धांय-धांय, पकड़ो, पकड़ो, मारो-मारों, मार दिया और मच गई चीख पुकार
शनिवार की सुबह करीब 5.30 बज रहे थे। अहियापुर गांव के पास नहर पर बने पुल पर करीब आधा दर्जन लोग बैठकर सुबह की ठंडी हवा का आनंद ले रहे थे। अचानक दो चार पहिया पुल के पास पहुंची। दोनों वाहन पुल को दो तरफ से घेरकर खड़ी हो गई तथा उसमें से निकले लोग पुल की रेलिंग पर बैठे लोगों को निशाना बना गोली चलाने लगे।

रजनी कान्त दूबे/बक्सर
शनिवार की सुबह करीब 5.30 बज रहे थे। अहियापुर गांव के पास नहर पर बने पुल पर करीब आधा दर्जन लोग बैठकर सुबह की ठंडी हवा का आनंद ले रहे थे। अचानक दो चार पहिया पुल के पास पहुंची। दोनों वाहन पुल को दो तरफ से घेरकर खड़ी हो गई तथा उसमें से निकले लोग पुल की रेलिंग पर बैठे लोगों को निशाना बना गोली चलाने लगे।
धांय-धांय ( गोली चलने ) की आवाज सुन करीब 100-150 मीटर दूर स्थित बस्ती के लोग ललकारते हुए पुल के तरफ दौड़े। इस दौरान ग्रामीण पकड़ो-पकड़ो, मारों-मारों आदि चिल्लाते हुए हथियारबंद हमलावरों को ललकार रहे थे। उनके पास लाठी-डंडा था। वे लाठी-डंडे से ही हथियारों से लैस हमलवारों से भीड़ गए, लेकिन थोड़ी देर में ही ग्रामीणों की ललकार चीख-पुकार में बदल गई थी। अब, पकड़ो और मारों की जगह मार दिया की आवाज आने लगी थी, जाहिर है हमलावर अपना काम कर चुके थे। उनकी फायरिंग से पांच लोग लहूलुहान हो जमीन पकड़ लिए थे।
घटना की जानकारी पलक झपकते ही उनके घर की महिलाओं तक पहुंची। मौके पर पहुंची महिलाओं के क्रंदन-चित्कार से माहौल गमगीन हो गया। महिलाओं की चीख, पुकार से पूरे गांव में मातमी सन्नाटा पसर गया था। सिर्फ सुनाई पड़ रही थी तो सिसकिया व क्रंदन।
इस घटना ने एक झटके में ही एक हंसते-खेलते कुनबे को उजाड़ दिया। बालू के सवाल पर शुरू हुए इस विवाद ने तीन जिंदगियों को बालू की भीति की तरह ढहा दिया। वहीं, दो लोग जीवन व मौत से जूझ रहे है।
इस घटना के बाद पूरे गांव में मायूशी छाई है। किसी को कुछ समझ मे नहीं आ रहा था कि आखिर उनके गांव में क्या हो गया। कल तक पंचायत प्रतिनिधि बन पूरे गांव को एकसूत्र में पिरोने का दावा करने वाले आखिर कैसे हैवान बन गए और गांव के ही लोगों को मौत के घाट उतार दिया, यह लोगों के समझ नहीं आ रहा था।
वहीं, महिलाओं की चीख-पुकार से माहौल इस कदर गमगीन हो गया था कि वहां पहुंचने वाला हर सख्श रो पड़ रहा था। किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि इन महिलाओं को क्या कहकर चुप कराया जाए। उनके पति, बेटे या अन्य परिजनों का खून से लथपथ शव उनके सामने पड़ा था,
जिससे लिपट महिलाएं दहाड़े मारकर रो रही थी। आलम यह था कि उन्हें चुप कराने की कोशिश करने वाला खुद रो पड़ रहा था। घटना की विभत्सता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दर्जनों की संख्या में महिलाओं के बीच चीख-पुकार मची थी और ऐसा लग रहा था कि उन्हें चुप कराने वाला भी कोई नहीं था।