रत्नगर्भा है डुमरांव की मिट्टी, जिसने उस्ताद जैसी सख्शियत को दिया जन्म - एसडीओ

डुमरांव की मिट्टी रत्नगर्भा है, यहां कई सपूत पैदा हुए। इसी मिट्टी ने उत्साद विस्मिल्लाह खां जैसी सख्शियत को जन्म दिया, जिन्होंने शहनाई जैसे एक मामूली वाद्य को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दी।

रत्नगर्भा है डुमरांव की मिट्टी, जिसने उस्ताद जैसी सख्शियत को दिया जन्म - एसडीओ

- पूण्यतिथि पर पैतृक शहर में याद किए गए शहनाई शाहंशाह उस्ताद विस्मिल्लाह खां

- अनुमंडल प्रशासन ने मनायी उस्ताद की 18वीं पुण्यतिथि, दी श्रद्धांजलि

केटी न्यूज/डुमरांव 

डुमरांव की मिट्टी रत्नगर्भा है, यहां कई सपूत पैदा हुए। इसी मिट्टी ने उत्साद विस्मिल्लाह खां जैसी सख्शियत को जन्म दिया, जिन्होंने शहनाई जैसे एक मामूली वाद्य को अंतर्राष्ट्रीय पहचान दी। उक्त बातें डुमरांव एसडीओ राकेश कुमार ने बुधवार को अनुमंडल कार्यालय स्थित सभागार में कही।

अवसर था भारत रत्न उस्ताद विस्मिल्लाह खां के 18 वीं पूण्यतिथि का। इसके पहले उनके तैल्य चित्र पर पुष्प अर्पित कर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किया गया। एसडीओ ने कहा कि उस्ताद की सबसे बड़ी खासियत यह थी कि वे अपने काम के प्रति काफी जुनूनी थे। उनका यही जुनून उन्हें अपनी विधा में शिखर तक पहुंचाया। उन्होंने कहा कि शहनाई जैसे एक सुशीर वाद्य को उस्ताद ने अपनी फनकारी से अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिला न सिर्फ भारत रत्न बने बल्कि इस वाद्य यंत्र के साथ ही संपूर्ण कला जगत के मानचित्र पर डुमरांव का नाम रौशन कर दिया है।

उनके व्यक्तित्व व कृतित्व की जितनी तारीफ की जाए वह काफी कम है। वही, वक्ताओं ने कहा कि भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां ने शहनाई के सुरों में डुमरांव के मिट्टी की खुशबू घोलकर विश्व मे अपनी पहचान बनायी। उनके शहनाई के सुरीले स्वर ने हिंदू-मुस्लिम एकता को एक माले में पिरोने का काम किया। वे अपने शहनाई की शुरूआत डुमरांव के बांके बिहारी मंदिर से किए थे

तो अंतिम समय तक बनारस के बाबा विश्वनाथ मंदिर व गंगा तटों पर शहनाई की मधुर संगीत का रियाज करते रहे। वे जिनते बड़े संगीतज्ञ थे उतने ही सादा जीवन बीताते थे। हालांकि, उनके अबाई वतन में उनसे जुड़ी यादें मौजूद नहीं है। जिसका मलाल डुमरांव वासियों को जरूर है। अपने संबोधन में डीएसपी अफाक अख्तर अंसारी ने शहनाई के जादूगर भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां को हिंदू-मुस्लिम एकता का सिपाही बताया।

डीएसपी ने कहा कि अपने मेहनत और शहनाई वाद्य के फन से उस्ताद बिस्मिल्लाह खां ने विश्व में अपनी एक अलग पहचान बनायी। डुमरांव के बांके बिहारी मंदिर में अपने सुरों की खुशबू बिखेरने वाले बिस्मिल्लाह को भारत रत्न सहित कई अलंकारों पदक से नवाजा गया। मां गंगे के तट पर बैठकर शहनाई की गूंज देने वाले उस्ताद को विश्व पटल ने मान-सम्मान दिया। मौके पर अनुमंडल प्रशासन के कर्मियों के अलावे दर्जनों अधिवक्ता व गणमान्य उपस्थित थे।

लालकिले की प्राचीर से शहनाई बजा मनाया था आजादी का जश्न

यह भी दिलचस्प है कि जहां भी शहनाई का की चर्चा होती है उस्ताद का नाम स्वतः ही याद हो जाता है। उन्होंने कई महत्वपूर्ण अवसरों पर अपनी शहनाई की मधुर संगीत से लोगों को अपना दिवाना बनाया था। लेकिन, सबसे यादगार पल 15 अगस्त 1947 का दिन था, जब देश ने नई सुबह देखी थी। जश्न-ए-आजादी की शुरूआत पर उत्साद ने लालकिले की प्राचीर से शहनाई बजा अमर हो गए।