साई इंटरप्राइजेज की आड़ में मैनेज का बड़ा खेल
जिला शिक्षा कार्यालय बक्सर में ठेकेदारी की गड़बड़ियों पर उठे सवाल अब तूल पकड़ने लगे हैं। पहले सिर्फ चर्चाओं तक सीमित रहने वाला यह मामला अब जांच की मांग तक पहुंच गया है। केंद्र में है साई इंटरप्राइजेज—वही कंपनी, जिस पर बेंच-डेस्क से लेकर भवन मरम्मति, बोरिंग और मध्यान्ह भोजन (एमडीएम) सामग्री आपूर्ति तक ‘एकछत्र दबदबे’ के आरोप लग रहे हैं।

क्या जिला प्रशासन कराएगा निष्पक्ष जांच
केटी न्यूज/बक्सर
जिला शिक्षा कार्यालय बक्सर में ठेकेदारी की गड़बड़ियों पर उठे सवाल अब तूल पकड़ने लगे हैं। पहले सिर्फ चर्चाओं तक सीमित रहने वाला यह मामला अब जांच की मांग तक पहुंच गया है। केंद्र में है साई इंटरप्राइजेज—वही कंपनी, जिस पर बेंच-डेस्क से लेकर भवन मरम्मति, बोरिंग और मध्यान्ह भोजन (एमडीएम) सामग्री आपूर्ति तक ‘एकछत्र दबदबे’ के आरोप लग रहे हैं।
स्थानीय लोगों और विभागीय सूत्रों का कहना है कि यह सिर्फ ठेका लेने का मामला नहीं है, बल्कि नियमों को ताक पर रखकर बड़े पैमाने पर ‘मैनेजमेंट गेम’ खेला गया है। यही कारण है कि जिला शिक्षा विभाग के कई कार्यों में इस कंपनी का नाम लगातार सामने आता रहा है।
सूत्र बताते हैं कि पहले भी साई इंटरप्राइजेज का नाम जिला थाली खरीद में आया था। जिसमें विभागीय नियम के उलट जिला शिक्षा कार्यालय द्वारा विद्यालय प्रबंधन के बजाय इस एजेंसी से करवाया गया। उस वक्त भी सवाल उठे थे कि आखिर क्यों विभागीय मानकों को ताक पर रखकर एक ही कंपनी को बार-बार जिम्मेदारी दी जा रही है। उस समय मामला दबा दिया गया, लेकिन अब जब एमडीएम सामग्री आपूर्ति और बेंच-डेस्क जैसी बुनियादी चीजों में भी सवाल उठ रहे हैं, तो यह खेल खुलकर सामने आ गया है।
--- शिक्षा विभाग में ‘मैनेजमेंट’ का असर
जिला शिक्षा विभाग से जुड़े सूत्र दावा करते हैं कि साई इंटरप्राइजेज को विशेष ‘सुविधा’ दी जाती है। सामान्य ठेकेदारों को महीनों तक बिल भुगतान के लिए दौड़ना पड़ता है, जबकि इस कंपनी के बिल सीधे पारित हो जाते हैं। यही नहीं, जिन कामों में निविदा प्रक्रिया या खुली प्रतियोगिता जरूरी होती है, वहां भी नियम-कायदों की अनदेखी कर रास्ता आसान बना दिया जाता है।
शंका और गहरी तब होती है जब विभागीय अधिकारी सबकुछ जानते हुए भी चुप्पी साधे रहते हैं। आखिर किस दबाव में यह मौन है—यह अब सबसे बड़ा सवाल बन गया है।
--- सांसद सहयोगी की भूमिका पर चर्चा
इस पूरे खेल के पीछे सांसद सहयोगी अरविंद सिंह और अजय सिंह का नाम लिया जा रहा है। कहा जाता है कि साई इंटरप्राइजेज इन्हीं के संरक्षण में काम करती है। यही वजह है कि कंपनी को किसी तरह की रुकावट का सामना नहीं करना पड़ता और भुगतान भी बिना अड़चन के हो जाता है। यदि इन आरोपों में सच्चाई है तो यह न सिर्फ शिक्षा व्यवस्था की पारदर्शिता पर चोट है, बल्कि लोकतांत्रिक संस्थाओं की साख पर भी सवाल खड़े करता है।
-- क्या होगी जांच?
अब जिले में यह चर्चा गर्म है कि क्या जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग इस मामले में निष्पक्ष जांच कराएंगे। स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि स्वतंत्र और गंभीर स्तर की जांच हुई तो कई बड़े नाम बेनकाब होंगे और यह सामने आ जाएगा कि आखिर किस स्तर पर मैनेज का खेल खेला गया।
जानकार का कहना हैं कि जांच सिर्फ सतही नहीं होनी चाहिए, बल्कि उन सभी कार्यों की समीक्षा होनी चाहिए जिनमें साई इंटरप्राइजेज शामिल रही है—चाहे वह थाली खरीद का मामला हो, बेंच-डेस्क आपूर्ति हो, भवन मरम्मति हो या एमडीएम सामग्री का वितरण।
--- उठ रहे अहम सवाल
इस मामले में कई सवाल उठ रहे है जैसे क्या जिला शिक्षा कार्यालय में ठेकेदारी प्रक्रिया पारदर्शी है। क्या सांसद सहयोगियों के दबाव में विभाग काम कर रहा है। क्या साई इंटरप्राइजेज के पक्ष में नियमों की अनदेखी की गई तथा आखिर किसके संरक्षण में विभागीय अधिकारी चुप बैठे हैं?
--- जनता और शिक्षा पर असर
इन गड़बड़ियों का सीधा असर सरकारी स्कूलों और बच्चों पर पड़ रहा है। घटिया बेंच-डेस्क, अधूरा मरम्मति कार्य और एमडीएम योजना में घटिया सामग्री—ये सब बच्चों के अधिकारों से समझौता है। शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने की जगह ठेकेदारी के खेल से संसाधन लूटे जा रहे हैं।
--- क्या निकलेगा नतीजा
अब सबकी निगाहें जिला प्रशासन और शिक्षा विभाग पर हैं। क्या वे फर्स्ट आइडिया की तर्ज पर यहां भी जांच बैठाएंगे या मामला फिर ठंडे बस्ते में चला जाएगा?
इतना तय है कि जब तक निष्पक्ष जांच नहीं होती, तब तक यह सवाल गूंजता रहेगा—क्या जिला शिक्षा कार्यालय में शिक्षा नहीं, ठेकेदारी का खेल चल रहा है।
इस पूरे घटनाक्रम ने स्पष्ट कर दिया है कि साई इंटरप्राइजेज की आड़ में ठेकों का मैनेजमेंट खेला गया है, और यदि जांच निष्पक्ष हुई तो कई बड़े नामों की कलई खुल सकती है।