भारत को नेत्रहीन महिला टी-20 विश्वकप जिताने वाली अनु के गांव में मुलभूत सुविधाएं भी मयस्सर नहीं
श्रीलंका के कोलंबो स्थित आर. प्रेमदासा स्टेडियम में 23 नवंबर को हुए पहले नेत्रहीन महिला टी-20 विश्वकप में भारतीय टीम ने नेपाल को सात विकेट से पराजित कर न सिर्फ चैंपियन बनी बल्कि पूरी प्रतियोगिता में अजेय रच इतिहास भी रचा। इस टीम की अहम खिलाड़ी व बतौर आलराउंडर चयनित बक्सर जिले के डुमरांव अनुमंडल अंतर्गत सिमरी प्रखंड के मुकुंदपुर गांव निवासी अनु कुमारी ने फाइनल मुकाबले में कसी हुई गेंदबाजी करते हुए एक विकेट निकाल नेपाल की लड़कियों को बड़ा स्कोर बनाने से रोकी थी।
-- गांव में न खेल मैदान और न ही आने जाने के लिए पक्की सड़क, कच्चे पगडंडियों के सहारे आवाजाही करते है ग्रामीण
-- प्राइमरी के बाद पढ़ाई के लिए दूसरे गांव जाना बनी है मजबूरी
केटी न्यूज/डुमरांव
श्रीलंका के कोलंबो स्थित आर. प्रेमदासा स्टेडियम में 23 नवंबर को हुए पहले नेत्रहीन महिला टी-20 विश्वकप में भारतीय टीम ने नेपाल को सात विकेट से पराजित कर न सिर्फ चैंपियन बनी बल्कि पूरी प्रतियोगिता में अजेय रच इतिहास भी रचा। इस टीम की अहम खिलाड़ी व बतौर आलराउंडर चयनित बक्सर जिले के डुमरांव अनुमंडल अंतर्गत सिमरी प्रखंड के मुकुंदपुर गांव निवासी अनु कुमारी ने फाइनल मुकाबले में कसी हुई गेंदबाजी करते हुए एक विकेट निकाल नेपाल की लड़कियों को बड़ा स्कोर बनाने से रोकी थी।

लेकिन, यह भी दिलचस्प है कि जिस अनु ने पहली बार आयोजित हुए नेत्रहीन महिला टी-20 क्रिकेट प्रतियोगिता में भारत को सिरमौर बनाने में अहम योगदान दिया, उसका पैतृक गांव मुलभूत सुविधाओं से महरूम है। यहां तक कि गांव के लड़के-लड़कियों को खेलने के लिए एक अदद मैदान तक नसीब नहीं है। इसके अलावे मुख्य सड़क नया भोजपुर डुमरी पथ से गांव तक जाने के लिए आजादी के सात दशक बाद भी कच्चे रास्ते ही है। इसके अलावे गांव में पढ़ाई के लिए मात्र एक प्राइमरी स्कूल है।
भला हो कि अनु जन्मजात दिव्यांग (दृटिहीन) थी, जिस कारण उसके माता-पिता उसे दृष्टिहीन बच्चों के लिए बने विशेष स्कूल में नामांकन कराए। अनु फिलहाल दिल्ली में रह एक नेत्रहीन विद्यालय से पढ़ाई कर रही है तथा वहीं से उसका चयन भारतीय नेत्रहीन महिला क्रिकेट टीम में हो पाया। ग्रामीणों का कहना है कि अनु यदि दिव्यांग नहीं होती तथा गांव में रहती तो क्रिकेट के इस सबसे छोटे व दिलचस्प फार्र्मेट में विश्व विजेता बनना तो दूर ठीक से बल्ला या गेंद पकड़ने भी नहीं सीख पाई होती।

