तीसरे दिन भी जारी रहा चौसा थर्मल पॉवर प्लांट के मजदूरों का हड़ताल, बेनतीजा रही वार्ता

तीसरे दिन भी जारी रहा चौसा थर्मल पॉवर प्लांट के मजदूरों का हड़ताल, बेनतीजा रही वार्ता

बोर्ड के रेड से मजदूरी भुगतान पर गुरूवार से ही हड़ताल पर डटे है सैकड़ो मजदूर

केटी न्यूज/चौसा 

चौसा में निर्माणधीन 1320 मेगावॉट थर्मल पॉवर प्लांट के निर्माण कार्य में लगे मजदूरों का हड़ताल तीसरे दिन भी जारी रहा। शनिवार को पूरे दिन कंपनी प्रबंधन द्वारा किए गए मान मनौव्वल का हड़ताली मजदूरों पर कोई असर नहीं पड़ा। बता दें कि इस थर्मल पॉवर प्लांट में फिलहाल निर्माण कार्य चल रहा है। निर्माण कार्य एजेंसी लार्सन एन्ड टुब्रो के श्रमिकों ने गुरूवार से ही बोर्ड के तय रेट पर मजदूरी भुगतान को लेकर हड़ताल कर दिया है। मजदूरों के हड़ताल पर रहने से थर्मल पॉवर प्लांट का निर्माण कार्य ठप रहा। मजदूरों का कहना है कि कंपनी उनकी हकमारी कर रही है। मजदूरों ने तय मानक के हिसाब से मजदूरी देने और उनकी सुविधा में बढ़ोतरी करने की मांग कर रहे थे। कंपनी प्रशासन द्वारा तीसरे दिन भी मजदूरों के मान मनौव्वल का प्रयास किया गया। लेकिन शाम तक इसका परिणाम नहीं निकला। इधर, मजदूरों के हक दिलाने को लेकर यूनियन के नेता मजदूरों के पास पहुंच उनकी लड़ाई लड़ने को आश्वासन दे उन्हे

हड़ताल पर डटे रहने की सलाह दे रहे है। बता दें कि निर्माणधीन थर्मल पॉवर प्लांट में कार्यकारी एल एन्ड टी के अंतर्गत कार्य करने वाली पावर मैक कम्पनी के मजदूरों द्वारा ससमय मजदूरी का भुगतान बोर्ड रेट के अनुसार करने व आने-जाने का पर्याप्त साधन की मांग को लेकर गुरुवार से हड़ताल पर है। मजदूरों के हड़ताल के कंपनी को हर दिन बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है। 

निर्माण के शुरूआत से ही कंपनी प्रबंधन को झेलना पड़ रहा है विरोध

बता दें कि वर्ष 2019 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चौसा के पास करीब 10 हजार करोड़ की लागत से 1320 मेगावॉट के थर्मल पॉवर प्लांट की आधारशीला रखी थी। तब यह उम्मीद जताया जा रहा था कि इस कंपनी के शुरू होने के बाद सूबे बिहार में बिजली का संकट दूर हो जाएगा। इस प्लांट को बिहार में बिजली आधारित उद्योगों के लिए वरदान बताया जाता है। जानकारी के अनुसार कंपनी द्वारा कुल उत्पादन का 85 प्रतिशत आपूर्ति बिहार सरकार को देना है जबकि शेष 15 प्रतिशत का उपयोग कंपनी खुद करेगी। लेकिन जैसे ही थर्मल पॉवर की निर्माण प्रक्रिया शुरू हुई वैसे ही मजदूरों तथा स्थानीय छुटभैया नेताओं की राजनीति भी शुरू हो गई। जिस कारण अक्सर ही इसका निर्माण कार्य ठप रहता है। इसके पहले कंपनी द्वारा अधिगृहित जमीन का उचित मुआबजा की मांग पर स्थानीय किसान भी लंबे समय तक आंदोलन किए। किसानों का आंदोलन हिंसक भी हो चुका है। वही कई बार मजदूरों की मौत तथा अन्य मसलों को लेकर मजदूरों द्वारा हड़ताल किया जाता है। जिसका असर निर्माण कार्य पर पड़ता है। एकबार फिर से मजदूरों के हड़ताल से कंपनी का काम बाधित हो रहा है। मजदूरों के इस हरकत से कंपनी अधिकारी भी खासे परेशान रहते है।