पंचकोसी परिक्रमा यात्रा का चौथा पड़ाव, अंजनी सरोवर पर उमड़ा आस्था का सागर
विश्व प्रसिद्ध पंचकोसी परिक्रमा यात्रा का कारवां बुधवार की सुबह भभुअर से चलकर नुआंव स्थित महर्षि उद्दालक ऋषि के आश्रम पहुंचा, जहां श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। अंजनी सरोवर में स्नान और पूजा-अर्चना के बाद भक्तों ने परंपरा के अनुसार सत्तू-मूली का प्रसाद ग्रहण किया। पौराणिक मान्यता के अनुसार, इसी स्थान पर महर्षि उद्दालक ने भगवान श्रीराम और लक्ष्मण को सत्तू-मूली खिलाकर आवभगत की थी, और उसी स्मृति में आज भी यह परंपरा जीवित है।

केटी न्यूज/बक्सर।
विश्व प्रसिद्ध पंचकोसी परिक्रमा यात्रा का कारवां बुधवार की सुबह भभुअर से चलकर नुआंव स्थित महर्षि उद्दालक ऋषि के आश्रम पहुंचा, जहां श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा। अंजनी सरोवर में स्नान और पूजा-अर्चना के बाद भक्तों ने परंपरा के अनुसार सत्तू-मूली का प्रसाद ग्रहण किया। पौराणिक मान्यता के अनुसार, इसी स्थान पर महर्षि उद्दालक ने भगवान श्रीराम और लक्ष्मण को सत्तू-मूली खिलाकर आवभगत की थी, और उसी स्मृति में आज भी यह परंपरा जीवित है।

नुआंव पहुंचने के बाद हजारों श्रद्धालु अंजनी सरोवर में स्नान कर हनुमानजी और माता अंजनी के मंदिर में मत्था टेके। उसके बाद सत्तू-मूली का प्रसाद श्रद्धालुओं के बीच वितरित किया गया। बसांव पीठाधीश्वर श्री अच्युत प्रपन्नाचार्य जी महाराज के सानिध्य में इस आयोजन का विधिवत शुभारंभ हुआ। बसांव मठ के संतों ने प्रसाद वितरण के साथ कथा-प्रवचन का भी आयोजन किया, जिसमें संतों ने महर्षि उद्दालक, बाल हनुमान और माता अंजनी की लीलाओं का वर्णन किया।

इस अवसर पर सुदर्शनाचार्य जी महाराज (भोला बाबा) और डॉ. रामनाथ ओझा सहित कई संत-महात्मा उपस्थित रहे। प्रवचन में भोला बाबा ने कहा कि “नुआंव स्थित उद्दालक आश्रम के समीप माता अंजनी अपने पुत्र बाल हनुमान के साथ निवास करती थीं। यही कारण है कि यह स्थान आज अंजनी सरोवर के नाम से विख्यात है।” उन्होंने कहा कि हनुमानजी का बचपन यहीं बीता और यह स्थल भक्तों के लिए ऊर्जा और भक्ति का केंद्र है।

-- कथाओं में झलकती पौराणिक गाथाएं
प्रवचन के दौरान यह भी बताया गया कि माता लक्ष्मी की बड़ी बहन दरिद्रा का विवाह महर्षि उद्दालक से हुआ था। कहा जाता है कि महर्षि ने पहले ही अपना अहंकार भगवान विष्णु को समर्पित कर दिया था, जिसके कारण दरिद्रता उनके पास रहते हुए भी उन पर प्रभाव नहीं डाल सकी। इस कथा का संदेश है कि जो व्यक्ति अहंकार को त्यागकर भक्ति के मार्ग पर चलता है, उस पर दरिद्रता हावी नहीं हो सकती। श्रद्धालु इस कथा को सुनकर भाव-विभोर हो उठे और “जय श्रीराम” के जयघोष से पूरा आश्रम गूंज उठा।

