मां डुमरेजनी के श्राप से हुआ था चेरों खरवारों के सम्राज्य वंश का नाश, वार्षिकोत्सव कल

मां डुमरेजनी के श्राप से हुआ था चेरों खरवारों के सम्राज्य वंश का नाश, वार्षिकोत्सव कल

- गुरूवार को मनाया जाएगा वार्षिकोत्सव, आयोजित होगा मेला

केटी न्यूज/डुमरांव रजनीकांत दूबे

डुमरांव नगर के दक्षिण-पूर्वी छोर पर कांव नदी के किनारे रमणीक स्थान में स्थित मां डुमरेजनी मंदिर भक्तों का मनोरथ पूरा करने के साथ ही अपनी प्राकृतिक रमणीयता से आने वालों का मन मोह लेती है। मान्यता है कि मनौतियों के साथ मां के दरबार में हाजिरी लगाने वाले भक्तों की न सिर्फ झोली भरती है बल्कि माता आज भी नारी शक्ति की रक्षा करने का संदेश देती है। यहां मां के मिट्टी की पिंडी की लोग आराधना करते हैं। सावन के पूर्णिमा को नगर देवी मां डुमरेजनी का वार्षिकोत्सव मनाया जाता है, जिसकी तैयारी समिति के सदस्यों द्वारा शुरू कर दी गयी है। इस बार गुरूवार को वार्षिकोत्सव मनाया जाएगा।

इसको लेकर समिति द्वारा तैयारी पूरी कर ली गई है। बुधवार से ही मंदिर के बाहर अस्थायी दुकान तथा मेले का रूप दिखाई पड़ने लगेगा। समिति द्वारा दरबार के पिछले हिस्से में श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए साज-सज्जा के साथ कमरे और मंडप तैयार किये गये है। जयपुरिया पत्थर से मां का दरबार का निर्माण किया गया, जिस वजह से यह दरबार पहले से भी आकर्षक बना है।

वैसे तो वर्ष भर मां के दरबार मे भक्तों का आना-जाना होता है लेकिन वार्षिकोत्सव के दौरान भक्तों की अपार भीड़ जुटती है। ऐसी मान्यता है कि यदि कोई दिल से माता से कुछ मांगे, तो उसकी मुरादें पूरी होती हैं। आज भी मंदिर घने पेड़ों से घिरा है और आबादी से अलग है। फिर भी हर दिन लोग यहां पूजा अर्चना के लिए आते है।

पांच सौ वर्ष पुराना है मंदिर का इतिहास

बुजुर्गों की माने तो लगभग पांच सौ वर्ष पहले डुमरांव घने जंगलों से घिरा हुआ था। उस वक्त सड़कें नहीं थी। कांव नदी और जंगलों के बीच से रास्ता भोजपुर घाट होते हुए उतरप्रदेश को जोड़ता था। इसी रास्ते पर चेरो-खरवारों का किला था। उनका इस इलाके में आतंक था। लूटमार उनका पेशा था। कहा जाता है कि मां डुमरेजनी की शादी यूपी के ब्राह्मण रामचंद्र पांडेय से हुई थी। बिदाई कराकर रामचंद्र घोडे़ पर सवार होकर इसी रास्ते से गुजर रहे थे। पीछे डुमरेजनी की डोली चल रही थी।

जैसे ही चेरों के इलाके में पहुंचे तो चेरों ने लूट की नीयत से हमला बोल दिया। पति के साथ डुमरेजनी भी चंडी का रुप धारण कर भिड़ गईं। पति के गिरते ही डुमरेजनी का हौंसला जवाब देने लगा। मां डुमरेजनी ने अपनी अस्मत की रक्षा के लिए सतीत्व को वरण किया। लेकिन इसके पहले वे चेरों खरवारों के वंश के सम्राज्य का नाश होने का श्राप दी थी।

कहा जाता है कि कुछ दिनों के बाद ही चेरों खरवारों का विशाल साम्राज्य विनष्ट हो गया था। आज भी उनके समृद्ध किले बावन दुअरियां के अवशेष इस बात की गवाही दे रहे है कि यह कभी काफी मजबूत किला रहा होगा। बाद में यहां भव्य मंदिर का निर्माण हुआ तथा माता की कीर्ति दूर दूर तक फैल गई है।