......जब डुमरांव में भक्त की लाज बचाने के लिए मां को बदलनी पड़ी थी तिथी राज परिवार रह गया था स्तब्ध
डुमरांव में कई ऐसे देवी मंदिर है जो मनोकामना पूर्ण करने के लिए विख्यात है। लेकिन अनुमंडल मुख्यालय से करीब छह किलोमीटर दूर डुमरांव बिक्रमगंज पथ के किनारे अमसारी गांव के पास स्थित दक्षिणेश्वरी भवानी की मान्यता काफी अनोखी है।
केटी न्यूज। डुमरांव
डुमरांव में कई ऐसे देवी मंदिर है जो मनोकामना पूर्ण करने के लिए विख्यात है। लेकिन अनुमंडल मुख्यालय से करीब छह किलोमीटर दूर डुमरांव बिक्रमगंज पथ के किनारे अमसारी गांव के पास स्थित दक्षिणेश्वरी भवानी की मान्यता काफी अनोखी है। मंदिर के पास से गुजरने वाले लोग भी यदि सच्चें मन से कोई प्रार्थना करें तो मां दक्षिणेश्वरी मनोकामना उनकी जरूर पूरा करती है। ऐसा विश्वास भक्तों में है। मां दक्षिणेश्वरी की मंदिर की स्थापना की कहानी भी दिलचस्प है तथा मंदिर व मां काली के साथ उनके अनन्य भक्त अमसारी के अनंत पाठक उर्फ अनंत महाराज की भक्ति भी जुड़ी हुई है। जहां मां को अपने भक्त की लाज बचाने के लिए तिथी बदलनी पड़ी थी। स्थानीय लोगों के अनुसार करीब पांच से छह सौ वर्ष पहले अनंत महाराज की भक्ति से प्रसन्न होकर मां भवानी ने नीम के पेड़ के रूप में अवतार लेना पड़ा था। तब से आज तक मां दक्षिणेश्वरी की पूजा की जाती है तथा मां भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती है।
भलनी धाम में हर दिन पूजा करने जाते थे अनंत महाराज
अमसारी के बुजुर्ग व अनंत महाराज के वंशज विश्वामित्र पाठक की मानें तो करीब पांच-छः सौ साल पहले गंगा नदी भोजपुर ताल कोलिया से गुजरती थी। उस समय अनंत जी महाराज डुमरांव राज परिवार के पुरोहित थे। अनंत बाबा प्रतिदिन अहले सुबह गांव से पैदल गंगा स्नान कर वहां से गंगाजल लेकर रोहतास जिले में स्थित मां भलुनी भवानी धाम जाते थे तथा पूजा अर्चना करने के बाद ही राज परिवार के पुरोहिती का कार्य करते थे। जब अनंत बाबा बुर्जुग हो गए तो उनकार शरीर कमजोर होने लगा वो चलने फिरने में अस्मर्थ हो गये। उस दौरान मां अनंत बाबा के स्वप्न में आई और अमसारी के पास राजपरिवार द्वारा उन्हें दान में दिए गए बावन बीघे के भूखंड के बीचोबीच एक नीम के पेड़ के रूप में अवतरित होने की जानकारी दी। अनंत बाबा को बताई की आज से वे वहीं पर उनकी पूजा-अर्चना करें। सुबह में जब अनंत महाराज उक्त जगह पर गये तो वहा नीम का पेड़ उग आया था। यह बात शाम होते-होते पुरे इलाके में फैल गई कि कि मां भलनी भवानी ने नीम के पेड़ के रूप में अवतार लिया है। बस श्रद्धालुओं द्वारा पूजा अर्चना शुरू कर दी गई। कालांतर मंें नीम का पेड़ आंधी में टूट गया। तब ग्रामीणों के सहयोग से उस नीम के पेड़ के शेष बचे तने को सिमेंट का कवर चढ़ा सुरक्षित कर दिया गया तथा वहा भव्य मंदिर बना मां काली की मूर्ति की स्थापना की गई। आज उस मंदिर में मां काली के साथ सिद्धेश्वरी भवानी तथा सूर्यदेव की मूर्तियां स्थापित है। मंदिर के ठीक समाने एक तालाब भी है जो मंदिर की छंटा को कई गुना बढ़ा देता है। नवरात्र सहित पूरे साल वहा श्रद्धालुओं का तांता लगता है।
चमत्कार दिखाने पर राज परिवार द्वारा दान किया गया था जमीन
अमसारी के शिवजी पाठक, ने बताया कि राज परिवार में पूजा पाठ करने के दौरान एक बार अनंत महाराज ने भूलवस एकम तिथि को दूज बता दिया गया। तब पंडितों ने पत्रा के आधार पर उनकी बात को काट दिया था। पंडितों के तर्क सुन तत्कालीन महाराज द्वारा दूज होने का प्रमाण देने की बात अनंत जी से कही गई। कहा जाता है कि तब अनंत जी ने मां काली से प्रतिष्ठा बचाने की याचना की थी। उनकी भक्ति से प्रसन्न हो मां ने देर शाम महाराज को आकाश में अपनी हसली की चमक से थोड़ी देर के लिए चांद का आभास कराया था। बताया कि राज परिवार द्वारा दान किये गये जमीन के ठीक बीच मां दक्षिणेश्वरी का मंदिर है।