माया नगरी छोड़ डुमरांव के शिवम ने पकड़ी स्वावलंबन की राह, बेरोजगार युवाओं के लिए बने नजीर

बेरोजगार युवाओं को स्वरोजगार की सीख देने के लिए अपने एक संबोधन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि था कि पढ़े लिखे युवा पकौड़े तल कर भी आजीविका चला सकते है। उनका इशारा युवाओं को कम पंूजी व संसाधन में स्वरोजगार की सीख देने का था, भले ही उनके इस बात पर पूरे देश में राजनीति गरमा गई थी तथा विपक्ष ने इसे मुद्दा बना लिया था। कई जगहों पर तंज के तौर पर ग्रेजुएट चाय या पकौड़े की दुकाने भी खोली गई थी।

माया नगरी छोड़ डुमरांव के शिवम ने पकड़ी स्वावलंबन की राह, बेरोजगार युवाओं के लिए बने नजीर

-- तीन साल तक मुंबई में सोलर प्लेट निर्माण कंपनी में काम किये है डुमरांव सतगलिया निवासी शिवम कुमार

-- अब साइकिल पर दहीबड़ा चाट बेच चला रहे है पूरे परिवार की आजीविका, मुंबई से बेहतर हो रही है आमदनी

केटी न्यूज/डुमरांव 

बेरोजगार युवाओं को स्वरोजगार की सीख देने के लिए अपने एक संबोधन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि था कि पढ़े लिखे युवा पकौड़े तल कर भी आजीविका चला सकते है। उनका इशारा युवाओं को कम पंूजी व संसाधन में स्वरोजगार की सीख देने का था, भले ही उनके इस बात पर पूरे देश में राजनीति गरमा गई थी तथा विपक्ष ने इसे मुद्दा बना लिया था। कई जगहों पर तंज के तौर पर ग्रेजुएट चाय या पकौड़े की दुकाने भी खोली गई थी। 

बावजूद इससे इतर डुमरांव जैसे कस्बाई शहर के एक युवक ने मायानगरी मुंबई की नौकरी छोड़ महज एक साइकिल व बहुत कम संसाधनों में दहीबड़ा चाट की चलती-फिरती दुकान खोल तथा उससे पूरे परिवार की आजीविका चला प्रधानमंत्री केे उस उक्ति को चरितार्थ कर दिखाया है।

हम बात कर रहे है डुमरांव के सतगलिया निवासी ललन प्रसाद के पुत्र शिवम कुमार की। तीन भाईयों में बड़ा शिवम इन दिनों डुमरांव की गलियों में साइकिल पर दहीबड़ा चाट बेचते नजर आता है। वह साइकि के पीछे के कैरियर पर एक पटरी रख उसमें स्टील के दो बड़े कटोरे रखता है। एक में दहीबड़ा तथा दूसरे में चना का चाट, इसके अलावे वह साइकिल के हैंडल में ही प्याज मिर्च, डुमरांव का फेमस मैदा पापड़, मसाले, नमक आदि रखता है

तथा ग्राहकों की डिमांड पर पलक झपकते ही कागज के पत्ते ( प्लेट ) में चटक दहीबड़ा चाट बनाकर दे देता है।  शिवम ने बताया कि वह तीन साल तक मुंबई में सोलर प्लेट बनाने वाली एक कंपनी में काम किया है। वहा उसे मात्र 25 हजार रूपए की पगार मिलती थी। इतने कम पैसे में मुंबई जैस महंगे शहर में रहना तथा दो वक्त की रोटी के बाद माता-पिता के लिए पैसा बचाकर भेजना मुश्किल हो रहा था। 

तीन महीना पहले वह डुमरांव आया। घर आने के साथ ही उसने किसी को खोमचे पर दहीबड़ा चाट बेचते देखा। यही से उसे बिजनेश का आइडिया आया तथा मुंबई की कमाई से बचे कुछ पैसों से शिवम ने एक नई साइकिल व स्टील के दो बर्तन खरीदे तथा साइकिल पर ही पूरी दुकान को सेट कर दिया। शिवम का कहना है कि इस रोजगार से मुंबई से अधिक आमदनी होती है।

वह पूरे दिन साइकिल पर चाट बेचने के बाद शाम में ठेला पर चाट की दुकान भी लगाता है। शिवम का कहना है कि दहीबड़ा व चाट बनाने में उसके माता-पिता सहयोग करते है। शिवम की माने तो वह डुमरांव में अपने परिवार के साथ रह इस छोटे से रोजगार से मुंबई से अधिक पैसे कमा रहा है तथा रात में अपने घर में चैन की नींद सो रहा है। शिवम की कहानी उन हजारों बेरोजगार युवाओं के लिए प्रेरणा है, जो स्थानीय स्तर पर रोजगार नहीं मिलने का बहाना बनाते है। 

बता दें कि केन्द्र व राज्य सरकार ने युवाओं को हुनरमंद बना उन्हें स्वरोजगार से जोड़ने के लिए कुशल युवा प्रशिक्षण कार्यक्रम चला रही है। बावजूद युवाओं को रोजगार का आइडिया नहीं आ रहा है, लेकिन शिवम कइी कहानी इससे अलग है।  उसके साइकिल की घंटी की मधुर आवाज तथा दहीबड़े चाट का चटपटा स्वाद लोगों को स्वतः ही खींच लेता है।

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तीन महीने में ही शिवम का दहीबड़ा चाट डुमरांव की गलियों में प्रसिद्ध हो गया है और उससे भी बड़ा यह कि शिवम बेरोजगार युवाओं के लिए एक उम्मीद बन गया है।