-- चरित्रवन की ओर बढ़ा कारवां, उमड़ी भीड़
बुधवार की शाम ढलते ही श्रद्धालुओं का कारवां नुआंव से निकलकर चरित्रवन की ओर बढ़ने लगा, जो पंचकोसी यात्रा का पांचवां और अंतिम पड़ाव है। चरित्रवन में गुरुवार को भक्त गंगा स्नान करेंगे और लक्ष्मीनारायण भगवान के दर्शन के बाद विश्व प्रसिद्ध लिट्टी-चोखा का प्रसाद ग्रहण करेंगे।शहर का किला मैदान श्रद्धालुओं से खचाखच भर गया है। हर आने वाली ट्रेन श्रद्धालुओं से भरी हुई थी। देर रात तक आने-जाने वालों का तांता लगा रहा। स्टेशन से लेकर किला मैदान तक का इलाका भक्ति और उल्लास से सराबोर रहा।

-- अतिक्रमण से खतरे में अंजनी सरोवर का अस्तित्व
हालांकि, इस भव्य आयोजन के बीच चिंता की एक परत भी दिखी। अंजनी सरोवर पर हो रहे अतिक्रमण से इसका अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। श्रद्धालुओं और पंचकोसी परिक्रमा समिति के सदस्यों ने चेतावनी दी है कि यदि प्रशासन ने समय रहते कदम नहीं उठाया, तो आने वाले वर्षों में नुआंव का यह ऐतिहासिक मेला केवल यादों में सिमट जाएगा।पंचकोसी परिक्रमा समिति के सचिव डॉ. रामनाथ ओझा ने बताया कि सरोवर और परिक्रमा मार्ग पर अतिक्रमण के कारण श्रद्धालुओं को असुविधा हो रही है। संत समाज परिक्रमा की पूरी रस्म निभा नहीं पा रहे हैं। प्रशासन को पूर्व में अवगत कराने के बावजूद समस्या जस की तस बनी हुई है।उन्होंने यह भी कहा कि यह स्थल केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व का केंद्र है। इसलिए इसके संरक्षण के लिए जिला प्रशासन को तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए।

-- पौराणिक महत्व और लोकआस्था का संगम
पौराणिक ग्रंथों में नुआंव का वर्णन ‘महर्षि उद्दालक की तपोस्थली’ के रूप में किया गया है। यहां रात्रि विश्राम करने और सरोवर की परिक्रमा करने से दरिद्रता दूर होती है। श्रद्धालु इस आस्था के साथ दूर-दराज़ के जिलों से यहां पहुंचते हैं।कथा-वाचकों ने बताया कि जो भक्त सच्चे मन से उद्दालक आश्रम की परिक्रमा करता है और माता अंजनी के चरणों में मत्था टेकता है, उसके जीवन से निर्धनता और दुःख स्वतः समाप्त हो जाते हैं।

-- हर कदम पर भक्ति, हर मोड़ पर परंपरा
पंचकोसी परिक्रमा यात्रा सिर्फ एक धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि यह बक्सर की लोकसंस्कृति और आध्यात्मिक एकता की प्रतीक बन चुकी है। भोर की पहली किरण से लेकर रात की आरती तक, हर क्षण श्रद्धा से ओतप्रोत दिखता है।सत्तू-मूली के प्रसाद से लेकर लिट्टी-चोखा के भोग तक, यह यात्रा लोगों को न केवल धार्मिक भावनाओं से जोड़ती है, बल्कि सामाजिक एकता का भी संदेश देती है।

-- समापन चरित्रवन में आज
गुरुवार को यात्रा अपने अंतिम पड़ाव चरित्रवन में पहुंचेगी, जहां गंगा स्नान, लक्ष्मीनारायण भगवान के दर्शन और लिट्टी-चोखा के प्रसाद के साथ परिक्रमा का समापन होगा। इसके बाद श्रद्धालु स्टेशन रोड स्थित बसांव मठिया के विश्राम कुंड पर रात्रि विश्राम करेंगे।पंचकोसी परिक्रमा का यह अनुष्ठान हजारों वर्षों से बक्सर की सांस्कृतिक आत्मा में रचा-बसा है। चाहे श्रद्धालु की थाली में सत्तू-मूली हो या मंच पर कथा-वाचन, हर दृश्य यही संदेश देता है कि जहां आस्था है, वहीं भगवान हैं।
