जगन्नाथ की मौसी के बारे में जानते हैं आप..?

भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर रांची से 165 किलोमीटर दूर पलामू में है।

जगन्नाथ की मौसी के बारे में जानते हैं आप..?
Temple

केटी न्यूज़/रांची

आप और हम एक समाज में रहते है।उस समाज में हम कई रिश्तों से जुड़े होते है। सभी का का घर, परिवार और रिश्ते रहते हैं।यह तो रही हम इंसानों की बात ठीक इसी तरह  भगवानों के भी भाई-बहन और रिश्तेदार हुआ करते है।ऐसे ही भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर रांची से 165 किलोमीटर दूर पलामू में है।पलामू के जगन्नाथ मंदिर से यह घर 200 मीटर दूर है।जानें नागवंशी राजा ठाकुर एनीनाथ ने इस मंदिर को क्यों बनवाया..?

रांची में जगन्नाथ मंदिर 1691 में बना है।नागवंशी राजा ठाकुर एनीनाथ शाहदेव ने भगवान कृष्ण से जुड़ा ये मंदिर बनवाया था। मंदिर ट्रस्ट के उत्तराधिकारी बताते हैं कि राजा के 3 भाई तीर्थाटन के लिए गए थे।जब बहुत दिन हो गए तो वो व्याकुल हो गए।इसके बाद राजा खुद तीर्थाटन पर निकले। तब राजा ने दक्षिण दिशा में उत्तर की ओर यात्रा शुरू की लेकिन पर्यावरण बिल्कुल भी यात्रा के अनुकूल नहीं था।जंगल और घने पेड़ों को पार करके उन्होंने 6 महीने तक यात्रा की। फिर जगन्नाथ पुरी पहुंचे। लोगों की आस्था देख उन्हें भी भगवान जगन्नाथ पर विश्वास हो गया।

जगन्नाथ भगवान की यात्रा को 'गुंदिचा' कहा जाता है क्योंकि जब इस मंदिर की स्थापना हुई थी तो इंद्र दमन की पत्नी गुंदिचा तपस्या कर रही थीं।जब उन्होंने तपस्या की उस समय इंद्र दमन प्राण प्रतिष्ठा के लिए ब्रह्मदेव को बुलाने के लिए निकले थे। वापस आते हैं तो देखते हैं कि वो आज तक भक्ति में लीन हैं। तब इंद्र दमन ने कामना की। उन्होंने भगवान जग्ननाथ से मांगा कि दोनों को कभी भी शिशु न हो, ताकि उनका बेटा कल को मंदिर को अपनी जमीन न बताए. इसके बाद जगन्नाथ भगवान ने उन्हें आशीर्वाद दिया। कहा, मैं अब से तुम्हें अपनी मौसी मानता हूं और साल में एक बार तुम्हारे घर जरूर आऊंगा। तभी से ये भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर कहलाया।

औरंगजेब ने इस मंदिर पर हमला किया था।मंदिर को अपवित्र बताकर तोड़फोड़ भी की गई थी।इस वजह से मंदिर ढह गया था लेकिन 1992 में मंदिर को दोबारा बनवाया गया।साल 2022 में इस मंदिर में कुछ ऐसा हुआ था, जिसे समझना मुश्किल था।मंदिर का फर्श अचानक से बहुत ज्यादा गर्म होने लग गया था। इतना गर्म की घी पिघल जाए। लोगों का कहना है कि मंदिर में जो भी हुआ वो किसी रहस्य से कम नहीं है।इस मंदिर की बनावट और पूजा-पाठ का तरीका पुरी और उड़ीसा वाले मंदिर जैसा दिखता है। भगवान जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा की मूर्ति इस मंदिर में मौजूद हैं।

मंदिर बनने के बाद से, आसपास के सभी परिवार मिलकर जिम्मेदारी उठा रहे हैं।उरांव परिवार मंदिर के लिए घंटी लाता है।मुंडा परिवार का काम झंडा फहराना है।रजवार और अहीर जाति के लोगों को गर्भगृह संभालने की जिम्मेदारी दी गयी। कुम्हार परिवार मिट्टी के बर्तन देता है।