प्रेम का शाश्वत स्वरूप और भक्ति की विजय का संदेश
सदर प्रखंड के श्री हनुमत धाम मंदिर, कमरपुर के पावन परिसर में आयोजित सन्त सद्गुरुदेव स्मृति महोत्सव का ग्यारहवां दिन पूर्णतः धार्मिक भाव, भक्ति और अध्यात्म से ओत-प्रोत रहा। कार्यक्रम का शुभारंभ प्रातः श्रीरामचरितमानस के सामूहिक पाठ से हुआ। दोपहर में श्रीमद्भागवत कथा और संध्या काल में भजन-कीर्तन का आयोजन हुआ, जिसमें दूर-दराज से आए श्रद्धालु भक्तों ने भाग लेकर पुण्य लाभ अर्जित किया।
-- श्रीमद्भागवत कथा में शिव-पार्वती विवाह और ध्रुव चरित्र से उजागर हुआ सच्चे प्रेम व अटल निष्ठा का रहस्य
केटी न्यूज/बक्सर
सदर प्रखंड के श्री हनुमत धाम मंदिर, कमरपुर के पावन परिसर में आयोजित सन्त सद्गुरुदेव स्मृति महोत्सव का ग्यारहवां दिन पूर्णतः धार्मिक भाव, भक्ति और अध्यात्म से ओत-प्रोत रहा। कार्यक्रम का शुभारंभ प्रातः श्रीरामचरितमानस के सामूहिक पाठ से हुआ। दोपहर में श्रीमद्भागवत कथा और संध्या काल में भजन-कीर्तन का आयोजन हुआ, जिसमें दूर-दराज से आए श्रद्धालु भक्तों ने भाग लेकर पुण्य लाभ अर्जित किया। यह आयोजन श्री नारायण दास भक्तमाली मामा जी महाराज के प्रथम कृपा पात्र शिष्य, श्री रामचरित्र दास जी महाराज महात्मा जी के सकेत लीला प्रवेश के उपरांत निरंतर श्रद्धा और भक्ति के साथ संपन्न हो रहा है।

श्रीमद्भागवत कथा के चतुर्थ दिवस में कथा वाचक उमेश भाई ओझा ने प्रेमतत्व की गहन व्याख्या करते हुए मां पार्वती और भगवान शिव के विवाह प्रसंग का अत्यंत भावपूर्ण वर्णन किया। उन्होंने कहा कि संसार में जिसे प्रेम कहा जाता है, वह वास्तव में मोह है, जो समय के साथ घटता-बढ़ता और टूटता रहता है, जबकि ईश्वर के साथ जुड़ा प्रेम शाश्वत और अटल होता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि भगवान का प्रेम एकांगी होता है, उसमें कोई स्वार्थ या रंग-बिरंगी अपेक्षाएं नहीं होतीं, जबकि सांसारिक संबंध बहुरंगी और अस्थिर होते हैं।

लोकधर्म, परमधर्म और भागवत धर्म के अंतर को समझाते हुए उन्होंने भागवत धर्म को आत्मा के उद्धार का मार्ग बताया।मां पार्वती के तप, त्याग और अखंड प्रेम का उल्लेख करते हुए उन्होंने रामचरितमानस की चौपाई “जनम कोटि लगि रगरी हमारी। बरउं शंभु न त रहूं कुंवारी।” के माध्यम से बताया कि सच्चा प्रेम शर्तों से परे होता है और केवल समर्पण की भावना से ही पूर्ण होता है।कथा के क्रम में ध्रुव चरित्र का प्रसंग सुनाते हुए उमेश भाई ओझा ने निश्चय और अटल निष्ठा को धर्म का आधार बताया। उन्होंने कहा कि पांच वर्ष की अल्पायु में ध्रुव का भगवान का साक्षात्कार यह सिद्ध करता है कि प्रभु प्राप्ति के लिए उम्र नहीं, बल्कि दृढ़ संकल्प चाहिए।

ध्रुव की माता द्वारा पुत्र को ईश्वर पथ पर अग्रसर करना यह संदेश देता है कि माताएं चाहें तो संतान को भक्त, वीर और धर्मनिष्ठ बना सकती हैं। संत सद्गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए बताया गया कि जिन पर भगवान की कृपा होती है, उनके जीवन में पहले संत का आगमन होता है।संध्या कालीन भजन कार्यक्रम में भजन गायक कमलेश कुंवर ने भक्ति रस से सराबोर गीतों की प्रस्तुति देकर श्रद्धालुओं को भावविभोर कर दिया। “हाथ पकड़ लो प्रभुजी, दे दो सहारा” जैसे करुण भजनों पर श्रोताओं की आंखें नम हो उठीं। कार्यक्रम में अनेक संतों, साध्वियों और ग्रामीण भक्तों की उपस्थिति ने आयोजन को और भी आध्यात्मिक गरिमा प्रदान की।

