जब हम प्रभु को अपना सर्वस्व सौंप देते हैं तो जीवन में रास घटित होता है : आचार्य रणधीर ओझा
इटाढ़ी प्रखंड के स्थानीय नगर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के छठवें दिन मामा जी के कृपा पात्र आचार्य श्री रणधीर ओझा नेभगवान की अनेक लीलाओं में श्रेष्ठतम लीला रासलीला का वर्णन किया। उन्होंने बताया कि रास तो जीव का शिव के मिलन की कथा है। जो भक्तों के पापों का हरण कर लेते हैं, वहीं हरि है।
- श्रीमद्भागवत कथा के छठवें दिन मामा जी के कृपा पात्र आचार्य श्री रणधीर ओझा ने रासलीला का किया वर्णन
केटी न्यूज/बक्सर
इटाढ़ी प्रखंड के स्थानीय नगर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के छठवें दिन मामा जी के कृपा पात्र आचार्य श्री रणधीर ओझा नेभगवान की अनेक लीलाओं में श्रेष्ठतम लीला रासलीला का वर्णन किया। उन्होंने बताया कि रास तो जीव का शिव के मिलन की कथा है। जो भक्तों के पापों का हरण कर लेते हैं, वहीं हरि है।
महारास शरीर नहीं अपितु आत्मा का विषय है। जब हम प्रभु को अपना सर्वस्व सौंप देते हैं तो जीवन में रास घटित होता है। महारास में भगवान श्रीकृष्ण ने बांसुरी बजाकर गोपियों का आह्वान किया, लेकिन जब गोपियों की भांति भक्ति के प्रति अहंकार आ जाता है तो प्रभु ओझल हो जाते है। उसके पश्चात गोपियों ने एक गीत गया जिसे गोपी गीत कहा गया।
उसके माध्यम से उनके ह्रदय की पीड़ा को देखकर भगवान कृष्ण प्रकट हो गए और रास घटित हुआ। महारास लीला के द्वारा ही जीवात्मा परमात्मा का ही मिलन हुआ। जीव और ब्रह्म के मिलने को ही महारास कहते है। उन्होंने कहा कि महारास में पांच अध्याय है। उनमें गाये जाने वाले पंच गीत भागवत के पंच प्राण हैं, जो भी ठाकुरजी के इन पांच गीतों को भाव से गाता है, वह भव पार हो जाता है। उन्हें वृंदावन की भक्ति सहज प्राप्त हो जाती है।
आचार्य श्री ने आगे बताया कि भागवत पुराण में कहा गया है कि जो कोई भी ईमानदारी से रास लीला को सुनता है या उसका वर्णन करता है वह कृष्ण की शुद्ध प्रेमपूर्ण भक्ति को प्राप्त करता है। आचार्य श्री ने आगे श्री कृष्ण रुक्मणी विवाह की कथा सुनाई। आचार्य श्री ने बताया कि नारद जी भ्रमण पर निकले तो रुक्मिणी के पिता से मिलकर उन्होंने बताया कि रुक्मिणी का विवाह तीन पगों में तीन लोक नापने वाले त्रिलोकी नाथ श्री कृष्ण जैसे योग्य वर से होगा।
उन्होंने राजा भीष्मक को यह भी बताया कि रुक्मिणी को ब्याहने के लिए उनके घर दो वर आएंगे। नारद जी की बात सुनकर रुक्मिणी के भाई रुक्मण नाराज हो जाते हैं। वह अपनी बहन रुक्मिणी की शादी अपने मित्र राजा शिशुपाल से कराना चाहते हैं। वह राजा शिशुपाल को अपनी बहन के विवाह का प्रस्ताव भेजते हैं और साथ में उनको इस बात की चिंता भी सताने लगती है कि कहीं श्रीकृष्ण बारात लेकर न आ जाएं। इसलिए वह जरासंध को भी अपनी सेना साथ लाने को कहते हैं।
उधर रुक्मिणी इस बात का संदेश श्रीकृष्ण को भिजवा देतीं हैं। श्री कृष्ण गौरीशंकर मंदिर में पूजा करने पहुंचीं रुक्मिणी को हर ले जाते हैं। जब शिशुपाल और जरासंध को इस घटना का पता लगता है तो वह उनका पीछा करते हैं। रुक्मणि को जब यह अहसास हुआ कि श्रीकृष्ण स्वयं नारायण हैं और रुक्मिणी लक्ष्मी जी हैं तो वह श्रीकृष्ण स्वयं उनसे विवाह करती हैं।
आचार्य श्री ने बताया की भागवत पुराण में कहा गया है कि जो कोई भी ईमानदारी से रास लीला को सुनता है या उसका वर्णन करता है वह कृष्ण की शुद्ध प्रेमपूर्ण भक्ति को प्राप्त करता है । कथा में भगवान का मथुरा प्रस्थान, कंस का वध, महर्षि संदीपनी के आश्रम में विद्या ग्रहण करना, कालयवन का
वध, उधव गोपी संवाद, ऊधव द्वारा गोपियों को अपना गुरु बनाना, द्वारका की स्थापना एवं रुकमणी विवाह के प्रसंग का संगीतमय भावपूर्ण पाठ किया गया। भागवत कथा के महत्व को बताते हुए कहा कि जो भक्त प्रेमी कृष्ण रुक्मणी के विवाह उत्सव में शामिल होते हैं उनकी वैवाहिक समस्या हमेशा के लिए समाप्त हो जाती है जैसे मार्मिक प्रसंग सुनाकर भक्तों को भाव विभोर किया।