भभुअर में उमड़ा श्रद्धा का सैलाब, भार्गव ऋषि आश्रम पहुंचे पंचकोशी परिक्रमा के यात्री
विश्वप्रसिद्ध पंचकोशी परिक्रमा यात्रा मंगलवार को अपने तीसरे पड़ाव भभुअर स्थित भार्गव ऋषि आश्रम पहुंची, जहां श्रद्धा, भक्ति और आस्था का अद्भुत संगम देखने को मिला। हजारों श्रद्धालुओं ने यहां पहुंचकर भार्गव सरोवर (लक्ष्मण सरोवर) में पुण्य स्नान किया और भार्गवेश्वर महादेव की विधिवत पूजा-अर्चना की। मान्यता है कि भगवान राम अपने गुरु विश्वामित्र और अनुज लक्ष्मण के साथ वनवास काल में इसी स्थान पर पहुंचे थे, जहां ऋषि भार्गव ने उन्हें चूड़ा-दही का प्रसाद खिलाया था। उसी परंपरा को आज भी श्रद्धालु निभा रहे हैं।

केटी न्यूज/बक्सर।
विश्वप्रसिद्ध पंचकोशी परिक्रमा यात्रा मंगलवार को अपने तीसरे पड़ाव भभुअर स्थित भार्गव ऋषि आश्रम पहुंची, जहां श्रद्धा, भक्ति और आस्था का अद्भुत संगम देखने को मिला। हजारों श्रद्धालुओं ने यहां पहुंचकर भार्गव सरोवर (लक्ष्मण सरोवर) में पुण्य स्नान किया और भार्गवेश्वर महादेव की विधिवत पूजा-अर्चना की। मान्यता है कि भगवान राम अपने गुरु विश्वामित्र और अनुज लक्ष्मण के साथ वनवास काल में इसी स्थान पर पहुंचे थे, जहां ऋषि भार्गव ने उन्हें चूड़ा-दही का प्रसाद खिलाया था। उसी परंपरा को आज भी श्रद्धालु निभा रहे हैं।

-- तीसरे पड़ाव की भक्ति-यात्रा, नदांव से भभुअर तक
सोमवार की रात नदांव स्थित नारद सरोवर में भजन-कीर्तन के साथ बिताने के बाद मंगलवार की सुबह श्रद्धालु अगले गंतव्य भभुअर के लिए रवाना हुए। लगभग एक कोस का सफर तय करने के बाद वे भार्गव ऋषि के पवित्र आश्रम पहुंचे।आगमन के साथ ही संत समाज के मंत्रोच्चार से पूरा वातावरण भक्तिमय हो उठा। श्रद्धालुओं ने सरोवर की परिक्रमा की, भगवान शिव को भाग लगाया और तत्पश्चात परंपरागत चूड़ा-दही प्रसाद ग्रहण किया।

-- लक्ष्मण के तीर से बना था भार्गव सरोवर
समिति के सचिव डॉ. रामनाथ ओझा ने बताया कि जब भगवान राम अपने गुरु विश्वामित्र के साथ इस स्थान पर पहुंचे थे, तब ऋषि भार्गव के आश्रम में जल की भारी कमी थी। इस पर लक्ष्मण जी ने अपने तीर से भूमि पर प्रहार कर एक विशाल सरोवर का निर्माण किया था, जो आज “भार्गव सरोवर” या “लक्ष्मण सरोवर” के नाम से विख्यात है।इस सरोवर में स्नान को अत्यंत पवित्र और फलदायक माना जाता है। मान्यता है कि यहां स्नान करने और भगवान भार्गवेश्वर महादेव की पूजा से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

-- भक्ति में डूबा भभुअर, रातभर गूंजे भजन-कीर्तन
रात होते ही मंदिर परिसर भक्ति गीतों से गूंज उठा। अलग-अलग गांवों और नगरों से आईं महिलाओं ने झाल, ढोल और मंजीरे की थाप पर भजन गाकर माहौल को भावविभोर कर दिया।श्रद्धालु महिलाओं ने देर रात तक “हर हर महादेव” और “जय श्रीराम” के जयघोष के साथ भक्ति की धारा बहाई। आसपास के गांवों से भी बड़ी संख्या में लोग मेले में शामिल होने पहुंचे। मंदिर प्रांगण में लगे खानपान, खिलौने और श्रृंगार की दुकानों ने वातावरण में उत्सव का रंग घोल दिया।

-- संतों ने बताया परिक्रमा का महत्व
बसांव पीठाधीश्वर महंत अच्युतप्रपन्नाचार्य जी महाराज ने श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देते हुए कहा कि पंचकोशी परिक्रमा केवल धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और जीवन के संतुलन की साधना है। इससे मन में शांति, घर में सुख और समाज में समृद्धि आती है।उन्होंने बताया कि परिक्रमा का चौथा पड़ाव बुधवार को नुआंव में होगा, जहां श्रद्धालु उद्दालक ऋषि आश्रम में “सत्तू-मूली” का प्रसाद ग्रहण करेंगे।

-- ‘गंगा पुत्र’ लक्ष्मीनारायण स्वामी ने की आरती
परिक्रमा के दौरान गंगा पुत्र लक्ष्मीनारायण स्वामी ने अपनी कुटिया पर आरती कर श्रद्धालुओं को प्रसाद ग्रहण कराया। उन्होंने कहा कि लक्ष्मण जी के तीर से बना यह सरोवर न केवल ऐतिहासिक महत्व रखता है, बल्कि यह श्रद्धा और विज्ञान का अद्भुत संगम है।उनके अनुसार यहां की मिट्टी, जल और वातावरण में अद्भुत ऊर्जा है। श्रद्धा से की गई पूजा व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाती है।

-- प्रशासनिक लापरवाही से श्रद्धालुओं को परेशानी
हालांकि, परिक्रमा की इस पवित्र यात्रा में प्रशासनिक कुव्यवस्था की झलक भी देखने को मिली। श्रद्धालुओं को भार्गव सरोवर तक पहुंचने के दौरान दुर्गम मार्गों और कीचड़ भरे रास्तों से गुजरना पड़ा।स्थानीय लोगों का कहना है कि सरोवर के जीर्णाेद्धार कार्य के चलते खुदाई के बाद मिट्टी के ढेर मार्ग में जमा हैं, जिससे यात्रियों को भारी परेशानी हुई।श्रद्धालुओं ने नाराजगी जताते हुए कहा कि प्रशासन को पहले से तैयारी करनी चाहिए थी, क्योंकि बक्सर की पंचकोशी परिक्रमा अंतरराष्ट्रीय पहचान रखती है।

-- श्रद्धा, लोक और परंपरा का संगम
तीसरे पड़ाव भभुअर में मंगलवार को आस्था, लोकसंस्कृति और भक्ति का विराट संगम देखने को मिला। सरोवर के चारों ओर की परिक्रमा, भजन-कीर्तन और चूड़ा-दही के प्रसाद ने इस यात्रा को यादगार बना दिया।जहां एक ओर संत समाज ने आध्यात्मिक संदेश दिया, वहीं दूसरी ओर ग्रामीणों ने मेले की चहल-पहल से उत्सव का आनंद लिया।
पंचकोशी परिक्रमा का तीसरा दिन यह सिद्ध कर गया कि बक्सर की यह परंपरा केवल धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि जीवन के उत्सव, लोकसंस्कृति और आस्था की जड़ है, जो हर साल हजारों लोगों को एक सूत्र में बांधती है।