अनु की इस उपलब्धि से जहां पूरा गांव गौरवान्वित है, वहीं गांव के लड़के व लड़कियों में इस बात की कसक भी है कि उनके गांव में जब एक खेल मैदान तक नहीं है तो अनु जैसे दूसरी लड़की या लड़के कैसे अपनी प्रतिभा को निखारेंगे तथा खेल कौशल से अपने गांव को अंतर्राष्ट्रीय या राष्ट्रीय स्तर तक पहचान दिला सकते है।
-- गांव तक पहुंचने के लिए पगडंडिया ही सहारा
राजा भोज के ऐतिहासिक किले के बगल से सरपट भागती सड़क आगे जाकर पगडंडियों में तब्दील हो जाती है। इसी पगडंडियो (कच्चे रास्ते) से जुड़ा है मुकुंदपुर गांव।सिमरी प्रखंड के मझवारी पंचायत के अंतर्गत आने वाला करीब पांच सौ घरों वाले इस गांव में पिछड़ा, अतिपिछड़ा व दलित तबके के लोग ही निवास करते है।
शिक्षा विभाग में डीपीओ के पद से सेवानिवृत हुए परशुराम यादव, ग्रामीण बिट्टू यादव, हरिशंकर यादव, रंजू, मुस्कान, खुशी, यमुना आदि ने बताया कि गांव में किसी तरह की सुविधा नहीं है। न यहां खेल मैदान है और न ही प्राइमरी स्कूल से अधिक पढ़ाई की सुविधा। ग्रामीणों का कहना है कि यदि सरकार उनके गांव में उच्च शिक्षा के लिए स्कूल, खेल मैदान व संसाधान की व्यवस्था करेगी तो अनु जैसी कई प्रतिभाएं राज्य व देश का प्रतिनिधित्व करने में सक्षम है। जरूरत है बस उन्हें संसाधन व सही मार्गदर्शन की।

-- पंचायत मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर है मुकुंदपुर गांव
बता दें कि मुकुंदपुर के साथ ही मझवारी पंचायत में शामिल इंग्लिशपुर, परमानपुर व रामपुर मठिया गांव अपने भौगोलिक स्थिति का दंश झेल रहे है। जिस कारण आजादी के सात दशक बाद भी इन गांवों में अपेक्षाकृत विकास नहीं हो पाया है। बता दें कि मझवारी पंचायत मुख्यालय जाने के लिए इन गांवों के लोगों को नया भोजपुर व पुराना भोजपुर होकर जाना पड़ता है। गांव व पंचायत मुख्यालय के बीच भोजपुर ताल व कोलिया ताल इनके विकास का सबसे बड़ा रोड़ा बन गया है। पंचायत मुख्यालय से दूर होने के कारण ग्रामीण कई तरह की परेशानियों से जूझ रहे है।
-- दो महीने से बंद है दो जलमीनार
बिट्टू यादव का कहना है कि सुदृढ़ जलापूर्ति के लिए उनके गांव में तीन जलमीनार बनाए गए है, जिनमें पिछले दो महीने से दो जलमीनार खराब पड़े है। इसकी शिकायत की गई है, बावजूद अभी तक इसकी मरम्मत नहीं हो सकी है। जिस कारण इन दिनों ग्रामीणों को पेयजल के लिए भी परेशान होना पड़ रहा है।
-- काम नहीं आया सीएम का आश्वासन
बता दें कि मुकुंदपुर गांव में वर्ष 2009 में एक बड़ी घटना हुई थी। तब ग्रामीणों व पुलिस के बीच टकराव हुआ था। इसके बाद पुलिस की भयंकर प्रतिक्रिया भी इस गांव के लोगों को झेलनी पड़ी थी। इस घटना पर मरहम लगाने वर्ष 2010 में सीएम नीतीश कुमार खुद मुकुंदपुर आए थे। यहां उन्होंने मंच से पक्की सड़क बनवाने तथा क्षेत्र में टमाटर के बंपर उत्पादन को देखने के लिए टमाटर प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित कराने की घोषणा की थी, लेकिन डेढ़ दशक बाद भी सीएम की घोषणा पूरी नहीं हो सकी है। हालांकि, सड़क निर्माण में जमीन की कमी भी आड़े आ रही है, जिसे प्रशासनिक स्तर से अबतक सुलझाया नहीं जा सका है।

अब देखना है कि इस गांव की बेटी ने अपने अथक परिश्रम व कौशल से देश को विश्वविजेता बनाया है तो क्या सरकार इस गांव में मुलभूत सुविधाएं बढ़ाने की ओर ध्यान दे रही है कि नहीं। हालांकि, अनु की उपलब्धि तथा उसे चहुंओर से मिल रही बधाईयों के बाद ग्रामीणों को ऐसा लग रहा है कि अब उनका गांव भी विकास की मुख्य धारा से जुड़ेगा।
