पंचायत चुनाव की आहट से गांवों में सियासी हलचल, आरक्षण के फेरबदल ने बदली चुनावी चाल
पंचायती राज व्यवस्था के तहत चुनी गई पंचायतों का कार्यकाल अगले वर्ष दिसंबर माह में समाप्त होने जा रहा है। ऐसे में जिले समेत पूरे प्रदेश में पंचायत चुनाव की सुगबुगाहट अभी से सुनाई देने लगी है। भले ही चुनाव में अभी वक्त हो, लेकिन आरक्षण में संभावित बदलाव की चर्चा ने गांव-गांव में सियासी माहौल को गर्मा दिया है। वर्तमान जनप्रतिनिधियों से लेकर नए दावेदारों तक की धड़कनें तेज हो गई हैं।
-- कार्यकाल समाप्ति से पहले ही तेज हुई सियासत, संभावित प्रत्याशी मैदान में, आरक्षण बना सबसे बड़ा फैक्टर
केटी न्यूज/बक्सर
पंचायती राज व्यवस्था के तहत चुनी गई पंचायतों का कार्यकाल अगले वर्ष दिसंबर माह में समाप्त होने जा रहा है। ऐसे में जिले समेत पूरे प्रदेश में पंचायत चुनाव की सुगबुगाहट अभी से सुनाई देने लगी है। भले ही चुनाव में अभी वक्त हो, लेकिन आरक्षण में संभावित बदलाव की चर्चा ने गांव-गांव में सियासी माहौल को गर्मा दिया है। वर्तमान जनप्रतिनिधियों से लेकर नए दावेदारों तक की धड़कनें तेज हो गई हैं।दरअसल, सरकार के निर्देशानुसार पंचायत चुनाव में हर 10 वर्ष पर रोस्टर के तहत आरक्षण बदला जाना है।

इसके अलावा पंचायत चुनाव में पहले से ही 50 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। ऐसे में आगामी चुनाव से पहले आरक्षण की स्थिति में बड़े फेरबदल की आशंका जताई जा रही है। सूत्रों की मानें तो राज्य सरकार नियमानुसार पंचायत चुनाव से पूर्व आरक्षण प्रक्रिया पूरी करेगी, जिसके बाद कई पंचायतों में सीटों का गणित पूरी तरह बदल सकता है।इस संभावित बदलाव ने मौजूदा मुखिया, सरपंच, पंचायत समिति सदस्य और जिला परिषद सदस्यों की चिंता बढ़ा दी है।

कई जनप्रतिनिधि दोबारा चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटे हैं, लेकिन सीट महिला या किसी अन्य वर्ग के लिए आरक्षित हो जाने की स्थिति में उनकी राजनीतिक राह मुश्किल हो सकती है। इसी असमंजस के बीच कुछ नेता दूसरे पदों पर दावेदारी की रणनीति भी बनाने लगे हैं।वहीं दूसरी ओर, भावी प्रत्याशियों के लिए आरक्षण में बदलाव उम्मीद की नई किरण बनकर सामने आया है। कई ऐसे लोग, जो अब तक चुनाव से दूर थे, वे इसे अपने लिए अवसर मानते हुए सक्रिय हो गए हैं। गांवों में जनसंपर्क अभियान तेज हो गया है।

सामाजिक कार्यक्रमों, धार्मिक आयोजनों और स्थानीय बैठकों में संभावित उम्मीदवारों की मौजूदगी बढ़ गई है। लोग अब खुलकर विकास, योजनाओं और गांव की समस्याओं पर बात करने लगे हैं।ग्रामीण इलाकों में चौक-चौराहों, चाय दुकानों और बैठकों में पंचायत चुनाव सबसे बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है। कौन कहां से लड़ेगा, किस सीट पर आरक्षण होगा और किसे फायदा मिलेगाकृइन सवालों पर चर्चाओं का दौर जारी है। समर्थकों की बैठकों और रणनीति बनाने का सिलसिला भी शुरू हो चुका है।

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि जैसे ही आरक्षण की अंतिम तस्वीर साफ होगी, चुनावी गतिविधियां और तेज होंगी। फिलहाल पंचायत चुनाव की आहट ने गांव की राजनीति में नई जान फूंक दी है। आने वाले महीनों में यह सियासी हलचल और रंग दिखाने वाली है, जिसमें पुराने चेहरे अपनी जमीन बचाने की कोशिश करेंगे, तो नए चेहरे बदलाव की बयार बनकर सामने आएंगे।
