक होता गया। दीपों की लौ से सरोवर का जल आभामय हो उठा। भजन “जय जय शंकर, ओं नमः शिवाय” की धुनों पर श्रद्धालु झूम उठे। वातावरण में ऐसी ऊर्जा थी, मानो स्वयं देवर्षि नारद वीणा बजा रहे हों।इस अवसर पर डा. रामनाथ ओझा, वर्षा पांडेय, बसांव मठ के अनेक संत-महात्मा सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।

-- पंचकोशी यात्रा, श्रद्धा का उत्सव, संस्कृति का संगम

हर वर्ष की तरह इस बार भी पंचकोशी परिक्रमा ने बिहार और उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों से लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित किया है। यह यात्रा केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि भारत की जीवंत संस्कृति, एकता और भक्ति का प्रतीक बन चुकी है।नारद सरोवर से उठती भक्ति की गूंज और दीपों की चमक ने पूरे क्षेत्र को आध्यात्मिक आभा से भर दिया। श्रद्धा, अनुशासन और सेवा का यह समन्वय पंचकोशी परिक्रमा को केवल यात्रा नहीं, बल्कि जीवन का उत्सव बना देता है।