कैकेयी-मंथरा संवाद, दो वरदानों की कथा एवं सुदामा चरित्र का हुआ मंचन
श्रीरामलीला समिति के तत्वावधान में किला मैदान स्थित रामलीला मंच पर आयोजित 21 दिवसीय विजयादशमी महोत्सव के अंतर्गत देर रात्रि मंचित रामलीला के दौरान गुरुवार को कैकेयी-मंथरा संवाद एवं दो वरदानों की कथा नामक प्रसंग का मंचन किया गया
- किला मैदान के रामलीला मंच पर आयोजित हो रहा है विजयादशमी महोत्सव
केटी न्यूज/बक्सर
श्रीरामलीला समिति के तत्वावधान में किला मैदान स्थित रामलीला मंच पर आयोजित 21 दिवसीय विजयादशमी महोत्सव के अंतर्गत देर रात्रि मंचित रामलीला के दौरान गुरुवार को कैकेयी-मंथरा संवाद एवं दो वरदानों की कथा नामक प्रसंग का मंचन किया गया। जिसमें वृंदावन से पधारे श्रीराधा माधव रासलीला एवं रामलीला मंडल के सुरेश उपाध्याय व्यास के सफल निर्देशन में कलाकारों द्वारा उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हुए दिखाया गया कि अपना मुकुट धारण करते वक्त राजा दशरथ को सिर में सफेद बाल दिखाई दिया। उन्होंने मन में यह विचार किया कि मुझे राज्य करते हुए काफी उम्र हो गया, इसलिए अब श्रीराम को राज्य का भार सौंपकर तपस्या के लिए वन में जाना चाहिए। वे अपने विचार को मंत्रिमंडल में रखते हैं, सबकी राय व सहमति के बाद वह राज्याभिषेक की तैयारी की घोषणा करते हैं। यह सुनकर अवधपुरी के वासी नगर को सजाने लगते हैं।
इधर जब श्रीराम के राज्याभिषेक की बात मंथरा के कानों में पड़ी तो वह बेचैन हो गई। कुबड़ी मंथरा ने कैकेयी को ये समाचार सुनाया तो कैकेयी आनंदित हो गई, क्योंकि राम उस समय सभी के प्रिय थे। लेकिन मंथरा ने कैकेयी को राम के विरुद्ध खूब भड़काया, लेकिन कैकेयी मंथरा की बात नहीं मान कर आनंद में डूबी रहीं। तब मंथरा के बहकाने पर कैकेयी को अपने दो वरदान की याद आई, कैकेयी के मन में कपट समा गया। मंथरा के कहने पर वे कोप भवन में जाकर बैठ गईं। राजा दशरथ को अपने दो वरदान की याद दिलाई। राजा दशरथ ने कैकेयी से वह वरदान मांगने के लिए कहा, तब उन्होंने अपने वरदान के रूप में राम का वनवास और भरत के लिए राज्य मांगा। ये सुनकर राजा दशरथ भीतर से टूट सा जाते हैं।
सुदामा श्रीकृष्ण के मित्रता का प्रसंग देख भाव विभोर हुए श्रद्धालु
वहीं दिन की कृष्णलीला के दौरान सुदामा चरित्र नामक प्रसंग दिखाया गया। जिसमें दिखाया कि महाराज वासुदेव विद्या ग्रहण करने के लिए श्रीकृष्ण को गुरु संदीपन की पाठशाला में भेजते हैं। मार्ग में उसी पाठशाला में जाते समय सुदामा से मुलाकात होती है। सुदामा के पैर में एक कंटक चुभ जाता है और उनके मुख से प्रभु के नाम की चीख निकलती है। जिसे सुनकर श्रीकृष्ण सुदामा के समीप आकर कंटक को पैर से निकालते हैं और वहीं से दोनों में मित्रता हो जाती है। आगे दिखाया गया कि सुदामा अपना पाठ भूल जाते हैं, जिससे गुरुदेव संदीपन दण्ड स्वरूप उनको वन में जाकर लकड़ी लाने को कहते है यह देखकर मित्रता निभाने के लिए श्रीकृष्ण भी जानबूझ कर अपना पाठ भूल जाते हैं। गुरुदेव दोनों को वन से लकड़ी लाने को भेजते हैं और साथ में भूख लगने पर खाने के लिए चना की पोटली भी देते हैं। वन में सुदामा को भूख लगती है तो वह कृष्ण के हिस्से का भी चना खा जाते हैं, परन्तु, इसकी जानकारी जब गुरुदेव को होती है तो वे सुदामा को दरिद्रता का श्राप दे देते हैं। उक्त लीला को देख दर्शक भाव विभोर हो जाते हैं।