कालाजार व फाइलेरिया उन्मूलन में अब ग्रामीण चिकित्सकों की भूमिका होगी निर्धारित
- वेक्टर जनित रोगों को लेकर जिले के ग्रामीणों चिकित्सकों को किया जायेगा प्रशिक्षित
- कालाजार और फाइलेरिया की पहचान, इलाज व बचाव की दी जाएगी जानकारी
बक्सर | जिले में वेक्टर जनित रोगों के उन्मूलन के लिए स्वास्थ्य विभाग प्रयासरत है। लेकिन, वेक्टर जनित रोगों के खात्मे के लिए सिर्फ स्वास्थ्य विभाग ही नहीं बल्कि आम लोगों को भी आगे आना होगा। इस क्रम में स्वास्थ्य विभाग ने ग्रामीण स्तर पर अभियान चलाने का निर्णय लिया है। जिसके तहत अब ग्रामीण चिकित्सकों को वेक्टर जनित रोगों को लेकर प्रशिक्षित किया जाएगा। इसके लिए प्रखंड स्तर पर ग्रामीण चिकित्सकों का उन्मुखीकरण किया जाएगा। ताकि, ग्रामीण चिकित्सकों को कालाजार और फाइलेरिया से संबंधित जानकारी हो और वो कालाजार मरीज को चिह्नित करते हुए सरकारी अस्पताल पहुंचाने का काम करें। साथ ही, उन्हें इन बीमारियों की पहचान, इलाज व बचाव की जानकारी दी जाएगी। उन्हें योजना के तहत दी जाने वाली प्रोत्साहन राशि के संबंध में भी बताया जाएगा। ताकि, वो भी इन योजनाओं का लाभ उठ सकें।
इन लोगों को मिलती है राशि :
कालाजार के डीपीओ चंदन प्रसाद ने बताया, सरकार मरीजों के साथ साथ उत्प्रेरक व सूचक को भी प्रोत्साहन राशि देती है। कालाजार से पीड़ित मरीज को 7100 रुपए श्रम क्षतिपूर्ति राशि दी जाती है। वहीं, प्रशिक्षित आशा के द्वारा मरीजों को चिह्नित करने, पीएचसी तक लाने तथा मरीज का ख्याल रखने पर प्रति मरीज 600 रुपए की प्रोत्साहन राशि दी जाती है। यह राशि भारत सरकार एवं राज्य सरकार की तरफ से दी जाती है। इसमें मरीजों के लिए 6600 रुपए और आशा के लिए 100 रुपए की राशि मुख्यमंत्री कालाजार राहत अभियान के अंतर्गत दी जाती है। वहीं प्रति मरीज एवं आशा को 500 रुपए भारत सरकार की तरफ से दिया जाता है। साथ ही, ग्रामीण चिकित्सकों द्वारा पीएचसी भेजे गए मरीजों में यदि कालाजार बुखार की रिपोर्ट पॉजिटिव आती है, तो उन्हें भी 500 रुपए प्रोत्साहन राशि दी जाती है।
बालू मक्खी काटने से फैलता है कालाजार :
डीपीओ चंदन प्रसाद ने बताया कि कालाजार के इलाज में सबसे जरूरी है, बीमारी के प्रारंभिक लक्षणों की पहचान। जिसके बाद उसकी जांच और इलाज की प्रक्रिया शुरू की जाती है। ऐसे में सबसे जरूरी बात है कालाजार के कारणों का पता होना। उन्होंने बताया कि कालाजार लिशमेनिया डोनी नामक रोगाणु के कारण होता है। जो बालू मक्खी काटने से फैलता है। साथ ही यह रोग एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भी प्रवेश कर जाता है। बालू मक्खी जमीन से 6 फुट की ऊंचाई तक ही फुदक सकती है। यह मक्खी नमी व अंधेरे वाले स्थान पर ज्यादा फैलती है। जैसे घरों की दीवारों की दरारों, चूहों के बिल तथा ऐसे मिट्टी के टीले जहां ज्यादा जैविक तत्व और उच्च भूमिगत जल स्तर वाले स्थानों पर रहती है। जिन घरों में बालू मक्खियां पाई जाती हैं, उन घरों में कालाजार के संक्रमण का खतरा बढ़ जाता।
लक्षण दिखने पर जांच कराना आवश्यक :
किसी व्यक्ति को 15 दिन से अधिक बुखार आना, भूख नहीं लगना, रोगी में खून की कमी, रोगी का वजन घटना, रोगी की त्वचा का रंग काला होना आदि कालाजार के लक्षण हो सकते हैं। वहीं इसका सबसे मुख्य लक्षण त्वचा पर धब्बा बनना है। यदि किसी व्यक्ति में उपयुक्त लक्षण पाएं, तो उन्हें तत्काल प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र पर जांच के लिए भेजें। पीएचसी में कालाजार की जांच की सुविधा नि:शुल्क उपलब्ध है। संक्रमित मरीज मिलने पर उन्हें सदर अस्पताल रेफर किया जाता है। सदर अस्पताल में समुचित इलाज की सुविधा उपलब्ध है। वहां मरीजों का एक ही दिन में इलाज कर दिया जाता है।